अविनाश द्विवेदी, कटनी (मप्र), NIT; वैसे तो किस्मत पता नही क्या क्या खेल खेलती है लोगों के साथ। कोई इतना पैसे वाला होकर भी कुछ नही कर सकता औऱ कोई है कि दो वक्त की रोटी के लिए तरसता है। जी हाँ मैं बात कर रहा हु कटनी में रहने वाले विष्णु गोंदिया जी की जिनके पिताजी बचपन में ही गुजर गए थे जब विष्णु 5 वर्ष के थे बाद में समय बदलाता गया लोग बदलते गये। विष्णु ने पढ़ाई भी की 8 वी क्लास तक लेकिन बाद किसी मजबूरी के कारण पढ नहीं पाए। दिन गुजरते गए महीने गुजरते गए काफी वर्ष गुजर गए और कुछ समय बाद माता जी का एक्सीडेंट हो गया जिससे उनके हाथ में चोट लग गयी और वह कार्य नही कर पा रही तभी विष्णु ने अपनी माँ से बोला कि माँ अब तो आराम करो, अब तेरा बेटा कार्य करेगा। फिर क्या विष्णु भाई निकल पड़े कुछ कार्य के लिए ओर उन्होंने एक दुकान में कार्य किया।
कुछ मालिक का व्यवहार ठीक ना होने के कारण विष्णु जी ने तिलक कॉलेज के बगल पर कार्य करना छोड़ दिया और अपना खुद का व्यवसाय दुबे कॉलोनी के बाहर करने लगा। धीमे धीमे उन्होंने अपने व्यवसाय को बढा लिया।
लेकिन माता जी ने भी कार्य करना बंद नही किया वह भी करती रही और उनका एक छोटा लड़का जिसका आशीष भी कार्य करता रहा और अपने जीवन के इस पहिये को यूयूंही चलाते रहे।
विष्णु जी का कहना उन लोगों के लिए जिसके साथ यह घटना घटित हो
विष्णु जी का कहना है कि वैसे तो जैसा मेरे साथ हुआ भगवान करे किसी के साथ न हो अगर दुःखद हो भी जाये तो वह मेहनत करे क्योंकि वह कहावत है मेहनत करने वालों की हार नहीं होती।
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