गणेश मौर्य, ब्यूरो चीफ, अंबेडकरनगर (यूपी), NIT:
अखिल भारतीय फार्मासिस्ट एसोसिएशन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बृजेश सिंह ने बताया कि ड्रग इंस्पेक्टर अनीता कुरील के संरक्षण में जनपद में ड्रग अधिनियम की धज्जियां उड़ाते हुए भ्रष्टाचार चरम पर है इसके लिए उन्होंने जिले के जिला प्रशासन को जिम्मेदार ठहराया।
जिले भर में चल रहे मेडिकल स्टोर्स में से अधिकतर दुकानें लंबे समय से नौसिखियों के भरोसे चल रही हैं। इन दुकानों पर टंगे लाइसेंस किसी ओर के नाम से हैं, जबकि यहां दवाओं की बिक्री किसी ओर के भरोसे की जा रही है।खास बात तो यह है कि मेडिकल स्टोर्स संचालकों को यह लाइसेंस आसानी से किराए पर भी मिल जाते हैं। इसके बाद इन्हीं लाइसेंस के आधार पर इन दवा की दुकानों का संचालन अन्य व्यक्ति कर रहे हैं। ऐसे में यह नौसिखिये आमजन के स्वास्थ्य को खतरे में भी डाल सकते हैं।
नियमों की अनदेखी के बावजूद जिले के किसी भी मेडिकल स्टोर पर विभाग की ओर से समय-समय पर सख्ती से कार्रवाई तक नहीं की जा रही। क्योंकि इसमें ड्रग इंस्पेक्टर की भी पूरी भूमिका होती है किसी भी दवा दुकान पर दवाओं की बिक्री करने के लिए खुद फार्मासिस्ट का होना बेहद जरूरी है लेकिन अधिकतर दुकानों पर नौसिखिए ही दवाएं बेच रहे हैं। कुछ दिन तक फार्मासिस्ट के पास काम सीखने के बाद वे भी किराए के लाइसेंस पर दुकान का पंजीयन करवा लेते हैं ओर किसी ओर की डिग्री के आधार पर ही दुकान का संचालन करते हैं। ड्रग विभाग का कहना है कि उन्होंने फार्मासिस्ट नहीं मिलने पर समय समय पर दुकान के नाम पर नोटिस निकाले हैं, लेकिन इसका रिकार्ड विभाग के पास नहीं होता। अखिल भारतीय फार्मासिस्ट एसोसिएशन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बृजेश सिंह ने बताया कि प्रदेश भर में फार्मेसी एक्ट 1948, ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट 1940 की नियमावली 1945, पी पी आर 2015 का खुलेआम उल्लंघन हो रहा है। जिसका जीता जागता उदाहरण अंबेडकरनगर टॉप टेन पर है जहां 90% दुकानें बिना आधार लिंक के चल रही जबकि लखनऊ खंडपीठ की याचिका संख्या 5327/2017 के आदेश के अनुक्रम में सितम्बर 2017 तक सभी मेडिकल को आधार से लिंक होना था ,जबकि 3 साल बाद भी आधार लिंक नहीं हुआ जोकि उच्च न्यायालय के आदेश का उललघंन है और तो और बिना आधार लिंक मेडिकल स्टोरों द्वारा विभाग को प्रतिमाह सुविधा शुल्क पहुंचाया जाता है और उसकी आड़ में उच्च न्यायालय के आदेश को धता बता दिया जाता है जिसमें औषधि निरीक्षक की भूमिका संदिग्ध है।
गौरतलब है कि जिले भर में कई दवा विक्रेताओं के पास खुद की फार्मासिस्ट की डिग्री तक नहीं है। ऐसे में डिग्री होल्डर के लाइसेंस किराए पर लेकर दुकानें संचालित की जाती है। इसके लिए दवा विक्रेता लाइसेंसी को घर बैठे ही मासिक तीन हजार रूपए किराए के रूप में देते हैं। किसी भी दवा की दुकान पर दवा की बिक्री के दौरान होने वाली गड़बड़ी का जिम्मेदार उस दुकान का लाइसेंस धारक ही होता है लेकिन अधिकतर दवा की दुकानें किराए के लाइसेंस पर चलाई जा रही है।
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