नरेन्द्र कुमार, ब्यूरो चीफ़, जलगांव (महाराष्ट्र), NIT:
एक तीर एक कमान आदिवासी एक समान के सुसुत्रता से लामबंद हुए आदिवासी समुदाय के तमाम तबकों ने राजस्व कार्यालय पर मोर्चा निकाला। कृषि उपज मंडी के मैदान से आरंभ हुए इस पैदल मार्च में हजारों आदिवासी महिलाएं माताएं बहनें और पुरुष युवा बच्चे बूढ़े शामिल हुए। आंदोलन का नेतृत्व आदिवासी एकता परिषद के जिला अध्यक्ष सुधाकर सोनवने ने किया। राजस्व भवन पहुंचते ही आंदोलकों की ओर से अपने हकों और अधिकारों की जनजागृति के मक़सद से जमकर नारेबाजी की। “जो ज़मीन सरकारी है वो जमीन हमारी है” इस घोषणा ने समाज के उस वर्ग का ध्यान आकर्षित कर लिया जो सभी मामलों में खुद को अगड़ा समझकर भारतीय समाज में लिप्त सामाजिक विषमता के बीच भी समान नागरी संहिता जैसी घटिया सोच का समर्थन करता है। आंदोलनकर्ताओं ने राजस्व विभाग को एक ज्ञापन सौंपा जिसमें धनगर आरक्षण का मुखरता से विरोध किया गया।
ज्ञापन में कहा है कि सरकारी स्कूलों का निजीकरण बंद करें, आदिवासी लड़कियों के लिए हॉस्टल का निर्माण कराया जाए। यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू नहीं करें। भूमिहीन आदिवासियों को गांव के गायरान पर मालिकाना हक़ दिया जाए। सबलीकरण योजना के तहत आदिवासियों को उनके जीवनयापन के लिए पांच एकड़ जमीन प्रदान की जाए। एकता परिषद के नेता सुधाकर ने तमाम आदिवासियों से अपील करते हुए कहा कि आने वाली 20 अक्टूबर को जलगांव कलेक्ट्रेट पर विशाल रैली का आयोजन कराया गया है जिसमें शामिल होने के लिए कदम बढ़ाएं।
जातिगत जनगणना आवश्यक
भारत जाति प्रधान देश है सामाजिक आरक्षण का दायरा जातियों के डेटा पर आधारित है। इस लिए जातिगत जनगणना आवश्यक है। राहुल गांधी ने कांग्रेस शासित राज्यों में जातिगत जनगणना कराने का ऐलान किया है। जिससे ओबीसी को न्याय मिलेगा, SC/ST को नए सिरे से विकास के प्रवाह में लाने की योजना बनेगी। समूचे देश में जाति आधारित जनगणना कराने की तेज होती मांग एक बड़ा सामाजिक फैक्टर साबित होगा।
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