मेहलक़ा इक़बाल अंसारी, ब्यूरो चीफ, बुरहानपुर (मप्र), NIT:
जागृत आदिवासी दलित संगठन के नेतृत्व में देश व्यापी किसान आंदोलन और ग्रामीण भारत बंद में शामिल होते हुए बुरहानपुर के आदिवासियों ने रैली एवं आम सभा का आयोजन किया। प्रधानमंत्री द्वारा फसलों की लागत की डेढ़ गुना दाम पर कानूनी गारंटी देने, किसानों की आय दोगुना करने के वादों की वादा खिलाफी के ख़िलाफ़ देशभर में हो रहे आंदोलन में शामिल होते हुए, फसलों की लागत पर डेढ़ गुना दाम तय करने की कानूनी गारंटी की मांग उठाई गई । बढ़ती महंगाई, हजारों में हजारों में आदिवासी किसान-मजदूरों के पलायन, वन अधिकार अधिनियम के क्रियान्वयन न होने, शिक्षा के निजीकरण और प्रदेश में बढ़ रहे आदिवासियों पर अत्याचार के खिलाफ तहसीलदार के माध्यम से प्रधान मंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा।
फसलों पर बढ़ते खर्च, बढ़ती महंगाई और ऊपर से फसलों का पूरा भाव न होने के कारण आदिवासियों को अपने गाँव से उजड़ कर गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक तक जाना पड़ रहा है। रोजगार न देकर सरकार आदिवासियों को दूसरे राज्यों में कंपनियों और बड़े सेठो के लिए सस्ते बंधुआ मजदूर बनने मजबूर कर रही है। गांव में रोजगार खोलने की जगह, सरकार रोजगार गारंटी में मजदूरों की पेमेंट नहीं कर रही है। प्रदेश में रोजगार गारंटी में मजदूरों की 850 करोड़ की राशि लंबित है। आसमान छूती महंगाई के जमाने में रोजगार गारंटी में 221 रुपए की मजदूरी काफी नहीं है कम से कम 200 दिन की मजदूरी और 800 दिन एक दिन की मजदूरी मिलनी चाहिए।
शिक्षा इतनी महंगी हो रही है की हमें कर्ज़ लेकर बच्चों को पढ़ाना पड़ रहा है स्कूलों को मजबूत करने की जगह, पहले से खस्ताहाल स्कूलों को और भी कमजोर किया जा रहा है। आज मध्य प्रदेश में शिक्षकों के एक लाख पद रिक्त हैं। 27 हजार स्कूलों में बिजली नहीं है। 01 लाख सरकारी स्कूलों को मजबूत करने की जगह सरकार सीएम राईज़ के नाम पर सरकार केवल 9200 स्कूलों की जिम्मेदारी ले रही है – 10-15 किलोमीटर में एक स्कूल होगा, और बाकी स्कूल अपने आप बंद हो जाएंगे।
आदिवासियों के शिक्षा के संवैधानिक अधिकार पर सीधा हमला है।जिस जल जंगल जमीन की लूट के खिलाफ बिरसा मुंडा, टंट्या मामा, भीमा नायक जैसे आदिवासी क्रांतिकारी लड़े थे, वही लूट आज देशभर में भी जारी है । मध्य प्रदेश में हजारों दावे लंबित है, लेकिन सरकार वन अधिकार कानून का पालन नहीं कर रही है – उल्टा, बिना वन अधिकार कानून का पालन किए, बिना ग्राम सभा के अनुमति के कंपनियों को जंगल बेचने और भी आसान करने वन संरक्षण कानून और उसके नियम में नए बदलाव लाए हैं । छत्तीसगढ़ के हसदेव आरण्य में अडानी की खदान के लिए बिना ग्राम सभा के अनुमति के 3000 एकड़ जंगल नष्ट किया जा रहा है – इसी तरह मणिपुर, महाराष्ट्र, ओड़ीशा, झारखंड जैसे राज्यों में जंगलों को कंपनी के हवाले करने के लिए आदिवासियों पर हिंसा, बेदखली और अत्याचार हो रहा है।
कुछ ही दिनों पहले बैतूल में बजरंग दल के सदस्य द्वारा एक आदिवासी युवक को मुर्गा बनाकर बुरी तरह पीटा गया और अभी कल ही बैतूल जिले में दूसरी घटना सामने आई। जहां एक आदिवासी युवक को निर्वस्त्र कर बुरी तरह से पीटा गया । बेतुल में हुई घटना को जंगल राज बताते हुए आदिवासियों ने आदिवासियों पर हो रहे अत्याचार का भी विरोध किया । राष्ट्रीय अपराध रेकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार मध्य प्रदेश में हर दिन आदिवासियों और दलितों पर अत्याचार के 18 मामले दर्ज हो रहे है । ज्ञापन में बेतुल में आदिवासी अत्याचार की दोनों घटनाओं पर सख्त से सख्त कार्यवाही की मांग की गई।
फ़सलों की लागत पर डेढ़ गुना भाव का सरकारी रेट तय कर उसकी कानूनी गारंटी दी जाने, रोजगार गारंटी में कम से कम 200 दिन काम और 800 रुपए एक दिन की मजदूरी, और मजदूरों को 26000 रुपए महीने की न्यूनतम मजदूरी की मांग की गई। बिना वन अधिकार कानून के क्रियान्वयन किए और बिना ग्राम सभा के अनुमति के जंगलों को कंपनियों को हवाले करने वाले वन संरक्षण कानून 2023 और उसके नियमों को खारिज करने की मांग करते हुए प्रधान मंत्री को ज्ञापन सौंपा गया। कार्यक्रम में जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस), आदिवासी छात्र संगठन, आदिवासी एकता परिषद, आदिवासी एकता संगठन के कार्यकर्ता भी शामिल होकर सभा को संबोधित किए।
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