उपेक्षा के चलते राजस्थान में अगले आम चुनाव से पहले उभर सकता है तीसरा मजबूत विकल्प | New India Times

अशफाक कायमखानी, ब्यूरो चीफ, जयपुर (राजस्थान), NIT:

उपेक्षा के चलते राजस्थान में अगले आम चुनाव से पहले उभर सकता है तीसरा मजबूत विकल्प | New India Times

राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा अपने चहते व विश्वसनीय पंजाब व राजस्थान केडर के कुछ ब्यूरोक्रेट्स को सरकार में अहम जिम्मेदारी देकर यानी उनकी सरकार में तूती बढ़चढ़ कर बोलती नजर आने से राजनीतिक व ब्यूरोक्रेसी में अजीब सी हलचल देखने को मिल रही है। वहीं भाजपा व कांग्रेस के एक एक सीनियर नेता की पार्टी में घोर उपेक्षा होना साफ नजर आने के परिणाम अगले कुछ दिनों में प्रदेश में तीसरे राजनीतिक विकल्प का रास्ता तय कर सकता है।
राजस्थान में मुख्यमंत्री गहलोत ने अपनी सरकार के आधे से अधिक समय गुजर जाने के बावजूद अपने चहेते एक दो जनों की राजनीतिक नियुक्ति करने के साथ साथ एक दर्जन से अधिक सेवानिवृत्त ब्यूरोक्रेट्स व न्यायाधीश को अहम पदों पर नियुक्त किया है जबकि इसके विपरीत नेताओं व कार्यकर्ताओं सहित जनप्रतिनिधियों की मंत्रीमंडल विस्तार व राजनीतिक नियुक्ति पाने के इंतजार में आंखें पथरा गई हैं।

उपेक्षा के चलते राजस्थान में अगले आम चुनाव से पहले उभर सकता है तीसरा मजबूत विकल्प | New India Times

राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को पहले भाजपा नेता व पूर्व मंत्री मदन दिलावर व फिर विपक्ष के नेता गुलाब चंद्र कटारिया द्वारा बिना नाम लिये टारगेट करने की चर्चा काफी गरम है। वहीं पार्टी स्तर पर किये जा रहे निर्णयों में राजे की अनदेखी लगातार होते रहने पर उनके समर्थक विधायक कभी कभार गुबार विभिन्न तरह से निकालते रहते हैं जबकि उधर कांग्रेस में पहले गहलोत व पायलट स्वयं किसी बहाने एक दुसरे पर हमलावर होते थे अब उन दोनों नेताओं की चुप्पी साधने पर उनके समर्थक विधायक आपस में जबदस्त रुप से एक दूसरे पर हमलावर हैं। दोनों नेताओं के समर्थक विधायकों के आपस में जबदस्त रुप से हमलावर होकर ब्यान देने, प्रैस कांफ्रेंस करने से इन दिनों कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति की ठसक बाहर नजर आने लगी है।
राजस्थान लोकसेवा आयोग में ब्यूरोक्रेट्स व गैर कांग्रेसी विचारधारा वाले लोगों को बतौर सदस्य मनोनीत करके गहलोत ने अपने इरादे पहले ही स्पष्ट कर दिये थे। वहीं गहलोत सरकार में राजनीतिक व जनप्रतिनिधियों की बजाये कुछ ब्यूरोक्रेट्स की बल्ले बल्ले होने से राजनीतिक हलकों की चर्चा का खास मुद्दा बन चुका है। कांग्रेस में वर्तमान में पार्टी को मजबूत करने व केंद्र सरकार की गलत नीतियों का जमकर विरोध करके जनता को राहत दिलाने के बजाये प्रदेश कांग्रेस गहलोत व पायलट के मध्य बंट कर एक दुसरे को कमजोर करने में पूरा दम लगाये हुये हैं। उधर भाजपा में भी वसुंधरा राजे समर्थक व विरोधी एक दूसरे पर किसी ना किसी बहाने हमलावर नजर आते हैं।
कुल मिलाकर यह है कि राजस्थान में हाईकमान स्तर पर जोड़तोड़ करके मुख्यमंत्री बनने में गहलोत को माहिर माना जाता है लेकिन उनके राजनीतिक इतिहास के अनुसार उन्हें सरकार रिपिटर कतई नहीं माना जाता है बल्कि 156 से 56 व 98 से 21 सीट पर कांग्रेस को पटक कर पांच साल भागने वाले नेता के तौर पर गहलोत को पहचाना जाता है। भाजपा व कांग्रेस में जनाधार वाले व पब्लिक नेता पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे व पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट की उनकी पार्टी के अंदर हो रही उपेक्षाओं के चलते प्रदेश में तीसरे विकल्प की रुपरेखा बनती साफ नजर आने लगी है।


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