राजस्थान के तीन विधानसभा उपचुनावों के लिये भाजपा व कांग्रेस ने उम्मीदवार घोषित, रालोपा उम्मीदवारों की घोषणा का है इंतजार | New India Times

अशफाक कायमखानी, जयपुर (राजस्थान), NIT:

राजस्थान के तीन विधानसभा के होने वाले उपचुनावों के लिये पर्चा दाखिल करने के 30 मार्च के आखिरी दिन से पहले भाजपा व कांग्रेस के उम्मीदवारों की घोषणा होने के बाद अब रालोपा उम्मीदवारों की घोषणा का इंतजार के बावजूद राजनीति पर नजर रखने वालों का मानना है कि कांग्रेस के लिये चुनाव जीतना काफी कठिन नजर आ रहा है। पार्टी संगठन के तौर पर भाजपा काफी मजबूत है तो कांग्रेस का जिला संगठन का गठन अभी तक नहीं हो पाने से उनकी नया पार होने के लिये मात्र सत्ता का सहारा व किसान आंदोलन से भाजपा का बढ़ता विरोध रह गया है।
कल भाजपा उम्मीदवारों की घोषणा के बाद आज कांग्रेस के उम्मीदवारों की घोषणा होने के बाद स्थिति स्पष्ट हुई है कि उन्होंने कांग्रेस विधायक भंवरलाल मेघवाल के निधन से खाली हुई सीट सुजानगढ़ पर उनके पुत्र मनोज मेघवाल को व कांग्रेस विधायक कैलाश त्रिवेदी के निधन से खाली हुई सीट सहाड़ा पर उनकी पत्नी गायत्री देवी को उम्मीदवार बनाया है। वहीं राजसमंद से वैश्य समाज के तनसुख बोहरा को उम्मीदवार बनाया है। वहीं भाजपा ने भी भाजपा विधायक किरण महेश्वरी के निधन से खाली हुई सीट पर उनकी पूत्री दीप्ति महेश्वरी को उम्मीदवार बनाया है। वहीं भाजपा ने सहाड़ा से पूर्व मंत्री रतनलाल जाट व सुजानगढ़ से पूर्व मंत्री खेमाराम मेघवाल को उम्मीदवार बनाया है।

होने वाले उपचुनावों में से सुजानगढ़ व सहाड़ा विधानसभा के कांग्रेस विधायकों के निधन व राजसमंद से भाजपा विधायक के निधन के बाद खाली हुई सीटों पर 17 मार्च को मुस्लिम समुदाय के पवित्र माह रमजान में मतदान होगा। रोजे के दिन मुस्लिम समुदाय का मतदान प्रतिशत कम रहने की सम्भावना के चलने के अलावा मुख्यमंत्री गहलोत की नीतियों के चलते मुस्लिम समुदाय की नाराजगी भी कांग्रेस की चिंता बढायेगी।
राजनीतिक सूत्रों के अनुसार मिल रही जानकारी के मुताबिक सुजानगढ़ में चूरु से भाजपा सांसद राहुल कस्वा के पिता पूर्व सांसद रामसिंह कस्वां एवं पूर्व मंत्री व चूरु विधायक राजेन्द्र राठौड़ हकीकत में एकमत होकर भाजपा उम्मीदवार खेमाराम मेघवाल को जिताने का प्रयास करेंगे तो भाजपा का पलड़ा मजबूत रह सकता है। वहीं कांग्रेस उम्मीदवार मनोज मेघवाल के पक्ष में सहानुभूति व प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता होना मजबूती देता नजर आयेगा। वहीं सुजानगढ़ में दलित व मुस्लिम मतों की बहुतायत भी कांग्रेस के हित में नजर आती है। सुजानगढ़ विधानसभा की दोनों पंचायत समितियों पर वर्तमान मे भाजपा का कब्जा है।
सहाड़ा सीट पर भाजपा उम्मीदवार रतनलाल जाट को छवि व साधनों के हिसाब से मजबूत उम्मीदवार माना जा रहा है। वही कांग्रेस उम्मीदवार गायत्री देवी के पक्ष मे सहानुभूति व सत्ता का दवाब ही मजबूत पक्ष है लेकिन उनको मजबूत उम्मीदवार नहीं माना जा रहा। सहाड़ा विधानसभा की दोनों पंचायत समितियों पर भाजपा का कब्जा है।
राजसमंद से भाजपा उम्मीदवार दीप्ति महेश्वरी के मजबूत उम्मीदवार होने के अलावा सहानुभूति मिलने की उम्मीद जताई जा रही है लेकिन उनकी माता किरण महेश्वरी से भाजपा के दिग्गज नेता व वर्तमान मे विरोधी दल के नेता गुलाब चंद कटारिया से छत्तीस के रहे आंकड़े परेशान कर सकते है। यहां से कांग्रेस के उम्मीदवार तनसुख बोहरा को विधानसभा अध्यक्ष सीपी जौशी की पसंद बताया जा रहा है। यहां अगर सीपी जौशी व कटारिया मे अंदर खाने कुछ तय हुवा तो अलग बात है वरना भाजपा चुनाव जीत सकती है।
राजस्थान कांग्रेस में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के मध्य जारी वर्चस्व संघर्ष उक्त उपचुनाव में कितना मिठास में कांग्रेस हाईकमान बदल पाता है उतना ही कांग्रेस उम्मीदवारों को मजबूती मिलेगी। कांग्रेस की तरह ही भाजपा मे भी पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे व प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया व उसके साथ लगे संघ के मध्य खींचतान आसमान छूने से भाजपा उम्मीदवारों को नुकसान हो सकता है। खेमाराम व दीप्ति को वेसे तो राजे खेमे का माना जाता है। लेकिन भाजपा उम्मीदवार अगर जीतते है तो पूनीया खेमे को मजबूती मिलना माना जायेगा। उस स्थिति में राजे समर्थक कतई नहीं चाहेंगे कि सतीश पूनीया मजबूत हों।
वर्तमान गहलोत सरकार आने के बाद तत्तकालीन भाजपा विधायक नरेन्द्र खीचड़ व रालोपा विधायक हनुमान बेनीवाल के लोकसभा सदस्य बनने पर उनकी मंडावा व खींवसर विधानसभा सीटों के खाली होने पर भी वहां उपचुनाव हुये थे। उन उपचुनावों में मंडावा सीट भाजपा से कांग्रेस ने छीनी थी एवं खींवसर सीट पर रालोपा का कब्जा बरकरार रहा था। तब के मुकाबले अब होने जा रहे उपचुनाव में कांग्रेस के हित में राष्ट्र में जारी किसान आंदोलन भी काफी फायदेमंद रह सकता है।
कुल मिलाकर यह है कि होने वाले उपचुनाव में कांग्रेस व भाजपा को एक दूसरे की बजाये बडा खतरा स्वयं के दल के नेताओं व आपसी फूट से रहेगा। जिस दल में नेताओं में जितनी एकता मजबूत रहेगी उतनी ही उसके दल के उम्मीदवारों के जीतने की सम्भावना अधिक रहेगी। कांग्रेस को मुस्लिम व किसानों मतों के अलावा दलित मतों को अपनी तरफ अधिकाधिक खींचना होगा। वहीं भाजपा को अपने नेताओं में जारी अदावत को दूर करके एकता के साथ प्रयास करना होगा।

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