रहीम शेरानी हिन्दुस्तानी, ब्यूरो चीफ, झाबुआ (मप्र), NIT:
प्रदेश में भाजपा शासन करीब 14 वर्षों से है। प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान के रूप में तीसरी बार अपनी पारी खेल रहे है। ऐसे में कांग्रेस के नेता लगभग समाप्त हो चुके हैं।
हालांकि अनेक स्थानों पर पंचायत चुनाव में कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन किया है लेकिन फिर भी यदि एक रणनीति के तहत कांग्रेस मैदान में आती तो भाजपा की राह कांटों भरी हो सकती थी बहरहाल भाजपा की राह भाजपा के ही बागी प्रत्याशियों ने रोक रखी है।
नगर के 15 वार्डों की अगर बात की जाए तो आपको बता दे कि वार्ड क्रमांक 1, 3, 4, 5, 9, 11, 14 व 15 में भाजपा को अपने ही बागी कार्यकर्ताओं से चुनौती मिल रही है।
वार्ड 7 तो वार्ड 6 की तरह निर्विरोध भाजपा के खाते में आ जाता, परन्तु यहाँ भी राठौड़ समाज से भाजपा से टिकट मांग रहे प्रत्याशी के कारण मामला फंस गया है, हालांकि भाजपा समर्थित वार्ड होने से यहाँ की सीट भाजपा के ही पक्ष में रहने के आसार है। ऐसे ही कुछ हालात वार्ड क्रमांक 9 व 15 के है जहाँ भाजपा तीसरे नंबर पर चली जाए तो कोई आश्चर्य की बात नहीं।
इन सब दुविधाओं से बचने विगत दिनों भाजपा सासंद, जिलाध्यक्ष, चुनाव प्रभारी सहित अन्य जन प्रतिनिधियों ने विभिन्न वार्ड में खड़े बागियों को समझाने के अनेक प्रयास किये लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली।
थांदला की तरह ही ज़िलें की अन्य नगर परिषद झाबुआ, पेटलावद, राणापुर में भी भाजपा को भाजपा से बड़ी चुनोती मिल रही है ऐसे में बागियों के प्रति भाजपा का रुख अभी अस्पष्ट ही नजर आ रहा है, जिसका मुख्य कारण आला कमान को यह पता नही है कि वास्तविक जनाधार किसका है।
फिर भी स्थानीय नेताओं ने स्थिति से निपटने व बागियों को बिठाने में शाम – दाम – दंड – भेद नीति के तहत भाजपा समर्थन में प्रदेश मुखिया शिवराजसिंह चौहान सहित केंद्रीय मंत्रियों व भाजपा के दिग्गज नेताओं को जमीन पर उतार दिया है।
जन चर्चा है कि छोटे चुनाव में भाजपा के प्रत्याशियों के प्रति जनता व पार्टी कार्यर्ताओं की नाराजगी दूर करने व उन्हें हार से बचाने के लिए इन नेताओं के दौरें करवाये जा रहे है।
भाजपा के इस तरह के हालात की स्वयं भाजपा ही जिम्मेदार है जो उसने रायशुमारी को दरकिनार कर धनाढ्य वर्ग को टिकट वितरण किया है।
नगर की जनता भी इस खेल को अच्छे से समझ चुकी है इससे उनके वोट प्रभावित होने की संभावना न के बराबर है।
ऐसा लगता है हर वार्ड में भाजपा भाजपा से ही लड़ रही है जबकि करीब 70 दशक तक सत्तारूढ़ रही कांग्रेस आज अपने अस्तित्व बचाने की कवायद कर रही हैं, लेकिन लम्बे समय से प्रदेश में सत्ता से बेदखल रहने से उनके पास बड़े नामचीन नेताओं का आभाव स्पष्ट देखा जा सकता है।
ज़िले के वरिष्ठ नेता व कांग्रेस विधायक भी अभी तक चुनावी मैदान में नहीं आये हैं, ऐसे में कांग्रेस प्रत्याशी अपने दम पर ही चुनाव लड़ रहे है।
यदि ऐसे में कांग्रेस उन्हें थोड़ा सहयोग करे तो परिणाम कांग्रेस के पक्ष में जाने की भी पूरी संभावना है।
बहरहाल भाजपा प्रत्याशी हार के खतरें को टालने भाजपा के बड़े नेताओं की शरण में हैं।
Discover more from New India Times
Subscribe to get the latest posts to your email.