मेहलक़ा इक़बाल अंसारी, ब्यूरो चीफ, बुरहानपुर (मप्र), NIT:

एक वकील अपने प्रोफेशन में अपने कानूनी दांव पेंच, न्याय दृष्टांत और क़दीमी नज़ीर के माध्यम से नवाचार करके ही अपनी योग्यता को साबित कर सकता है। हाई कोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट के प्रैक्टिसिंग एडवोकेट एवं बुरहानपुर के सीनियर एडवोकेट मनोज कुमार अग्रवाल का नाम इसी श्रेणी में रखा जा सकता है। नवाचार करना उन का मशगला भी कहा जा सकता है। सामान्य रूप से किसी भी प्रकरण में विपक्षी पार्टी पर हजार 500 ₹ की कास्ट 1000 500 ₹ खर्चा दिलाने का रिवाज या परिपाटी देखी गई है। लेकिन अधिवक्ता मनोज कुमार अग्रवाल के आग्रह को माननीय न्यायालय द्वारा एवं मान्य करते हुए₹50000 का खर्च विपक्षी पार्टी से दिलाने का आदेश पारित किया है। प्राप्त जानकारी के अनुसार न्यायालय श्रीमान सप्तम ए डी जे इंदौर (पी.अ.- श्री लखन लाल गोस्वामी) ने दि. 15.12.2023 को ऐतिहासिक फैसला देते हुए केनरा बैंक , शाखा नंदानगर इंदौर को आदेश दिया कि वह डिक्रीधारी / कमल कॉट स्पिन प्रा.लि.बुरहानपुर को न्यायालय में लगे खर्च की राशि ₹ 50,000/- अदा करें।
व्यर्थ के आवेदन लगाकर वसूली प्रक्रिया को प्रभावित/लंबान (लिंगर आन) करके न्यायालय के अमूल्य समय की बर्बादी के साथ-साथ विपक्षी पक्षकार को प्रत्येक पेशी पर वकील नियुक्त करने आदि के भारी भरकम खर्च के मामले में डिक्रीधरी “कमल कॉट्सपिन प्रा. लि. बुरहानपुर” की ओर से वसूली प्रक्रिया /निष्पादन न्यायालय में लगे खर्च की राशि दिलाए जाने हेतु प्रस्तुत आवेदन पर न्यायालय श्रीमान सप्तम ए डी जे इंदौर (पी.अ.- श्री लखन लाल गोस्वामी) ने यह फैसला दिया है।
डिक्रीधारी कमल कॉट स्पिन बुरहानपुर की ओर से मा. निष्पादन न्यायालय सहित हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में पैरवीरत अधिवक्ता श्री मनोज कुमार अग्रवाल ने इस फैसले को ऐतिहासिक फैसला बताते हुए कहा कि यह फैसला न्यायिक क्षेत्र में इंकलाबी तबदीली (आमूलचूल परिवर्तन) करने वाला महत्वपूर्ण फैसला है। इस फैसले से वे सभी पक्षकार भी सोचने पर मजबूर होंगे कि मात्र ₹ 10/- का टिकट लगाकर न्यायालय में सुनवाई तारीख बढ़वाई जा सकती है, बल्कि ऐसी सोच रखने वाले पक्षकारों को, इस फैसले के परिणाम स्वरूप अब भविष्य में “विपक्षी पक्षकार को न्यायालय में लगने वाले खर्च” की अदायगी भी करनी हो सकती है तथा इसमें न्यायालय को भी छूट दिए जाने की कोई गुंजाइश नहीं होगी।
अधिवक्ता श्री मनोज कुमार अग्रवाल ने यह भी कहा कि विधि के क्षेत्र में यह महत्वपूर्ण बदलाव मा. सुप्रीम कोर्ट/भारत के मुख्य न्यायमूर्ति महोदय (श्री जस्टिस डी. वाय. चंद्रचूड़) के द्वारा न्यायिक क्षेत्र में किए जा रहे महत्वपूर्ण सुधारों के कारण हुआ है,क्योंकि कुछ समय पूर्व ही उन्होंने कहा था कि फैसला होने के बाद भी, निष्पादन अर्थात वसूली प्रक्रिया में अब भी 1872 के ज़माने के कानून अनुसार कई वर्ष लग रहे हैं, जिसकी मुखालिफत करते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश ने सुधारों की बात कही थी और आज सप्तम एडीजे न्यायालय इंदौर का हालिया निर्णय इन सुधारों का ही नतीजा है।
श्री अग्रवाल ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि उनके पक्षकार की ओर से निष्पादन न्यायालय में 115 सुनवाई दिनांको में लगे खर्च के रूप में अधिक राशि (16,00,000 + 7,50,000 = 23,50,000/-) मांगी गई थी किंतु सप्तम ए डी जे / निष्पादन न्यायालय इंदौर द्वारा केवल ₹ 50,000/- मंजूर की गई है। खर्च मंजूर करने के फैसले से तो उनका पक्षकार संतुष्ट है किंतु इसकी राशि की मात्रा के फैसले से उनका पक्षकार संतुष्ट नहीं है। इसलिए इस राशि की बढ़ोतरी के लिए वे मा. उच्च न्यायालय में कार्रवाई करने जा रहे हैं।
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