गहलोत सरकार को तीन साल होने को है पर अल्पसंख्यक सम्बंधित सभी बोर्ड-निगम आज भी हैं नियुक्तियों से महरूम | New India Times

अशफाक कायमखानी, जयपुर (राजस्थान), NIT:

गहलोत सरकार को तीन साल होने को है पर अल्पसंख्यक सम्बंधित सभी बोर्ड-निगम आज भी हैं नियुक्तियों से महरूम | New India Times

हालांकि कुछ संवैधानिक पदों पर मुख्यमंत्री गहलोत द्वारा अपने कुछ खासमखास लोगों को पिछले दिनों में एक एक करके नियुक्त करने के अलावा तमाम तरह के बोर्ड व निगम सहित अन्य राजनीतिक नियुक्तियां करने से गहलोत ने पूरी तरह दूरी बना कर सत्ता में भागीदारी बांटने के बजाये अपने आपको एक मात्र सत्ता का केन्द्र बनाये रखने की भरपूर कोशिश की है लेकिन सत्ता में भागीदारी मिलने की उम्मीद लगा कर इंतजार में बैठे राजनेताओं का गुस्सा नियुक्तियां नहीं मिलने से अब बाहर झलकने लगा है। इसके अतिरिक्त राजनीति में लाचार व बंधुआ वोट बैंक की तरह राजस्थान की राजनीति में भाजपा के मुकाबले कांग्रेस के चिपके रहने को मजबूर अल्पसंख्यक समुदाय के सम्बंधित बोर्ड व निगमों पर भी किसी तरह की नियुक्तियां अभी तक नहीं होने से असहाय समुदाय गहलोत की तरफ हताशा पूर्वक टक टकी लगाये बैठने को मजबूर नजर आ रहा है।
भाजपा सरकार के समय गठित राजस्थान वक्फ बोर्ड का कार्यकाल इसी 8 मार्च को पूरा हो चुका है। हज जैसे पवित्र सफर का इंतजाम करने के गठित राजस्थान राज्य हज कमेटी का गठन गहलोत सरकार ने अभी तक नहीं करके कोई अच्छा संदेश नहीं दिया है। उर्दू जबान की तरक्की व फलाह के साथ साथ उसके विकास की राह में आने वाली रुकावटों को दूर करने के लिये गठित होने वाली राज्य उर्दू एकेडमी का अभी तक गठन नहींं करने से गहलोत की उर्दू के प्रति भावना को उजागर करता है। अशिक्षा का दंश झेल रहे मुस्लिम समुदाय को शिक्षा की तरफ आकर्षित करने में मदरसों का अहम किरदार माना जाता है। मदरसों में जदीद तालीम का इंतेजाम करने के अलावा मदरसों का आधारभूत ढांचा ठीक करने के अतिरिक्त मदरसा पैराटीचर्स की समस्याओं का हल तलाशने के लिये गठित होने वाले राजस्थान मदरसा बोर्ड का गठन अभी तक नहीं होना सरकार की अल्पसंख्यकों को शिक्षित करने की मंशा को साफ साफ उजागर करता है।
अल्पसंख्यक समुदाय के सम्बंधित मामलों पर संज्ञान लेकर सरकार को सलाह देने के लिये गठित होने वाला राजस्थान अल्पसंख्यक आयोग का भी गठन नहीं होने से समुदाय पर हो रहे अन्याय की सुनवाई का एक दरवाजा पूरी तरह बंद हो चुका है पर सरकार के कानोंं तक अभी तक जू तक नहीं रेंग रही है। इसी तरह राजस्थान वक्फ विकास परिषद व मेवात विकास बोर्ड का गठन हमेशा की तरह अभी तक बकाया चल रहा है। इसके अलावा राजस्थान अल्पसंख्यक विकास एवं वित्त विकास परिषद का गठन भी बकाया चल रहा है। इसके अतिरिक्त जिला स्तर पर अल्पसंख्यक उत्थान व उनके सम्बंधित योजनाओं पर नजर रखने के लिये गठित होने वाली पंद्रह सूत्री कार्यक्रम समितियों में मुस्लिम सामाजिक कार्यकर्ताओं का मनोनयन एक भी जगह नहीं हुआ है।
कुल मिलाकर यह है कि प्रदेश में कांग्रेस सरकार गठित करवाने में कांग्रेस के पक्ष में एक मुश्त मतदान करने वाले अल्पसंख्यक समुदाय का अपने आपको हितैषी बताने वाले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा अल्पसंख्यक समुदाय सम्बंधित सरकारी स्तर पर गठित होने वाले बोर्ड-निगम व समितियों का गठन अभी तक नहीं करना लोकतन्त्र में एक तरह से खुला मजाक माना जा सकता है। जबकि ऐसा नहीं होने से मुख्यमंत्री की छवि के विपरीत उसकी अल्पसंख्यक विरोधी छवि समुदाय में तेजी के साथ पनपती जा रही है।


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