अशफाक कायमखानी, जयपुर, NIT;
हाल ही पांच राज्यों मे हुये विधान सभा चुनावों के 11 मार्च को आये परीणाम में खासतौर पर यूपी चुनाव परीणाम को लेकर अपने आपको कथित तौर पर सेक्यूलर कहने वाले दल व मुस्लिम धार्मिक व सियासी लीडर खुद अपने गिरेबान में झांक कर देखने के बजाय सभी दुसरों के माथे पर दोष मंढने में पुरी ताकत लगाकर अपने आपको पाक साफ दिखाने में प्रयासरत हैं। अगर मामूली सा मंथन मुस्लिम नेता अपने किये कोशिशों पर भी कर लेते है तो चाहे वो ना माने लेकिन उन्हें अपने आपको कमसे कम दिल में तो दोषी ठहराना पड़ेगा।यूपी का यह चुनाव आम मतदाताओं के लिये अपने चहते उम्मीदवार को गुण-दोष के अधार पर चुनने का था। लेकिन कुछ कथित सेक्यूलर दलों व चुनावी समय में कुकरमुत्ते की तरह पैदा होने वाले कतिथ सियासी व धार्मिक मुस्लिम नेताओ के अपनी बूद्दी का सही यूज ना करने की वजह से भाजपा के ऐजेण्डे के मुताबीक उसमें फंसते हुये मुसलमान v/s अन्य का मुकाबला बनाकर रख दिया। जिसके चलते एव कथित सेक्यूलर दलों में मतों का बंटवारा होने से भाजपा को भारी बहुमत मिला।
हाल ही में यूपी में हुये चुनावों मे बसपा व सपा-कांग्रेस गठबंधन ने अलग अलग मिलामिला 200 से अधिक मुस्लिम उम्मीदवार देने के अलावा अन्य छोटे छोटे दल व निर्दलीय मिलकर करीब 300 मुस्लिम उम्मीदवार ज्यादातर जगह आमने सामने भी लड़े जहा उनको मुस्लिमों के मतों के अलावा अन्य मत काफी कम मात्रा में आना भी भाजपा की जीत में एक प्रमुख कारण माना जा रहा है। कुछ मुसलमान यह भी कहते हैं कि मुस्लिम मतदाता एकजूट ना होने व अनेक दल के मुस्लिम उम्मीदवारों मे बंटने के चलते यह परीणाम आये हैं। पर वो यह भूल गये कि उनके एक होने एक होने के कहने के चलते दुसरे भी एक हो सकते हैं। सियासत हमेशा सियासी बोलो व कदमों के कारण होती है। कभी भी सियासी जंग हो हल्ला व वेवकूफी के बोल बोलने से नही जीती जा सकती है।दिल्ली के विधानसभा चुनावों में शाही इमाम अहमद बूखारी ने आम आदमी पार्टी को वोट देने की अपील करने के साथ ही पार्टी के नेता केजरीवाल ने उनकी अपील की जरुरत ना बताते हुये जनता को अपने विवेक से मतदान करने की अपील की थी। नतीजा यह हुवा की तीन सीट को छोडकर आम आदमी पार्टी सभी सीट जीत गई थी। जबकि इस चुनाव में अनेक मुस्लिम धार्मिक नेता भाग भाग कर बसपा व सपा गठबंधन को वोट करने की अपील करते रहे ओर आम मुस्लिम मतदाता इध नेताओ की अपील मे इतना उलझ कर रह गया कि वो भाजपा के खिलाफ सटीक फेसला लेने मे चूक करदी। यूपी में अन्य मतदाताओं के समान ही मुस्लिम भी केवल यूपी का आम मतदाता था लेकिन बसपा नेता मायावती व सपा के अनेक नेताओं के अलावा ओवेसी जैसे करीब एक दर्जन मुस्लिम नेताओं के बोल से वो आम मतदाता ना होकर खास ओ आम मतदाता बनने से वो पुरी तरह आलग थलग पड़ते चले गये।
कुल मिलाकर यह है कि मुस्लिम समुदाय के ज्यादातर सियासी व धार्मिक नेताओं ने आम मतदाता को सियासी तौर पर अवेयर करने के बजाय हमेशा अपने अपने स्वार्थ के खातिर हारने की कोशिशे ही करते रहे हैं। दुसरी तरफ अपने आपको सेक्यूलर व मुस्लिम हितेषी कहने वाले दलों ने भी इन्हें केवल वोटबैंक की तरह ही हमेशा यूज करते रहे हैं। इनके उन्नती व तालीम के लिये केवल वादे किये पर काम कभी करने को सोचा भी नही। वहीँ भाजपा ने अपने स्वार्थ को पुरा करने के लिये मुसलमानों को सियासी तौर पर अलग थलग करने में अधिक समय लगाया। अब सभी मुस्लिम धार्मिक व सियासी नेताओं को यूपी चुनाव परीणाम का दोष ईवीएम मशीन व अन्य कारणों पर मंढने की बजाय खूद के गिरेबान में झांकना चाहिये ओर उन्हें मानना होगा कि उनके शोला बयान तकरिरो से केवल ओर केवल नुक्सान ही होता है।
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