अबरार अहमद खान/मुकीज़ खान, भोपाल (मप्र), NIT:
9 जुलाई को म.प्र.वि.वि. कंपनी लिमिटेड द्वारा तानाशाही नीति अपनाते हुए 10 जुलाई को होने वाली नेशनल लोक अदालत की आड में आम जनों के विद्युत संयोजन अवैधानिक रूप से काटे गये है। ऐसी ही एक घटना शहर देवास के कर्मचारी कालोनी में रहने वाले अभिभाषक एस.आर. हाशमी के साथ भी घटित हुई। मामला वर्ष 2014 का है जब विद्युत मंडल द्वारा श्री हाशमी के घर लगा मीटर तीन हजार रूपये में बदलकर नयो मीटर यह कहकर लगाने का प्रयास किया गया कि नये मीटर से बिल कम आएगा। हाशमी द्वारा मना किये जाने पर दो दिन बाद हाशमी का मीटर सील टूटी बताकर खोलकर ले गये तथा उज्जैन जांच हेतु मीटर भेजा गया। जांच में मीटर सही पाया गया तथा मीटर के साथ कोई छेडछाड नहीं पाई गई। इसके पश्चात भी 20212 रूपये का अंतिम निर्धारण आदेश जारी किया गया। जिसके विरूद्ध उपभोक्ता फोरम में दिनांक 7.8.2014 को परिवाद प्रस्तुत किया गया। जिसका उत्तर विद्युत मंडल द्वारा दिनांक 7.5.2015 को दिया गया। जिसमें अभिभाषक के विरूद्ध चोरी का मुकदमा दर्ज होने की शिकायत पेश होने का कथन किया गया। जबकि ऐसा कोई मामला दिनांक 7.5.2015 को प्रस्तुत ही नहीं किया गया था। जबकि विद्युत मंडल द्वारा मामला बनाकर दिनांक 24.4.2017 को प्रस्तुत किया गया है। जिसके कारण अभिभाषक को अनावश्यक रूप से फौजदारी प्रकरण का सामना करना पड़ा जो वर्ष 2017 से ही लंबित होकर अंतिम स्टेज पर होकर मात्र निर्णय पारित होना है। प्रकरण में जो भी हो किंतु विद्युत मंडल द्वारा नेशनल लोक अदालत की आड में अवैधानिक रूप से बिना पूर्व सूचना दिये वर्तमान तक का विद्युत बिल जमा होने के उपरांत भी विद्युत संयोजन काट दिया गया। जिसके लिये तत्काल श्री हाशमी ने न्यायालय की शरण ली। जिसके पश्चात मंडल ने गलती मानते हुए कनेक्शन को पुन: जोड दिया। जब एक अभिभाषक के साथ विद्युत मंडल का यह रवैया है तब आम जन के साथ्ज्ञ क्या हो रहा होगा। विद्युत मंडल द्वारा आम जनता से अवैधानिक रूप से समझौता करने का दबाव बनाकर धन वसूला जा रहा हे तथा कई लोगों के विद्युत संयोजन मात्र इसी आधार पर काट कर उन्हें हैरान व परेशान किया जा रहा है ताकि लोक अदालत सफल हो सके। वर्तमान में संपूर्ण देश कोरोना महामारी से लड़ रहा है जिसके चलते लोगों के घर में आज भी मातम है तथा लॉकडाउन के चलते आमजन आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति नहीं कर पा रहे है वहीं प्रायवेट कंपनी द्वारा बिजली बिल के संबंध में अवैधानिक रूप से लोगों को परेशान करते हुए अदालत की कार्यवाही को भी बदनाम किया जा रहा है।