नरेंद्र कुमार, जामनेर/जलगांव (महाराष्ट्र), NIT:
नेत्र चिकित्सालय की इमारत के घटिया और बदतर निर्माण की पोल खोल करने वाली खबर NIT में प्रकाशित होने के बाद तहसील से जिला प्रशासन तक हड़कंप मच गया. ठेकेदार की ओर से कुछ दिन काम बंद रहा जिसके बाद शुरू होने पर बजरी घेसु जैसी चीजों की गुणवत्ता में निखार पाया गया है. वहीं निर्माण पर ठीक ठाक तरीके से पानी छिड़कने की कवायद भी देखी गई. ये काम NRHM की ओर से डेढ़ करोड़ रुपए की लागत से किया जा रहा है जिसपर सीधा जिलाधिकारी और जिला शल्य चिकित्सक का नियंत्रण है. उपजिला अस्पताल को सटकर जो अतिरिक्त इमारत बना दी गई है सो बन चुकी है अब नेत्र विभाग की इमारत बन रही है. ऐसे मामलों में प्रशासन को किसी ठोस लिखित शिकायत की आवश्यकता होती है जिसके आधार पर जांच की जाए और उसके बाद कार्रवाई. मीडिया रिपोर्ट्स जो सार्वजनिक शिकायतों और जनता की आवाज बनकर छपती है उनका प्रशासन की ओर से उक्त रूप से संज्ञान लिया जाता है. अभी तो NIT की ग्राउंड रिपोर्ट के हवाले से आम लोगों की मांग है कि जो इमारत बन चुकी है उसका निर्माण ऑडिट होना चाहिए और जो बन रही है उस की गुणवत्ता को लेकर संबंधित अधिकारियों की जिम्मेदारियों को सुनिश्चित किया जाए. बन चुकी इमारत जो 60 लाख रुपए की है वो मात्र 30 से 35 लाख में खड़ी की गई है. बन रही इमारत को इसी प्रकार से निपटाने का प्लान था यानी कुल डेढ़ करोड़ का काम 70/80 लाख के अंदर फिर बाकी बचा पैसा नेताओं, अधिकारियों, और ठेकेदार की संपत्ती में ज़ीरो बढ़ाने के काम आता.
RTPCR Report में देरी
सूबे में कोरोना फिर से पैर पसार रहा है सरकार ने कोविड रूल्स को फिर से कड़ाई से लागू करने की बात कही है. ऐसे में नागरिक खुद हो कर टेस्टिंग के लिए आगे आ रहे हैं लेकिन RTPCR के लिए स्वैब देने के दो दो हफ़्तो बाद तक रिपोर्ट नहीं मिल पा रहे है.जिला अस्पताल से लैब के वर्क स्टेटस के बारे मे पूछे जाने पर बताया गया कि टेस्ट रिपोर्ट निर्धारित समय सीमा मे जारी किए जा रहे है. अगर ऐसा है तो आखिर स्वैब दाता को रिपोर्ट क्यो नही मिल रहे है? इस मामले मे जिला प्रशासन की ओर से तत्काल प्रभाव से ध्यानाकर्षण की आवश्यकता है.
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