मुख्यमंत्री गहलोत ने मुस्लिम समुदाय के साथ लोकसेवा आयोग सदस्यो के मनोनयन मे एक दफा फिर किया दगा | New India Times

अशफाक़ कायमखानी, जयपुर (राजस्थान), NIT:

मुख्यमंत्री गहलोत ने मुस्लिम समुदाय के साथ लोकसेवा आयोग सदस्यो के मनोनयन मे एक दफा फिर किया दगा | New India Times

दिल्ली हाईकमान से जोड़ तोड़ करके राजस्थान के तीसरी दफा मुख्यमंत्री बनने वाले अशोक गहलोत का मुस्लिम समुदाय के साथ राजनीतिक दगा करने का इतिहास काफी पुराना चला आ रहा है। हाल ही में राजस्थान लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष व चार अन्य सदस्यों के मनोनयन के बाद पूर्ण आयोग बनाने में मुस्लिम समुदाय को प्रतिनिधित्व नहीं देकर सौ प्रतिशत मत कांग्रेस को देकर राजस्थान में कांग्रेस सरकार बनाने वाले मुस्लिम समुदाय के साथ दगा करने को सालों याद किया जायेगा। मुख्यमंत्री गहलोत के उक्त कदम के बाद समुदाय में गहलोत व कांग्रेस के प्रति काफी आक्रोश पनपता नजर आ रहा है। कुछ लोग तो गहलोत के उक्त कदम को संघी प्रवृत्ति वाला कदम भी कहने से चूक नहीं रहे हैं।
हालांकि मुख्यमंत्री गहलोत के तीसरी दफा मुख्यमंत्री बनने के कार्यकाल के अतिरिक्त प्रदेश में शिवचरण माथुर सरकार में गहलोत के गृहमंत्री रहने का छोटा कार्यकाल भी मुस्लिम समुदाय पर पहाड़ तोड़ने से कम नहीं रहा था। पता नहीं कि गहलोत के दिल में मुस्लिम समुदाय के प्रति इतनी नफरत क्यों व कब से भरी पड़ी है। गहलोत संघ में रहें या नही रहें यह तो वो जाने लेकिन कांग्रेस सरकार बनाने में महत्वपूर्ण किरदार अदा करने वाले मुस्लिम समुदाय को गहलोत द्वारा सत्ता में उनको वाजिब हिस्सेदारी देने के बजाये हमेशा राजनीतिक तौर पर किनारे लगाने की भरपूर कोशिशें होती रही हैं।
भारत भर में टाडा जैसे कानून के खिलाफ़ जब मजबूती के साथ आवाज उठ रही थी तब गहलोत ने राजस्थान प्रदेश सरकार के गृहमंत्री की हैसियत से प्रदेश में टाडा कानून के तहत पहली गिरफ्तारी के आदेश देकर एक तरह से काला कानून टाडा लगाने की शुरुआत की थी। उसके बाद से प्रदेश में काफी मुस्लिम नौजवानों के टाडा कानून के तहत जेलों मे ठूंसने का लम्बा सिलसिला शुरू हुआ था। उस समय गहलोत के प्रति मुस्लिम समुदाय में नफरत का माहोल बना। 1989 के लोकसभा चुनाव में गहलोत जब जोधपुर से कांग्रेस उम्मीदवार बने तब मुस्लिम समुदाय ने मिलकर अब्दुल गनी सिंधी नामक एक मामूली उम्मीदवार इंसाफ पार्टी के नाम पर गहलोत के सामने चुनाव में उतार दिया। गनी चुनाव तो नहीं जीत पाये लेकिन उस चुनाव मे गहलोत बुरी तरह चुनाव हार गये। उस हार की टीस ने गहलोत के मन में शायद मुस्लिम समुदाय के प्रति एक अलग भावना को जन्म दिया। पहले जोधपुर से किसी ना किसी सीट से मुस्लिम विधायक बनते रहते थे लेकिन गहलोत के राजनीति में उदय होने के बाद जोधपुर जिले से मुस्लिम विधायक नहीं बन पाये हैं।
गहलोत के मुख्यमंत्री कार्यकाल में थानेदार फूल मोहम्मद को सरकारी डयूटी करते समय सरेआम जलाकर शहीद करने के बाद मुख्यमंत्री व उनके मंत्रिमंडल के किसी भी सदस्य ने शहीद के घर जाकर उनके परिवार जनों को सांत्वना तक देना आज तक उचित नहीं समझा जबकि उक्त तरह के अन्य मामलों में सरकार उलटे पांव दौड़े दौड़े जाती रही है।
मुख्यमंत्री गहलोत के कार्यकाल में भरतपुर के गोपालगढ़ की मस्जिद में नमाजियों पर पुलिस द्वारा गोली चलाकर भून देने के बावजूद मरने वालों के परिजनों को ही मुलजिम बनाकर जेल में ठूंसा जाना नफरत की इंतिहा होना ही कहा जा सकता है। गहलोत के पिछले दो मुख्यमंत्री कार्यकाल पर अधिक रोशनी ना डालकर केवल इस कार्यकाल के 22 महीनों पर नज़र दौड़ाएं तो उनके द्वारा कदम कदम पर मुस्लिम समुदाय को राजनीतिक तौर पर किनारे लगाने के भरपूर उदाहरण मिलते रहे हैं। सरकार के गठन के समय नो मुस्लिम विधायकों में से केवल मात्र एक विधायक शाले मोहम्मद को मंत्री बनाकर उसको मेन स्टीम वाले विभाग देने की बजाये मात्र अल्पसंख्यक मंत्रालय तक सीमित रखना। इसके बाद एक महाअधिवक्ता व सोलह अतिरिक्त महाअधिवक्ताओं का जोधपुर व जयपुर हाईकोर्ट बेंच में मनोनयन करने में एक भी मुस्लिम एडवोकेट को शामिल नहीं करना। इसके बाद सरकारी स्तर पर उर्दू शिक्षा व मदरसा तालीम को तहस नहस करने की चालें लगातार चलते रहना। इसके अतिरिक्त मदरसा शिक्षा सहयोगियों के साथ लगातार वादाखिलाफी करना भी जारी है।
सौ प्रतिशत मत देकर राजस्थान में कांग्रेस की सरकार गठित करने वाले मुस्लिम समुदाय को हाल ही में राजस्थान लोकसेवा आयोग में अध्यक्ष व चार सदस्यों के मनोनयन में मुस्लिम प्रतिनिधित्व मिलने की पूरी उम्मीद होने के बावजूद गहलोत एक दफा फिर मुस्लिम समुदाय को राजनीतिक तौर पर किनारे लगाने में कामयाब रहते हुये एक भी मेम्बर मुस्लिम को नहीं बनाकर अपने दिल व मन को सुकून दिया होगा। मनोनीत अध्यक्ष यादव मूलरूप से हरियाणा के हैं वहीं सदस्य जसवंत राठी भी हरियाणा से ताल्लुक रखते हैं। एक सदस्य संगीता आर्य मुख्यमंत्री के नजदीकी आईएएस की पत्नी जो मात्र संगीत टीचर बताते हैं। इसके अतिरिक्त कांग्रेस नेता राहुल गांधी के खिलाफ 2014 में अमेठी से लोकसभा चुनाव लड़ने वाले एवं उन्हें पप्पू कहकर इनसल्ट करने वाले कवि कुमार विश्वास की पत्नी मंजू को गहलोत ने सदस्य बनाकर तो सबको चौंका दिया है।
कुल मिलाकर यह है कि मुस्लिम समुदाय को राजनीतिक तौर पर किनारे लगाने व उनके सत्ता में हिस्सेदारी नहीं देने का मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का इतिहास काफी पुराना चला आ रहा है। मारवाड़ी की एक कहावत है कि भरोसा की भैंस पाडया लावे। एवं बिन रोये मां भी दूध नही पिलाये। यह दोनों कहावत मुस्लिम समुदाय पर खरी उतरती है। लोकसेवा आयोग के सदस्यों के मनोनयन में मुस्लिम को दूर रखने से आक्रोशित मुस्लिम समुदाय को चुपचाप बैठने की बजाये खुले में आकर पार्टी हाईकमान व पार्टी के बाहर अपने हक की आवाज बुलंद करनी चाहिए। वहीं मुख्यमंत्री गहलोत के चेहरे से अब धीरे धीरे नकाब उतरने लगा है।


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