संदीप तिवारी, ब्यूरो चीफ, पन्ना (मप्र), NIT:
नगर अमानगंज में कोविड 19 महामारी के चलते बड़ी सादगी से मुस्लिम समाज द्वारा मुहर्रम का मातमी पर्व मनाया गया. न्यू इंडिया टाइम्स के संवाददाता संदीप तिवारी ने पूर्व शहर शदर अमन खान से जाना कि आखिर क्यों मनाया जाता है मुहर्रम तो अमन खान ने बताया कि मोहर्रम महीना 11 अगस्त से शुरू हो गया था, मुहर्रम का दसवां दिन आशूरा होता है। इस दिन मुहर्रम मनाया जाता है। इस वर्ष 20 अगस्त शुक्रवार मुहर्रम का दसवां दिन ये खास आया है. मुहर्रम का महत्व क्या है और क्यों मनाते हैं मुहर्रम महीने का दसवां दिन खास, मुहर्रम महीने की दस तारीख को कर्बला की जंग में पैगंबर हजरत मोहम्मद (सल.) के नवासे हजरत इमाम हुसैन की शहादत हुई थी। हजरत इमाम हुसैन ने इस्लाम की रक्षा के लिए खुद को कुर्बान कर दिया था। इस जंग में उनके 72 साथी भी शहीद हुए थे। कर्बला की जंग हजरत इमाम हुसैन और यजीद की सेना के बीच हुई थी। हजरत इमाम हुसैन का मकबरा इराक के शहर कर्बला में उसी जगह है जहां यह जंग हुई थी। यह शहर इराक की राजधानी बगदाद से 120 किलोमीटर दूर है. कर्बला की जंग तकरीबन 1400 साल पहले हुई थी। यह जंग जुल्म के खिलाफ इंसाफ और इंसनियत के लिए लड़ी गई थी। दरअसल, यजीद नाम के शासक ने खुद को खलीफा घोषित कर दिया था और वो अपना वर्चस्व कायम करना चाहता था। उसने इसके लिए लोगों पर सितम ढाए और बेकसूरों को निशाना बनाया। वह हजरत इमाम हुसैन से अपनी स्वाधीनता स्वीकार कराना चाहता था। उसने इमाम हुसैन को भी तरह-तरह से परेशान किया लेकिन उन्होंने घुटने नहीं टेके। जब यजीद की यातनाएं ज्यादा बढ़ गईं तो इमाम हुसैन परिवार की रक्षा के लिए उन्हें लेकर मक्का हज पर जाने का फैसला किया। हालांकि, उन्हें रास्ते में मालूम चल गया कि यजीद के सैनिक भेस बदलकर उनके परिवार को शहीद कर सकते हैं।
आखिरी वक्त तक इंसानियत के लिए लड़ते रहे इमाम हुसैन इसके बाद इमाम हुसैन ने हज पर जाने का इरादा छोड़ने दिया, क्योंकि वह नहीं चाहते थे कि पवित्र जमीन खून से सने। उन्होंने फिर कूफा जाने का निर्णय किया, लेकिन यजीद के सैनिक उन्हें पकड़कर कर्बला ले गए। कर्बला में इमाम हुसैन पर बेहद जुल्म किया गया और उनके परिवार के पानी पीने तक पर रोक लगा दी गई। यजीद इमाम हुसैन को अपने साथ मिलाने के लिए लगातार दबाव बनाता रहा। वहीं, दूसरी तरफ इमाम हुसैन ने अपने मजबूत इरादों पर डटे रहे। यजीद के सैनिकों ने फिर इमाम हुसैन, उनके परिवार और साथियों पर हमला कर दिया। इमाम हुसैन और उनके साथियों ने यजीद की बड़ी सेना का हिम्मत के साथ मुकाबला किया। उन्होंने इस मुश्किल वक्त में भी सच्चाई का दाम नहीं छोड़ा और आखिरी सांस तक गलत के खिलाफ लड़ते रहे। इसलिए मनाते हैं मातम मुहर्रम, यह मातम हजरत इमाम हुसैन की शहादत के गम में मनाया जाता है। मुहर्रम में मुसलमान हजरत इमाम हुसैन की इसी शहादत को याद करते हैं। शिया मुस्लिम समुदाय के लोग 10 तारीख को बड़ी तादाद में ताजिया और जुलूस निकालकर गम मनाते हैं। जुलूस के दौरान पूर्वजों की कुर्बानी की गाथाएं सुनाई जाती हैं ताकि लोग धार्मिक महत्व और जीवन मूल्यों को समझ सकें।
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