सिंधी फ़िल्म शहीद कंवर का हुआ निःशुल्क प्रदर्शन, सांसद श्री ज्ञानेश्वर पाटिल ने की शिरकत | New India Times

मेहलक़ा इक़बाल अंसारी, बुरहानपुर (मप्र), NIT:

सिंधी फ़िल्म शहीद कंवर का हुआ निःशुल्क प्रदर्शन, सांसद श्री ज्ञानेश्वर पाटिल ने की शिरकत | New India Times

सिंधी भाषा और संस्कृति के संरक्षण के लिए सिंधी साहित्य अकादमी द्वारा सिंधी फ़िल्म समारोह के अंतर्गत स्थानीय स्व. श्री परमानंद गोविंदजीवाला ऑडिटोरियम में क्षेत्रीय सांसद श्री ज्ञानेश्वर पाटिल की उपस्थिति में सिंधी फ़िल्म शहीद संत कंवर रामजी के जीवन पर आधारित फ़िल्म का निशुल्क प्रदर्शन किया गया। इस अवसर पर सांसद श्री ज्ञानेश्वर पाटिल, सी.एस.पी. श्री ब्रजेश श्रीवास्तव, सिंधी साहित्य अकादमी निदेशक श्री राजेश वाधवानी, भारतीय सिंधु सभा संभाग प्रभारी श्री सुरेंद्र लछवानी, भाजपा नेता बलराज नारायण नावानी शामिल हुए। अमर शहीद संत कंवरराम जी की जीवनी पर आधारित फ़िल्म का प्रसारण कुल 4 शो में संपन्न हुआ। फ़िल्म का प्रथम प्रसारण सुबह 12 बजे से प्रारम्भ होकर अंतिम शो रात्रि 12 बजे समाप्त हुआ। फ़िल्म प्रसारण से पूर्व सिंधी समाज द्वारा नवनिर्वाचित सांसद श्री ज्ञानेश्वर पाटील एवं उपस्थित अतिथियों का स्वागत एवं अभिनंदन किया गया। फिल्मोत्सव में सर्वश्री सुदामामल नावानी, श्रीचंद पोहानी, दयाराम मूलचंदानी, टेकचंद नावानी, सुरेश आडवानी, अजीत छाबड़िया, लख्मीचंद कोटवानी, धीरज नावानी, दिनेश हेमवानी, योगेश पोहानी, रवि जगनानी, दीपक जयसिंघानी उपस्थित थे।

कौन थे शहीद संत कंवरराम

अमर शहीद संत कंवरराम साहेब का जन्म 13 अप्रैल 1885 को अविभाजित भारत के सिंध प्रांत में जरवार ग्राम में हुआ था। उनके पिता का नाम ताराचंद तथा माता का नाम तीर्थबाई था। कंवर का अर्थ होता है कमल का फूल। संत कंवरराम साहिब के गुरू का नाम श्री सतरामदास साहिब था। बाल्यावस्था से ही इनकी रुचि भजन कीर्तन, गायन व भक्ति भाव मे थी। रोजगार व उदरपूर्ति हेतु इनकी माता इन्हें प्रतिदिन चौलाई के दाने (जिसे सिन्धी मे ‘कोहर’ बोलते हैं ) उबालकर विक्रय हेतु दिया करती थीं। तब ये नन्हा-सा बालक भक्ति भरे भाव से अपनी मधुर आवाज़ में प्रभु की महिमा का गुणगान करता हुआ उबले चौलाई दाने बेचता था।
एक दिन इनकी मधुर ध्वनि सुनकर संत सतरामदास ने उस बालक को अपने पास बुलाया और भजन सुनाने के लिए कहा। बालक कंवर द्वारा अपनी मीठी आवाज़ में भजन सुनाने पर संत जी अत्यधिक प्रसन्न हुए और उसे अपना शिष्य स्वीकार करके उसकी संगीत शिक्षा और आध्यात्मिक ज्ञान बढ़ाने आदि पर विशेष ध्यान देने लगे। उन्हें ग्राम रहिड़की के प्रसिध्द दरबार में स्वीकार कर लिया गया और महाज्ञानी संगीतज्ञ श्री हासाराम जी से संगीत की शिक्षा ग्रहण की। साथ ही अपने गुरू साईं सतरामदास साहेब की छत्रछाया में बहुत ज्ञानवान हो गए। गुरू के निधन के पश्चात उनका सारा कार्यभार संत कंवरराम जी के कंधों पर आ पड़ा। संत कंवरराम साहेब जी गांव-गांव जाकर भक्ति के माध्यम से ईश्वर वंदना करने लगे। एक बार सिंध के सक्खर जिले में महात्मा गांधी जी पधारे। गांधी जी वहां पहली बार पधारे थे, इसलिए उन्हें सुनने के लिए हज़ारो-लाखों लोग एकत्रित हो गए । भीड़ के कारण वहां बहुत शोर हो रहा था। मंच पर उपस्थित नेताओं के प्रयत्न करने पर भी शोर शांत नहीं हो रहा था। तब मंच पर उपस्थित नेताओं ने सामने की पंक्ति में बैठे संत कंवर राम साहिब जी को देखा और गांधी जी से आज्ञा लेकर उन्हें निवेदन किया कि आप इस शोर को शांत कीजिए । जैसे ही मधुर कंठ के धनी इस महान संत ने माईक पर आकर लोगों से शांत रहने की अपील की, पल भर में ही सारा शोर शांत हो गया। तब गांधीजी ने भी इस लाड़ले संत की भूरी-भूरी प्रशंसा की।
मानव सेवा ही संत कंवर राम साहिब का मुख्य ध्येय था । अपंगो, नेत्रहीनो एवं कुष्ठ रोगियों की सेवा अपने हाथों से करके वे स्वयं को धन्य मानते थे।
किंवदंती है कि एक बार सत्संग करते समय एक महिला ने अपने मृत नवजात शिशु को संत की झोली में डाल दिया। केवल महिला ही जानती थी कि बच्चा मर चुका है पर जैसे ही संत कंवर राम साहिब जी ने उस बच्चे को गोद में लेकर लोरी गाई, वह मृत बच्चा जीवित हो उठा। महिला रोते हुए संत जी के चरणों में गिर पड़ी। बाद में उस महिला ने वहां उपस्थित सभी लोगों को अपने साथ हुए चमत्कार के बारे में बताया तो सभी लोग अचंभित हो उठे।
संत कंवर राम जी सदैव साम्प्रदायिक एकता और भाईचारे का प्रचार करते थे। सांप्रदायिक भाईचारे के विरोधी एक पीर ने अपने अनुयायियों को इस संत के खिलाफ भड़काया । एक दिन भजन का कार्यक्रम करने के बाद जब संत जी अपनी भजन-मंडली के साथ अपने आगे के सफर के लिए रेलगाड़ी में सवार होने के लिए “रूक” नामक रेल्वे स्टेशन पर पहुंचे, तब दो बंदूक धारियों ने उनको आकर चरण छूकर उन्हें प्रणाम किया और अपने कार्य में सफल होने के लिए संत जी आशीर्वाद मांगा। सरल हृदय संत जी ने उन्हें सफलता मिलने का आशीर्वाद दिया।
गाड़ी चलते ही उन दोनों ने खिड़की के पास बैठे संत कंवरराम जी पर अपनी बंदूक से निशाना साधकर उन्हें (1नवंबर 1939 को) के दिन गोली मार दी। सर्वधर्म समभाव का ध्वज फहराने वाले मानवता के इस मसीहा ने तत्काल प्राण त्याग दिए।
उनके शहीद होने की खबर लगते ही सिंध प्रांत के सभी स्कूल, कॉलेज, ऑफिस और बाजार बंद हो गए। दीपावली के त्यौहार में उस वर्ष पूरे प्रांत में दीपक नहीं जलाए गए। अमर शहीद संत कंवरराम साहेब की स्मृति में 1940 से संपूर्ण देश और विदेश में उनकी जयंती व पुण्यतिथि मनाई जा रही है। उनकी स्मृति में सिंधी समाज द्वारा गठित धर्मशालाएं, गौशालाएं, शिक्षण-संस्थाएं, अस्पताल, विधवा -आश्रम आज भी सुचारू रूप से चल रहे हैं।


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