रहीम शेरानी/अब्दुल कुद्दुस शेख, झाबुआ (मप्र), NIT:
थांदला जिनशासन गौरव जैनाचार्य पूज्य श्री उमेश मुनिजी “अणु” के कृपापात्र सन्त प्रवर्तक श्री जिनेंद्र मुनिजी म.सा. आदि ठाणा का 23 वर्षों बाद मिला चातुर्मास का अंतिम माह चल रहा है। कोरोना काल के कारण विगत 3 माह तक तो स्थानक मर्यादित रूप से पूर्ण प्रतिबंधित रहा लेकिन शासन से मिली छूट के बाद विगत कुछ दिनों से पूज्यश्री के मुखारविंद से जिनवाणी की गंगा प्रवाहित हो रही है जिसमें हर व्यक्ति डुबकी लगाते हुए अपनी शक्ति के अनुरूप व्रत नियमों को धारण कर रहा है।
जानकारी देते हुए संघ अध्यक्ष जितेन्द्र घोड़ावत, मंत्री प्रदीप गादिया, प्रवक्ता पवन नाहर ने बताया कि प्रति रविवारीय शिक्षा में इस बार गुरु के महत्व को बताते हुए पूज्य श्री गिरिश मुनि ने कहा कि राग द्वेष के जेता तीर्थंकर केवली भगवान वीतरागी देव होते है एवं उनके द्वारा बताया दया मय मार्ग ही धर्म है और तीर्थंकर केवली भगवान की पर्युपासना करते हुए जो इस मार्ग का अनुसरण करते है वे उत्तम साधु गुरु कहलाते है। उन्होंने कहा जो ऐसे सच्चे गुरु को जीवन मे धारण कर लेता है वह अपने जन्म मरण को भी घटा लेता है। उन्होंने गुरु की महिमा बताते हुए कहा कि माता-पिता की सेवा भक्ति तो सौभाग्य दिलाती है परंतु गुरु की भक्ति तो स्वयं इंसान को भगवान बना देती है। उन्होंने वाणी माधुर्य के साथ वर्तमान के स्वार्थी शिष्य लोलुप गुरुओं पर कटाक्ष करते हुए कहा कि सच्चे गुरु शिष्य की अपेक्षा नही करते जबकि सच्चे शिष्य गुरु की उपेक्षा नही करते है। जहाँ गुरु शिष्य का नाता स्वार्थ की धुरी पर टिका होता है, वहाँ दोनों पत्थर की नोंका रुप कभी किनारा नही पा सकते जबकि निर्मल चारित्र के धारक सन्तों को जीवन में धारण करने से हम भव पार हो जाते है। जिनके जीवन में ऐसे गुरु नही होते उनका जीवन तो शुरू ही नही होता। आगे उन्होंने बतलाया कि जैसे शिक्षा देने वाले शिक्षा गुरु, दीक्षा देने वाले दीक्षा गुरु, किसी की निश्रा में रहने वाले निश्रा गुरु कि तरह जीवन में व्यक्ति के अनेक गुरु हो सकते है और ऐसे सद्गुरु की सेवा भक्ति गुणगान आदि आराधना से शिष्य आराधक बनता है व ऐसे किसी भी गुरु की निंदा आदि से विराधना करने से से वह सभी गुरुओं का निंदक कहलाते हुए विराधक बन जाता है। इसलिए अपने विवेक से सद्गुरु का परिचय कर उनसे शिष्यत्व ग्रहण करना चाहिए।
सप्त कुव्यसन त्याग कर जैनत्व की प्रतिज्ञा
रविवारीय धार्मिक ज्ञान कक्षा में पूज्यवर ने बताया कि जैन जाती नही अपितु धर्म है जिसे हर वर्ण के लोग धारण कर सकते है। इसके लिए सबसे पहले भव भवान्तर तक अपनी आत्मा में लगे 18 पाप का प्रक्षालन करते हुए भूत, भविष्य व वर्तमान के सभी जीवों से खमतखामणा करते हुए जीवन पर्यंत तक बड़ी चोरी (लूट-डकेती) नही करना, जुआ-सट्टा आदि नही खेलना, शिकार आदि नही करना, ड्रग्स – शराब जैसी नशीली वस्तु आदि का सेवन नही करना, अण्डा मांस जैसे अभक्ष्य पदार्थो का सेवन नही करना, वेश्यावृत्ति एवं पर स्त्री गमन नही करना जैसे सप्त कुव्यसनों को त्याग करते हुए प्रायश्चित स्वरूप 5 वर्षों तक एक एकासन, एक आयम्बिल व एक उपवास तप करने के बाद प्रवर्तक श्री ने धर्मसभा में उपस्थित बच्चों व बड़ों को जैनत्व की प्रतिज्ञा करवाई। उन्होंने सभी को अभक्ष्य रूप पंच फल आदि के प्रत्याख्यान करवाते हुए प्रतिदिन 8 नवकार महामंत्र, 24 तीर्थंकर देव की स्तुति, देव-गुरु-धर्म को वंदना आदि नियम भी दिए।
छः काय जीवन को अभयदान देने लिए पटाखों के प्रत्याख्यान
धर्मसभा में आगामी दीपावली एवं शादी ब्याह आदि अनेक उत्सव पर आतिशबाजी से होने वाली हानि को बताते हुए गुरुदेव ने कहा कि पटाखों से वायु में प्रदूषण फैलता है जिसके चलते दिल्ली बंगाल में भी पटाखों पर पूर्ण प्रतिबंध लगा हुआ है, चाइना के पटाखों से आतंकवाद को बढ़ावा मिलता है इसलिये इसे राष्ट्रद्रोह मानते हुए मध्यप्रदेश में भी पटाखों पर बेन है तो इससे पैसों की बर्बादी सहज रूप से दिखाई देती है फिर जीव हिंसा जैसा महापाप भी हो रहा है इसलिए मानव धर्म करुणा व दया को प्रधानता देता है इसलिए हमें इस तरह पटाखों को जलाने व अनायास होने वाली हिंसा से बचना चाहिए। पूज्यवर के धर्मोपदेश को ग्रहण करते हुए नन्हे नन्हे बच्चों से लेकर बड़ों ने भी पटाखें नही फोड़ने का संकल्प लिया।
आगम वाचन व महापुरुषों का स्मरण
धर्मसभा में भगवान महावीर स्वामी की अंतिम देशना रूप मूल सूत्र आगम उत्तराध्ययनजी का वाचन चल रहा है वही जैनाचार्य पूज्य श्रीधर्मदासजी म.सा. के जीवन चरितामृत को भी धर्मबंधु श्रवण कर रहे है। पूज्यश्री ने उपकार दृष्टि से भगवान महावीर निर्वाण पर आगामी दीपावली पर 12-13 व 14 तारीख को तेले तप करने की प्रेरणा भी दी है। सुंदरलाल भंसाली परिवार द्वारा प्रभावना का लाभ लिया वही धर्मसभा का संचालन संघ अध्यक्ष जितेन्द्र घोड़ावत ने किया इस दौरान कुशलगढ़, दाहोद, लिमड़ी, रतलाम आदि स्थानों से आये आगन्तुक गुरु भक्तों के आतिथ्य सत्कार का लाभ श्रीसंघ ने लिया उक्त जानकारी संघ प्रवक्ता पवन नाहर ने दी।