अशफाक कायमखानी, जयपुर (राजस्थान), NIT:
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के लिये कहा जाता है कि राजनीति में जब जब वो पावर में आते है तब तब वो अपने चाहत से जिनको राजनीतिक नियुक्ति देना चाहते है उनको ऐनकेन देकर रहते हैं। इसलिये जो सामाजिक कार्यकर्ता व राजनीतिक लोग जो गहलोत से नजदीकी बन जाते हैं वो लम्बे समय तक नजदीकी बनाकर रहते हैं ताकि गहलोत का स्वर्ण युग आने पर गहलोत द्वारा उन्हें समय समय पर लाभ का पद मिलने की सम्भावना बनी रहे। इसके अतिरिक्त लोकसभा व राज्यसभा एवं विधानसभा चुनाव की टिकट मे भी गहलोत अपने खास लोगों को हरदम याद रखते हैं उसके बाद मंत्रिमंडल व अन्य राजनीतिक पदों में जगह दिलवाने में भी गहलोत अपने लोगों के लिये आखिर तक चालाकी व राजनीतिक सूझबूझ के साथ लड़ते रहते हैं। राजनीतिक चतुरता व अपनो का एक मजबूत गठबंधन बनाकर राजनीति करने का ही परिणाम है कि राजस्थान भर के मतदाताओं पर मजबूत पकड़ नहीं होने के बावजूद केवल मात्र समय पर राजनीतिक गोटियां फिट करके परिणाम अपने पक्ष में लाने की कला के बलबूते के कारण राजस्थान के तीसरी दफा मुख्यमंत्री बनने मे कामयाब रहे हैं।
हालांकि राजस्थान में अशोक गहलोत को आगे करके कभी भी कांग्रेस ने चुनाव नहीं लड़ा है लेकिन पहले परशराम मदेरणा फिर सीपी जौशी व उसके बाद सचिन पायलट के नाम पर मतदाताओं की नजर में लड़े चुनाव में कांग्रेस का बहुमत आने पर उनके मुख्यमंत्री बनने की सम्भावना पर लड़ा गया जिस पर जनता ने मतदान करके कांग्रेस को बहुमत दिलाया पर जब मुख्यमंत्री बनने का अवसर आया तो गहलोत अपनी राजनीतिक चतुरता के बल पर आगे निकल गये एवं हाईकमान सेटिंग के कारण मुख्यमंत्री बन गये। गहलोत के मुख्यमंत्री रहते जब जब आम विधानसभा चुनाव हुये तब तब गहलोत को लेकर जनता ने कांग्रेस पर गुस्सा निकाला तो कभी 156 से 56 व 86 से 21 सीट पर लाकर पटका। 2023 के आम विधानसभा चुनावों के परिणाम भी उसी तरह के आने के अभी से कयास लगाये जा रहे हैं।
मुख्यमंत्री गहलोत के तीसरी दफा मुख्यमंत्री बनने के बाद पहले मंत्रीमंडल गठन में अपने अधीकांश चहेतों को जगह दिलवाने के बाद उन्हें ढंग के विभागों का प्रभार दिलवाने में गहलोत काफी हद तक कामयाब रहे। उसके बाद कोर्ट में सरकार की तरफ से पैरवी करने के लिये महाअधिवक्ता व अतिरिक्त महाअधिवक्ताओं का मनोनयन में गहलोत की एक तरफा चली, उसके बाद राजनीतिक तौर पर राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष पद पर जुलाई-19 मे अपने क्षेत्र की संगीता बेनीवाल का मनोनयन किया। इसके बाद मंजू सैनी सहित एक अध्यक्ष व चार सदस्यों का राजस्थान लोकसेवा आयोग में मनोनयन किया। फिर अपने निकटतम व बड़े व्यापारी किशोर सिंह सैनी की पुत्रवधु शीतल सहित दो सुचना आयुक्त व एक मुख्य सूचना आयुक्त का मनोनयन किया। अब जल्द ही अन्य राजनीतिक नियुक्तियों का पिटारा खुलने वाला है जिनके मनोनयन मे भी मुख्यमंत्री गहलोत की चतूरता का एक तरफा परिणाम नजर आयेगा।
6 महिने पहले कांग्रेस विधायकों मे मुख्यमंत्री गहलोत की कार्यशैली को लेकर उठे विवाद के बाद तत्तकालीन उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट सहित उनके दो खास समर्थक मंत्री विश्वेंद्र सिंह व रमेश मीणा को मंत्रीमंडल से बर्खास्त करने के बाद अब जाकर गहलोत मंत्रीमंडल का विस्तार व बदलाव होने जा रहा है। जिसमे कुछ गिनती के पायलट समर्थकों को जगह मिलेगी बाकी कांग्रेस व बसपा से कांग्रेस मे आये एवं कुछ कांग्रेस को समर्थन दे रहे निर्दलीय विधायकों के नाम पर मुख्यमंत्री गहलोत के खास समर्थक विधायकों को ही जगह मिलना तय मानी जा रहा है।
कुल मिलाकर यह है कि राजस्थान के आम मतदाताओं पर किसी तरह की खास पकड़ नहीं होने के बावजूद अशोक गहलोट दिल्ली में मौजूद कांग्रेस हाईकमान की मेहरबानी व स्वयं की राजनीतिक चतुरता एवं समय पर ढंग से राजनीतिक गोटियां फिट करने की कला के माहिर होने की ताकत के बलबूते पर गहलोट राजस्थान के तीसरी दफा मुख्यमंत्री बनकर अपना कार्यकाल पूरा करने की तरफ बढ रहे हैं। गहलौत के पावर में आने पर अपने आस-पास यानी इर्द गिर्द रहने वाले लोगों को राजनीतिक नियुक्तियां दिलवाने में आखिर तक लड़ने के कारण उनके चहेतों का एक बड़ा गठबंधन बन चुका है जो समय समय पर उनके हित का माहौल बनाने की भरपूर कोशिश करने मे कौर कसर नहीं छोड़ते हैं।