राशि राठौर, देवास (मप्र) NIT:
कोविड-19 के संक्रमण के खतरे को देखते हुए सभी स्कूल कालेज बंद कर दिये गये ऐसे में आॅनलाइन या वर्चुअल क्लास के अलावा शिक्षकों के पास बच्चों तक पहुंचने का कोई रास्ता नहीं बचा है। भौतिक शिक्षण कक्ष में तो पढ़ाई हेतु एक अलग वातावरण होता है, किंतु वर्चुअल कक्ष शिक्षण हेतु कई तरह के डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर चाहिए जो अभी सब जगह उपलब्ध नहीं है। बिजली, इन्टरनेट कनेक्शन और कम्प्यूटर या स्मार्ट फोन ऐसे साधन हैं जिनके बिना आॅनलाइन शिक्षण संभव नहीं है। बिजली की उपलब्धता नहीं होने की दशा में कम्प्यूटर काम नहीं कर पायेंगे। अब यदि यहाँ हम स्मार्ट फोन की बात करें तो एक सर्वे की मुताबिक केवल 24 प्रतिशत लोगों के पास स्मार्ट फोन है बाकी लोग नानस्मार्ट, फिचर वाले फोन यूज करते हैं जिस पर कोई वीडियो प्ले नहीं होता। ये 24 प्रतिशत लोग जो एक स्मार्ट फोन यूज करते हैं क्या ये अपने बच्चों को 4 से 5 घंटे के लिए मोबाइल दे पायेंगे और यदि दो बच्चे हैं तो किसे देंगे। क्या जो लोग लोवर इनकम ग्रुप से हैं वो डेटा लेने मै समर्थ है? मध्यप्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में मात्र 9.7 प्रतिशत नेट यूजर हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में पूवर नेट कनेक्टिविटी भी बड़ी समस्या है इसके चलते वीडियो प्ले नहीं होते। इसके आगे हम शांती पूर्ण वातावरण की बात करें तो ऐसा नहीं है की बच्चों को पढ़ने के लिए एक अलग कमरा मिल जायेगा। गांव में तो कुछ बच्चे सिर्फ इसलिये ही पढ़ पाते हैं क्योंकि वो घर के माहौल से दूर जाकर पढ़ते हैं और जो शिक्षक और बच्चे स्कूलों में ही पठन पाठन करा रहे थे उनके लिए आॅनलाइन एज्युकेशन नयी चीज है। शिक्षकों को भी प्रशिक्षण नहीं की टेक्नोलॉजी आपरेट कैसे करती है और बच्चे भी कभी आॅनलाइन नही पढ़े हैं तो उनको भी बहुत सेल्फ डिसिप्लीन में रहना पड़ता है। कई बार बच्चे गेम्स और अन्य वीडियो देखने में लग जाते हैं। आॅनलाइन क्लास से बच्चों का स्क्रीनटाइम बढ़ जाता है जिससे बच्चे सिर दर्द, चिड़चिड़ापन और आंखों में समस्या की शिकायत करते हैं। इस वजह से पढ़ाई के नुकसान की भरपाई और पढ़ाई आॅनलाइन एज्यूकेशन से जारी रख पाना ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी चुनौती है।
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