एमआईएम ने बुरहानपुर के आगामी विधान सभा चुनाव को लेकर कांग्रेस के समक्ष क्या रखी शर्त... | New India Times

मेहलक़ा इक़बाल अंसारी, बुरहानपुर (मप्र), NIT:

आगामी विधानसभा चुनाव का बिगुल जल्द ही बजने वाला है। विधानसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर सत्ताधारी दल सहित सभी राजनैतिक दल अपनी अपनी तैयारी में जुट गए हैं और अपनी अपनी गोटियां, अपने अपने पियादे फिट कर रहे हैं। दो बड़े राजनैतिक दल भाजपा और कांग्रेस में टिकट पाने वाले दावेदारों की एक लंबी फेहरिस्त है।

कांग्रेस और बीजेपी में अनेक लोग (लगभग एक दर्जन) अपनी उम्मीदवारी और दावेदारी जता रहे हैं। कुछ उम्मीदवारों ने अपने सियासी रहनुमाओं और आक़ाओं से इशारा मिलने पर अपना पॉलिटिकल कैंपिन भी शुरू कर दिया है। पिछले नगर पालिक निगम चुनाव में एमआईएम को जो कामयाबी हासिल हुई थी, इससे पार्टी और पार्टी के स्थानीय पदाधिकारी गण सहित एमआईएम हेड क्वार्टर के राष्ट्रीय पदाधिकारीगण बहुत उत्साहित हैं और आगामी विधानसभा चुनाव में बुरहानपुर विधानसभा क्षेत्र से एमआईएम अपना उम्मीदवार उतारकर किस्मत आज़माई के लिए उत्सुक है।

लेकिन देश प्रदेश के मौजूदा सियासी हालात और पिछले नगर निगम इलेक्शन के अनुभव को सामने रखते हुए एमआईएम पार्टी के प्रदेश पदाधिकारी में एडवोकेट सोहेल अहमद हाशमी और एडवोकेट ज़हीर उद्दीन शेख़ ने सोशल मीडिया के माध्यम से एक ऐलान किया है। जिससे सियासी हलकों में खलबली मची हुई है। एमआईएम पार्टी के उक्त दो बड़े पदाधिकारी ने सोशल मीडिया के माध्यम से कांग्रेस पार्टी के समक्ष एक शर्त रखी है कि अगर वह आगामी विधानसभा चुनाव में अगर मुस्लिम को उम्मीदवार बनाती है तो एमआईएम अपना उम्मीदवार नहीं उतारेगी। और अगर नहीं उतरती है तो…? सोशल मीडिया पर एमआईएम के इस ऐलान का मुस्लिम समाज वर्ग द्वारा करतल ध्वनि से स्वागत किया जा रहा है और इसे बुद्धिमानी के साथ चाणकीय निर्णय से ताबीर किया जा रहा है।

एमआईएम के दोनों पदाधिकारियों ने बुद्धिमानी से आज फैसला करते हुए अपना सियासी दामन भी साफ कर लिया है और इस ऐलान से उसने एक बड़ी रणनीति भी बनाई है। कांग्रेस पार्टी से टिकट के लिए प्रबल दावेदारों में बुरहानपुर के निर्दलीय विधायक ठाकुर सुरेंद्र सिंह शेरा भैया और मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रदेश महासचिव अजय सिंह रघुवंशी का नाम सर्वोपरि बताया जा रहा है। ऐसे में एमआईएम ने इस कार्ड को खेल कर एक तीर से कई शिकार किए हैं।

पिछले नगर निगम इलेक्शन में कांग्रेस पार्टी की हार का ठीकरा एमआईएम पर फोड़ा जा रहा था, हालांकि कांग्रेस पार्टी के प्रदेश स्तरीय कद्दावर नेता ने अपने एक कट्टर समर्थक को उपनगर लालबाग से उम्मीदवार बनाकर कांग्रेस उम्मीदवार की राह को मुश्किल बनाया था, उक्त उम्मीदवार ने जितने वोट लिए थे,वह वोट कांग्रेस की मेयर उम्मीदवार को जिताने के लिए काफी फायदेमंद साबित होते।इसके अलावा कई ऐसे वार्ड थे, जिनके कांग्रेस पार्षदों को अपने वार्ड की पार्षदी में कांग्रेश के मैहर उम्मीदवार के मुक़ाबले अधिक वोट प्राप्त हुए और कांग्रेसी वार्ड पार्षद कांग्रेसी महापौर को पार्षद को जो वोट मिले, इतनी वोट कांग्रेस की मेयर उम्मीदवार को दिलाने में कांग्रेसी पार्षद असफल रहे। कांग्रेस के कुछ पार्षदों द्वारा महापौर उम्मीदवार को अपने मुक़ाबले में प्रयाप्त वोट नहीं दिला पाने के कांग्रेस उम्मीदवार को हार का सामना करना पड़ा। ज़ीरो ग्राउंड की इस वजह को नज़र अंदाज़ करते हुए कांग्रेस की मेयर उम्मीदवार की हार के लिए एमआईएम को जिम्मेदार बताया जाने लगा और एमआईएम पर एक राजनैतिक पार्टी की बी टीम होने का आरोप भी लगा।

पिछले मेयर इलेक्शन में मिले वोटों से आशावादी होकर एमआईएम विधानसभा चुनाव 2023 में अपना उम्मीदवार खड़ा करेगी, ऐसा गणित राजनैतिक सूत्र और राजनैतिक पंडित बता रहे हैं। वहीं राजनैतिक पंडित और राजनीतिक जानकार एमआईएम के इस आफ़र को संभवत: कांग्रेस पार्टी को पशोपेश में डालने वाला ऑफ़र बता रहे हैं। वहीं सियासी तौर पर एमआईएम ने यह ऐलान कर के अपना सियासी दामन भी बचा लिया है। एमआईएम के ऐलान के बाद कांग्रेस पार्टी क्या एक्शन प्लान बनाती है ? और किसे टिकट देती है ? यह कांग्रेस पार्टी का अपना अंदरूनी मामला है, लेकिन सर्व मुस्लिम समाज की मंशा और भावना यह है कि पूर्व विधायक मोहम्मद हारून सेठ के कार्यकाल की पुरानी सियासी रिवायत को ज़िले में बरक़रार रखते हुए विधानसभा में मुस्लिम समाज का प्रतिनिधि पहुंचे और लोकसभा में बहुसंख्यक समाज का प्रतिनिधि पहुंचे।

इस बात को ध्यान रखते हुए क्या कोई इस प्रकार का फैसला किया जा सकता है? एमआईएम के ऐलान के बाद एमआईएम की आगामी रणनीति क्या होगी? यह सब बातें, अपने अपने राजनैतिक समीकरण और फ़ायदे नुक़सान की हैं और समय के गर्भ में छिपी हैं। लेकिन विधानसभा आम चुनाव 2023 के घमासान में कांग्रेस, बीजेपी, आम आदमी पार्टी, एमआईएम, बसपा, निर्दलीय सहित अन्य पार्टियों के उम्मीदवार किस्मत आजमाएं करेंगे और बड़ी सियासी पार्टियां अपने राजनैतिक समीकरण के तहत छोटे उम्मीदवारों को वित्त पोषित कर अपना हित साधने के लिए उन्हें खड़ा भी करेंगे।


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