रहीम शेरानी हिन्दुस्तानी, ब्यूरो चीफ, झाबुआ (मप्र), NIT:

संघ दो प्रकार के होते हैं एक कर्म नीरजरा में सहायक, दूसरा कर्म बंध में सहायक, कर्म बंध के तो अनेक संघ बने हैं जिसमें नाच गाना घूमना फिरना राजनैतिक पार्टियां जैसे कई ग्रुप है और सबसे आधुनिक वाट्सअप ग्रुप पर कर्म निर्जरा का एक ही संघ है जिसकी स्थापना सभी तीर्थंकर भगवान ने की है जो साधु, साध्वी, श्रावक, श्रविका ये चतुरवीध संघ कहलाता है संघ का महत्त्व कई गुणों का प्रदुर्भाव होता है ये चलता फिरता तीर्थ है संघ साधना को सुरक्षित रखता है संघ के माध्यम से सभी एक दूसरे के सहायक बनते हैं संघ का कभी तिरस्कार नहीं करना अगर कोई कहे की संघ ने हमारे लिये क्या किया है तो वो तो ऐसा है जैसे माता पिता ने हमारे लिये क्या किया जैसा संघ का महत्त्व है।
संघ का हमेशा विनय करना संघ में आये हर व्यावधान का सब मिलकर समाधान करना संघ की संपत्ति का सभी सदस्यों को सरक्षण करना संघ के कार्यों में गलतियां निकालने के बजाये गलतियां सुधारने पर ध्यान देंगे तो संघ मज़बूत बनेगा संघ का भी दाइत्व है की संघ के किसी सदस्य की उपेक्षा नहीं करें और उसके उत्थान के निरंतर प्रयास करें संघ से हम हैं हमसे संघ नहीं जिस प्रकार सागर से गागर है भगवान की आज्ञा अनुसार संघ चलाने में सभी को सहायक बनना चाहिये उक्त उदगार महापर्व पर्युषण के सातवे दिन अणु वत्स संयत मुनीजी नें संघ के प्रति दाइत्व के बारे में धर्म सभा को सम्बोधित किया। आत्मोत्थान वर्षावास में तप की बहार आई है जिसके अंतर्गत पर्युषण महापर्व में भी एतेहासिक लगभग 125 अठाई तप की तपस्या संपन्न होगी। प्रभावना रवि बाबूलाल सुराना परिवार द्वारा वितरित की गई संचालन विपुल धोका ने किया।
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