नरेन्द्र कुमार, ब्यूरो चीफ़, जलगांव (महाराष्ट्र), NIT:
मेगा रिचार्ज यह किसी टेलीकॉम कंपनी का सस्ता पोस्टपेड प्लान नहीं है बल्कि महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश इन दोनों राज्यों का साझा सिंचाई प्रोजेक्ट है जिसके पूरे होने को लेकर आम जनता के सपनों में रंग भरने के नाम पर मंत्रियों ने सरकारी तिजोरी से 300 करोड़ रुपये फूंक दिये। इसी प्रोजेक्ट की जमीनी हकीकत से जनता को रूबरू करवाना NIT का प्रयास होगा। प्रोजेक्ट का केंद्र मध्य प्रदेश के खरिया गोटी में है जहां घाट के जरिए तापी नदी का पानी सातपुड़ा पहाड़ियों के तलहटी में लाया जाएगा। हर साल 30 टी एम सी (90 हजार करोड़ लीटर) पानी जमीन के भीतर घुमाया जाएगा। प्रोजेक्ट में मध्य प्रदेश के इच्छापुर से महाराष्ट्र के अचलपुर के बीच सातपुड़ा पर्वत में 26 किमी का वाटर टनल प्रस्तावित है जिसका सर्वे किया जा चुका है। योजना से मध्य प्रदेश के बुरहानपुर, खंडवा, नेपानगर की 1 लाख 74 हजार और महाराष्ट्र में रावेर इलाका, अमरावती, बुलढाना की 2 लाख 37 हजार हेक्टेयर जमीन को सिंचाई योग्य बनाना है। इस योजना का असली मकसद जमीन के अंदर पानी का स्तर बढ़ाना है। अब हम प्रोजेक्ट के सरकारी सैर सपाटे की बात करेंगे जिसमें पता चलता है कि 22 साल पहले ग्रैविटी कॉन्सेप्ट के आधार पर सोचे गए इस प्लान के मुआयने को लेकर नेताओं ने साइड का जमकर सैर सपाटा किया। दोनों राज्यों की भाजपा शासित सरकारों (2014 – 2023) के मंत्रियों के हवाई, जमीनी दौरों, राजशिष्टाचार के नाम पर होने वाली बैठकों के तामझाम पर सरकारी तिजोरी से लगभग 300 करोड़ रुपया खर्च हो चुका है।
साल के अंत तक मध्य प्रदेश में विधानसभा के आम चुनाव होने हैं। पूर्व मंत्री अर्चना चिटनिस ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर इस योजना को चर्चा के केंद्र में ला कर खड़ा कर दिया है। मध्य प्रदेश में भाजपा ने हर बार कांग्रेस को इस योजना का हत्यारा बताया जबकि योजना के लिए सारा पैसा केंद्र सरकार को देना है लेकिन आज तक इस प्रोजेक्ट के लिए केंद्र से एक फूटी कौड़ी तक नहीं मिली है। महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस के मुख्यमंत्री रहते उनके कैबिनेट का सिंचाई मंत्री अपने विभाग के लिए मैनुअल (नियमावली) तक नहीं बना सका। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गैरकानूनी ठहराई गई एकनाथ शिंदे सरकार में फडणवीस सवा साल से सिंचाई मंत्री बने बैठे हैं लेकिन मेगा रिचार्ज को लेकर उनका कोई सार्वजनिक बयान नहीं आया है, प्रशासनिक स्तर पर कोई हरकत नहीं है। भाजपा ने इस प्रोजेक्ट को पूरा करने के बजाए केवल चुनाव के लिए इस्तेमाल किया।
अगली रिपोर्ट में हम पाठकों को इस योजना के तकनीकी पहलुओं और DPR के झोल के बारे मे अवगत कराएंगे।
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