गुजरात के राजकोट से पैदल यात्रा करके बुरहानपुर के स्वामी नारायण मंदिर पहुंचे करीब 60 से 70 संत | New India Times

मेहलक़ा इक़बाल अंसारी, ब्यूरो चीफ, बुरहानपुर (मप्र), NIT:

गुजरात के राजकोट से पैदल यात्रा करके बुरहानपुर के स्वामी नारायण मंदिर पहुंचे करीब 60 से 70 संत | New India Times

बुरहानपुर का स्वामीनारायण मंदिर वैसे तो भगवान और संतों के लिए पूर्व से ही धार्मिक स्थल रहा है। जहां भगवान स्वामीनारायण ने भी स्वयं बुरहानपुर पहुंचकर वर्णी अवतार में तपश्चर्या की थी। भगवान स्वामीनारायण जब महज 11 वर्ष के थे, तब उन्होंने घर परिवार त्याग कर वन विचरण को निकले और वन विचरण करते-करते बुरहानपुर पहुंचे। जहां भगवान स्वामीनारायण भी स्वयं बुरहानपुर पहुंचकर तपश्चार्य की थी। वही ताप्ती नदी के बीच हाथीनुमा पत्थर पर बैठकर जैनाबाद की काठियावाड़ी महिलाओं से प्रेम पूर्वक दही और रोटला खाया था और मोहना संगम पहुंचकर भक्तों को प्रवचन भी दिया था और उसके पश्चात तपस्या में लीन हो गए थे। उन्ही स्थान के दर्शन के लिए राजकोट के 300 संतों के संत मंडल में से गुरु की प्रेरणा से बुरहानपुर पहुंचे करीब 60 से 70 संत और उनका पार्षद मंडल साथ में कई हरि भक्त भी मौजूद रहे।

जिन्होंने भगवान स्वामीनारायण के दर्शन कर दंडवत प्रमाण भी किया। संतों ने पूजा अर्चना कर आरती भी की। बुरहानपुर के हरि भक्त मंडल और संत मंडल की ओर से स्वामीनारायण मंदिर के महंत कोठारी पी पी स्वामी ने उनका आदर सत्कार कर उनकी अगुवाई की। मंदिर के मीडिया प्रभारी गोपाल देवकर ने बताया कि मंदिर ट्रस्टी सोमेश्वर मर्चेंट ने संत मंडल से विचार विमर्श कर उन्हें बुरहानपुर मंदिर के संबंध में कई विस्तार पूर्वक जानकारी भी उपलब्ध कराई।वहीं ट्रस्ट के ठाकुरदास शाह, सेवक दास शाह व अन्य हरि भक्तों में रणछोड़ भाई शाह, चंद्रकांत शाह बालाजी शाह व अन्य भक्त मौजूद रहे। उसी तर्ज पर यह संत मंडल बुरहानपुर पहुंचा जहां उन्होंने पूजा अर्चना कर भगवान स्वामीनारायण ने जिस ताप्ती नदी के राजघाट पर स्नान और दही रोटी खाई थी उसी स्थान पहुंचकर उन्होंने भगवान स्वामीनारायण का ताप्ती के जल से अभिषेक किया। पूजा अर्चनाकर ताप्ती में गोते लगाएं और जल क्रीड़ा भी की और बुरहानपुर के भक्तो को आशीर्वाद भी प्रदान किया। गुजरात राजकोट के करीब 60 से 70 संतो का जत्था बुरहानपुर स्वामीनारायण मंदिर से सीधे पूलाश्रम रवाना हुआ जहां भगवान स्वामी नारायण ने रहकर तपश्चर्या की थी और संतो और हरि भक्तों का उद्धार भी किया था।

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