स्वामी विवेकानंद जयंती पर विशेष: वर्तमान में स्वामी विवेकानंद के विचारों की प्रासंगिकता | New India Times

हरकिशन भारद्वाज, जयपुर (राजस्थान), NIT:

स्वामी विवेकानंद जयंती पर विशेष: वर्तमान में स्वामी विवेकानंद के विचारों की प्रासंगिकता | New India Times

इस दुनिया में सिर्फ उसी को याद किया जाता है जो दूसरों के लिए जीता है, खुद के लिए तो जानवर भी जी लेते हैं। यह मनुष्य शरीर बड़े भाग्य से मिला है इसलिए ऐसा कुछ करें कि दुनिया याद करे और इसे सार्थक किया परम श्रद्धेय स्वामी विवेकानंद जी ने।
आज उनका अवतरण दिवस है, हम सभी सौभाग्यशाली हैं कि आज उन्हें स्मरण करने का अवसर मिला।

मेरे जहन में राउडी राठौर फिल्म का एक डायलॉग याद आता है –

“सौ साल जिंदा रहने के लिए सौ साल की उम्र जरूरी नहीं सिर्फ एक दिन में ऐसा काम करो कि दुनिया सौ साल तक तुम्हें याद करें।”

और हमने देखा कि 9/11 की उनकी एक “स्पीच” का शताब्दी समारोह तक मनाया गया।

आप कल्पना कीजिए कि उनका सामर्थ्य कैसा होगा?

स्वामी जी ने इस देश के लिए जो सपने देखे क्या वे सपने हमारे रहते अधूरे रह जाएं? आज हमें उन सपनों को पूरा करना होगा तभी हमारी सार्थकता है।

अपने कंफर्ट जोन से नहीं निकल पा रहे निराशा में डूबे युवाओं के लिए राम वान –

“उठो जागो और लक्ष्य प्राप्ति तक रुको मत।”

का आवाहन करने वाले, युवाओं के प्रेरणास्रोत, युवा भारत के स्वप्नद्रष्टा एवं जीवन में नवीन प्राणों का संचार करने वाले स्वामी विवेकानंद का जीवन जितना रोमांचकारी है उतना ही प्रेरणादायक भी है।

वर्तमान पीढ़ी परिवर्तन के दौर से गुजर रही है।
आज की युवा पीढ़ी आधुनिकता के बोझ तले इतनी दब चुकी है कि वह अपने पारंपरिक आधारभूत उच्च आदर्शों से समझौता तक करने में हिचक रही है। आज की पीढ़ीं के लिए बड़े बुजुर्गों की राय के प्रति अनादर एक आम बात हो गई है। ऐसे में स्वामी विवेकानंद के ओजस्वी प्रेरक विचारों की महती आवश्यकता है।

देश देशांतर में भारतीय संस्कृति की सुगंध बिखेरने वाले स्वामी विवेकानंद “वसुधैव कुटुंबकम” की वैश्विक सोच रखते थे।
धर्म संसद में उनका पहला वाक्य “ब्रदर्स एंड सिस्टर्स ऑफ अमेरिका… ।” हमें अपनत्व की सीख देता है किंतु
आज अयं निज परो वेति गणना लघुचेत्सा नाम…! की सोच….
सब अपने – अपने निजी स्वार्थों में लगे हुए हैं।
क्या ऐसे साकार होगा स्वामी जी का सपना?

“नर सेवा नारायण सेवा” में अपना पूरा जीवन न्योछावर करने वाले स्वामी विवेकानंद जी गरीब व वंचितों की मदद को ईश्वरीय कार्य मानते थे। वे हमें संदेश देते हैं कि “जन सेवा ही प्रभु सेवा है।”

हम यदि औरों की मदद करेगें तो ईश्वर हमारी मदद करेगा इसलिए हमें अपनी सामर्थ्य के अनुसार दीन- हीन की मदद करनी चाहिए।

शिक्षा का महत्व जीवन में सर्वोपरि है। स्वामी जी बताते हैं कि-
शिक्षा का मूल उद्देश्य ही समाज सेवा है।

हमारी शिक्षा जीवन निर्माण, व्यक्ति निर्माण एवं चरित्र निर्माण पर आधारित होनी चाहिए किंतु वर्तमान में हमारे शिक्षा बच्चों को रट्टू तोता बना रही है।

“यदि सूचनाएं एकत्रित करना ही शिक्षा होती तो फिर पुस्तकालय ही संत हो गए होते” इसलिए आज हमें शिक्षा को व्यवहारिक व गुनवक्तापूर्ण बनाना होगा।

स्वामी जी महिला और पुरुषों को एक समान दर्जा दिये जाने की वकालत करते हैं। क्योंकि देश की प्रगति का सबसे बेहतर पैमाना महिला सशक्तिकरण ही है और महिलाओं का उत्थान केवल शिक्षा से ही संभव है।

वे कहते हैं कि
महिलाओं को बस शिक्षा दे दो उसके बाद वह खुद बताएगी कि उन्हें किस प्रकार के सुधार की आवश्यकता है।

किंतु वर्तमान में हमारे देश की महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं।पुरुष प्रधान सोच आज भी महिलाओं को उत्पादन व उपभोग का साधन मानती है जो कि संकीर्ण सोच है।

युवाओं के सबसे बड़े मोटीवेटर एवं युवा हृदय सम्राट स्वामी जी युवाओं को सफलता का मंत्र बताते हैं कि “कोई विचार लो और उसे अपनी जिंदगी बना लो उसी के बारे में सोचो और सपने में भी वही देखो, उस विचार में जियो, उस विचार को रग-रग में भर लो सफलता का यही मंत्र है।”

इस दुनिया में आए हो तो छाप छोड़ कर जाओ।

नायक बनो, हमेशा निडर रहो।
आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ो।

“युवा” यानी हवा का प्रचंड वेग, युवा यानी ऊर्जा, युवा यानि शक्ति, युवा यानि उत्साह, युवा यानी गति और इसे सही दिशा मिल जाए तो प्रगति ही प्रगति।

किंतु आज हमारा युवा दिग्भ्रमित है यहां तक की युवा आज अपनी बुनियादी जरूरतों को भी पूरा करने में संघर्षरत है।

देश में बेरोजगारी और गरीबी सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती ही जा रही है और देश में जो युवा शिक्षित हैं वे तो
ग्रेट अमेरिकन ड्रीम पूरा करने अमेरिका चले जाते हैं और सारी उम्र पैसा कमाने में लग जाते हैं तो आप ही बताइए कैसे होगा स्वामी विवेकानंद जी का सपना साकार?

अगर आज स्वामी विवेकानंद जी जीवित होते तो क्या इस देश के हालात पर गर्व करते? शायद नहीं और यह सब हमारी कमजोरियों और कमियों का ही नतीजा है।

अंत में मैं युवाओं को यही संदेश दूंगा कि –

“कदम ऐसा रखो की,
निशान बन जाए।
काम ऐसा करो की,
पहचान बन जाए।
यहां जिंदगी तो सभी जी लेते हैं मगर,
जियो तो ऐसे जियो की, मिसाल बन जाए।।

वंदे मातरम ! "


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