अबरार अली, ब्यूरो चीफ, सिद्धार्थ नगर (यूपी), NIT:
ख्वाहिशों की कोप्ले अभी इनके मन में नहीं फूटी, सवाब के मायने भी यह नहीं जानते फिर भी एक रूहानियत है जो इनको खुदा की राह पर चला रही है, इनकी कोई चाहत नहीं बस खुदा की रहमत बनी रहे इतनी सी आरजू है। रमजान के महीने में छोटे बच्चे रोजा नहीं रखा करते, इस्लाम के मुताबिक कम उम्र के बच्चे रोजा नहीं रखते लेकिन इतने अधिक तापमान में भी तेलियाडीह के अरमान अली पुत्र अबरार चौधरी ने रमजान का तीसरा रोजा रखा इनकी उम्र 7 साल है। बरसती आग के बीच बड़े उम्र के लोग तो खुद ही इबादत में जुड़े हुए हैं लेकिन बच्चे भी पीछे नहीं हैं। रमजान के इस पाक महीने और अपने माता-पिता की शिद्दात को देखते हुए इन बच्चों में भी इबादत की जिद सी लगी और खुदा इन्हें ताकत देता है। इन सभी के पिता ने बताया कि इस्लाम में इतने साल के बच्चे को रोजा रखने की इजाजत नहीं देता, लेकिन बच्चों की ज़िद और खुदा के प्रति इबादत ने हमें भी बच्चों की जिद के आगे झुका दिया। उनका कहना था कि अल्लाह उनसे राजी रहे इसी मकसद से उन्होंने रोजा रखा। मजहबे इस्लाम में रोजा रहमत और राहत का रहबर है। इसमें से अल्लाह की रहमत होती है तभी दिल को सुकून मिलता है।