संदीप तिवारी, ब्यूरो चीफ, पन्ना (मप्र), NIT:
कहार महासंघ राष्ट्रीय सामाजिक संगठन ने एक नया अभियान शुरू किया है. समाज की समस्या को लेकर अपने अपने जिले में राजनैतिक पार्टी के चुनाव प्रभारी को ज्ञापन सौंपा जाएगा। जिसकी शुरुआत कहार महासंघ के राष्ट्रीय सचिव सह मीडिया प्रभारी मध्य प्रदेश नीरज रैकवार ने कर दी है। विगत 22 वर्षों से संघर्षरत राष्ट्रीय सामाजिक संगठन कहार महासंघ अपने समुदायों के जातीय उत्थान को लेकर लगातार काम कर रहा है। मधयप्रदेश में भी जिलेवार टीम गठित कर लगातार अपने सामाजिक बंधुओं से संपर्क स्थापित कर संचालित है। नीरज रैकवार ने पूर्व मंत्री व कांग्रेस पार्टी के कद्दावर नेता मुकेश नायक, वर्तमान चुनाव प्रभारी जिला पन्ना मध्य प्रदेश को ज्ञापन सौंपा। इसी क्रम में मध्य प्रदेश के हर जिले में कहार महासंघ के जिला अध्यक्ष द्वारा ज्ञापन सौंपे जाने हैं। उनका मानना है कि हम समाज की समस्या प्रत्यक्ष रूप से राजनैतिक पार्टी के नेताओं के सामने रखेंगे जिससे लंबे समय से चली आ रही मांझी आरक्षण में उपजातियों के समावेश की समस्या का हल हो सके। हमारा समाज अपने हक अधिकार को पाने के लिए संघर्षरत है। माझी आरक्षण के अंतर्गत माझी समाज को सन 1931 से अनुसूचित जनजाति का आरक्षण प्राप्त है जो कि मधयप्रदेश के आठ जिलों पन्ना, छतरपुर, टीकमगढ़, रीवा, सतना, सीधी, शहडोल, दतिया में निवासरत थीं। जो कि अब पूरे प्रदेश में व्याप्त हैं। इन जातियों को आरक्षण के आधार पर शासकीय विभागो में विशेष दर्जा प्राप्त था लेकिन कालांतर में माझी जनजाति की उपजातियों को अनुसूचित जनजाति की आरक्षण की सूची से हटा कर अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल किया गया है। जो कि इस जाति के लोगों के साथ हुए अन्याय की श्रेणी में आता है। माझी आरक्षण में उपजातियों को सम्मिलित करने की मांग लंबे समय से चली आ रही है लेकिन राजनेतिक दलों के नेताओं द्वारा चुनावी आश्वाशन तक ही सिमट कर रह गई है। साथ ही 11 सूत्रीय मांगों को लेकर आज जो ज्ञापन सौंपा गया है जिसका उद्देश्य समाज की आर्थिक व सामाजिक स्थिति में सुधार व समाज को मुख्यधारा में लाना है। कहार महासंघ के राष्ट्रीय महा सचिव अजय रायकवार ने कहा कि हमारे संगठन कहार महासंघ के राष्ट्रीय सचिव एवं मध्य प्रदेश मीडिया प्रभारी नीरज रैकवार की यह पहल समाज के मान सम्मान हक अधिकार पाने के संघर्ष की प्रथम सीढ़ी है। प्रदेश अध्यक्ष रामगोपाल रायकवार ने कहा कि अगर हमारी मांगे पूरी नहीं होती तो हम आगे विधानसभा चुनाव में अपनी जनसंख्या बल पर राजनैतिक दलों का आंकड़ा बदलने में समर्थ हैं।
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