सोशल मीडिया पर शेयर किया जा रहा है सरकारी आदेश, कौन तय करेगा बर्बादी की जवाबदेही | New India Times

नरेंद्र कुमार, जामनेर/जलगांव (महाराष्ट्र), NIT:

सोशल मीडिया पर शेयर किया जा रहा है सरकारी आदेश, कौन तय करेगा बर्बादी की जवाबदेही | New India Times

एक सड़क बनाने के लिए नगर परिषद की ओर से कानून की धज्जियां उड़ाकर किस तरह से मनाही के बाद भी कच्चा अतिक्रमण निकाला गया इस बात को लेकर सोशल मीडिया पर एक सरकारी आदेश खूब वायरल किया जा रहा है. इस आदेश के मुताबिक 1 जून से 30 सितंबर के बीच किसी भी सरकारी या गैर सरकारी जमीन पर बसा अतिक्रमण नहीं निकाला जाएगा. अपवादात्मक स्थिति में आदेश में छूट दी गई है और इसी छूट का गलत फायदा उठाकर प्रशासन ने गैर कानूनी तरीके से अतिक्रमण को हटाया ही नहीं बल्की लाखों रुपयो की निजी संपत्ती को बुलडोजर से कुचलकर बर्बाद कर दिया.

सोशल मीडिया पर शेयर किया जा रहा है सरकारी आदेश, कौन तय करेगा बर्बादी की जवाबदेही | New India Times

जिलाधकारी ने इस प्रकार का आदेश आखिर किसके दबाव मे पारित किया. अगर सड़क बनाने के लिए अतिक्रमण हटाना जरूरी था तो उसकी जिम्मेदारी सड़क का ठेका लेने वाले ठेकेदार की बनती है अतिक्रमण हटाकर निगम ने ठेकेदार को सहायता क्यों? बरसात में सीमेंट कांक्रीट की सड़क बनाने का ठेका कैसे निकल सकता है? ठेका निकल भी गया तो सड़क की गुणवत्ता क्या होगी? नगर परिषद बनने के बाद से विभिन्न दलों की शहर सरकारों ने कच्चे अतिक्रमितों के पुनर्वास हेतु अब तक हाकर्स ज़ोन के लिए प्रयास क्यों नहीं किया? अतिक्रमण हटाना सड़क के लिए था या फिर किसी नेता के फिर से नेता बनने पर उसके स्वागत अगवानी में असहाय पीड़ितों को याची बनाकर उस नेता के सामने पेश करने के लिए प्रशासन द्वारा रचा गया षडयंत्र था. ऐसे तमाम सवाल हैं जो तार्किक आधार पर अपने जवाब पाने के लिए पूछे जा रहे हैं. सूबे में मंत्री परिषद और सरकार अस्तित्व में नहीं है जिसके चलते छद्म गवर्नर रूल के माहौल में प्रशासन उक्त रूप से मनमानी पर उतर आया है. जामनेर में घटे इस मामले की उच्चस्तरीय जांच कराने की मांग पीड़ित विस्थापितों द्वारा की जा रही है.


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