शासकीय उ.मा. विद्यालय ढेकल बड़ी झाबुआ में विधिक साक्षरता एवं जागरूकता शिविर का किया गया आयोजन | New India Times

रहीम शेरानी हिन्दुस्तानी/पंकज बडोला, झाबुआ (मप्र), NIT:

शासकीय उ.मा. विद्यालय ढेकल बड़ी झाबुआ में विधिक साक्षरता एवं जागरूकता शिविर का किया गया आयोजन | New India Times

प्रधान जिला न्यायाधीश एवं अध्यक्ष जिला विधिक सेवा प्राधिकरण झाबुआ श्रीमती विधि सक्सेना के मार्गदर्शन एवं निर्देशानुसार द्वितीय जिला न्यायाधीश झाबुआ सुभाष सुनहरे की अध्यक्षता तथा जिला विधिक सहायता अधिकारी सागर अग्रवाल, अधिवक्ता विश्वास शाह की उपस्थिति में शासकीय उ.मा. विद्यालय ढेकल बड़ी झाबुआ में नालसा (बच्चों को मैत्री पूर्ण विधिक सेवाएं एवं उनके संरक्षण के लिए विधिक सेवाएँ) योजना-2015 के आलोक में विधिक साक्षरता एवं जागरूकता शिविर का आयोजन किया गया।

शिविर में द्वितीय जिला न्यायाधीश सुभाष सुनहरे ने बाल यौन शोषण एवं बच्चों से संबंधित कानून विषय पर जानकारी देते हुए कहा कि भारत सरकार द्वारा बच्चों के विरूद्ध बढ़ते लैंगिक अपराधों की रोकथाम हेतु विशेष कानून “लैंगिक अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम-2012” वर्ष 2012 में पूरे देश में लागू किया गया है।

यह अधिनियम बच्चों को सभी प्रकार के यौन शोषण, शोषण और हिंसा से बचाने के लिए बनाया गया था।
यह ऐसे अपराध करने वालों के लिए कड़ी सजा का प्रावधान करता है और POCSO मामलों से निपटने के लिए विशेष अदालतें भी स्थापित करता है। POCSO अधिनियम एक ऐतिहासिक कानून है जिसने बच्चों को यौन शोषण से बचाने में महत्वपूर्ण प्रगति की है। बच्चों और उनके परिवारों को पता चले कि उनके अधिकार क्या हैं और यदि उनके साथ दुर्व्यवहार होता है तो सहायता कैसे प्राप्त करें आदि विषय पर विस्तार से जानकारी दी गई।

शिविर में जिला विधिक सहायता अधिकारी सागर अग्रवाल ने बच्चों को मूल अधिकार एवं मूल कर्तव्य तथा शिक्षा का अधिकार पर विस्तार से जानकारी दी उन्होंने बताया कि भारत में शिक्षा का अधिकार एक मौलिक अधिकार है। यह संविधान के अनुच्छेद 21ए में निहित है, जिसमें कहा गया है कि “राज्य छह से चौदह वर्ष की आयु के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करेगा जैसा कि राज्य कानून द्वारा निर्धारित कर सकता है। यह अधिकार कई कारणों से आवश्यक है। सबसे पहले, व्यक्ति के विकास के लिए शिक्षा आवश्यक है।

यह लोगों को अपनी पूरी क्षमता तक पहुंचने और समाज में योगदान करने की अनुमति देता है। दूसरा किसी राष्ट्र के विकास के लिए शिक्षा आवश्यक है। यह एक मजबूत अर्थव्यवस्था और जीवंत लोकतंत्र बनाने में मदद करता है। शिक्षा का अधिकार एक मौलिक अधिकार है जिसका लाभ सभी बच्चों को मिलना चाहिए।

कार्यक्रम में सुनहरे ने बच्चों के संबंध में स्कूल प्राचार्य को निर्देशित किया कि बच्चों के माता-पिता जब भी स्कूल में आते हैं तो उनको आप को यह बताना चाहिए कि बच्चों से किसी भी प्रकार का बाल श्रम ना करवाये उन्हें अच्छी शिक्षा दें। जो बच्चे मानसिक रूप से बीमार और मानसिक रूप से विकलांग हैं उन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।

अगर किसी बच्चें को कोई समस्या है तो वह सामाजिक न्याय विभाग से संपर्क कर सकता है।
शिविर में अधिवक्ता विश्वास शाह ने लीगल एड सिस्टम की जानकारी, न्यायालय में किस तरह से मध्यस्थता प्रकिया की जाती है आदि के संबंध में जानकारी प्रदान की। शिविर में शिक्षक/शिक्षिकाएं एवं छात्र/छात्राएं उपस्थित रहे।


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