शीत सत्र पर करोड़ों का खर्च, असंवैधानिक कार्यपालिका के चलते किसे न्याय दे सकेगी विधायिका, भाजपा & कंपनी के प्रचार पर लुटाए जा चुके हैं एक हजार करोड़ रुपए | New India Times

नरेन्द्र कुमार, ब्यूरो चीफ़, जलगांव (महाराष्ट्र), NIT:

महाराष्ट्र विधानसभा के शीत सत्र का आज पहला दिन है विपक्ष ने किसानों के हित में आंदोलन आरंभ कर दिया है। कार्यपालिका (मंत्री परिषद) को सुप्रीम कोर्ट द्वारा असंवैधानिक करार दिए जाने के बाद यह पहला सत्र है। विधायिका (विधानसभा) के संप्रभु होने के कारण शीत सत्र का कामकाज आधिकारिक तौर पर सदन के रेकॉर्ड में शामिल रहेगा। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक स्पीकर को 31 दिसंबर 2023 तक एकनाथ शिंदे गुट और 31 जनवरी 2024 के भीतर अजीत पवार गुट को लेकर अनुच्छेद 10 के उल्लंघन के विषय में फैसला देना है। इसके बाद इन दोनों मामलों को क्लब कर के शीर्ष अदालत अनुच्छेद 142 तहत अपना विशेष अधिकार इस्तेमाल करने पर विचार कर सकती है।

शीत सत्र के कामकाज से किसानों और आरक्षण की मांग करने वाले बहुजन मराठा समाज को कोई ठोस सहायता मिलेगी इसकी कोई गुंजाइश नहीं है। सर से पांव तक कर्ज में डूबी राज्य सरकार की तिजोरी से बीते डेढ़ साल में भाजपा और उसकी टीम के प्रचार प्रसार के लिए 700 करोड़ रुपया खर्च किया जा चुका है। इसमें गैरकानूनी तरीके से लाभ के पद धारण करने वाले मंत्रियों को प्रदान की गई सुविधाओं का खर्च 300 करोड़ रुपए है। सुखा, बोगस बीज और बेमोसमी बारिश के कारण बर्बाद हो चुकी कपास के घटे हुए उत्पाद तथा दाम से किसान कर्ज की खाई में दब गया है। विश्वगुरु के विकसित भारत का ठेकेदार एक साल से सरकारी बकाया 10 हजार करोड़ रुपया मांग रहा है जो उसको नहीं दिया जा रहा है। फेकू नेताओं के आश्वासनों पर विश्वास रखने वाला मराठा, धनगर समाज सड़कों पर उतरकर सामाजिक आरक्षण की लड़ाई लड़ रहा है। राज्यपाल के नाम से चलाया जा रहा प्रशासन आखिर कौन कौन से पीड़ितों को किस हद तक न्याय देगा इस सवाल का ज़बाब सिर्फ़ और सिर्फ़ आम चुनाव ही दे सकते हैं। संविधान के प्रती उसके संरक्षक का इकबाल बुलंद रहा तो लोकसभा के साथ साथ महाराष्ट्र विधानसभा का आम चुनाव एक साथ करवाया जा सकता है।


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