संदीप शुक्ला, ब्यूरो चीफ ग्वालियर (मप्र), NIT:
गोपाल किरन समाजसेवी संस्था द्वारा मोहन नगर स्थित ठाटीपुर में एसडीजी ग्लोबल सप्ताह बड़े जोश खरोश के साथ मनाया गया। गोपाल किरन समाजसेवी संस्था ने नवाचार सीख के आधार के कांसेप्ट पर इस अंतर्राष्ट्रीय सप्ताह के कार्यक्रम में विभिन्न प्रकार के आयोजन पूर्ण सहमति से सोल्लास संपन्न हुए। इसमें एशिया क्षेत्र के गरीबी उन्मूलन के समन्वयक श्री प्रदीप बैसाख, ग्लोबल काल टू एक्शन अगेंस्ट की अहम भूमिका रही। इस अभियान के तहत आयोजित विभिन्न गतिविधियों में परिचर्चा, बाल संरक्षण, बाल अधिकार, स्वास्थ्य आदि विषयों पर व्यापक विचार विमर्श किया गया। वहीं इन वालों पर वैश्विकरण स्तर पर सप्ताह मनाया जाने का भी निर्णय लिया गया। संस्था के संस्थापक अध्यक्ष श्रीप्रकाश सिंह निमराजे ने कहा कि बाल अधिकार मंच सतत विकास लक्ष्य के तहत समाज के उत्तम स्वास्थ्य और खुशहाली के लिए निरंतर प्रयास कर रहा है।
उत्तम स्वास्थ्य सुनिश्चित करना और हर उम्र में सब की खुशहाली को प्रोत्साहन हमारी पहली प्राथमिकता है। सबसे बड़ी चुनौती खराब स्वास्थ्य से उपजे आर्थिक और शारीरिक कष्ट के अहम कारण के रूप में बुनियादी वंचनाएं हैं जिन्होंने हमारे समाज को खोखला कर दिया है। आजादी के बाद के वर्षः में हम लोगों की औसत आयु बढ़ाने और शिशु तथा मातृ मुत्यु दर कम करने में जहां नाकाम साबित हुए हैं, वहीं इसके लिए ज़िम्मेदार कुछ खास बीमारियों को कम करने में भी हमारी नाकामी जगजाहिर है। जबकि अभी तक इन पर हमें काबू पा लेना चाहिए था। विडम्बना है कि वैश्विक प्रगति के बावजूद दक्षिणी अफ्रीकी देशों और दक्षिणी एशिया क्षेत्र में शिशु मृत्यु का अनुपात बढ़ता ही जा रहा है। वर्ष 2000 के बाद से विश्व में एचआईवी/एड्स, मलेरिया और टीबी सहित प्रमुख संक्रामक रोगों का होना कम हुआ है। लेकिन इनका ख़ात्मा अभी तक सपना है।असलियत यह है कि विश्व के अनेक क्षेत्रों में बीमारियां और नई महामारियां अब भी बहुत बड़ी चुनौती हैं। हमने दुनिया भर में नए उपचारों, टीकों और स्वास्थ्य सेवा के लिए टैक्नॉलॉजी की खोज में ज़बर्दस्त प्रगति की है लेकिन सभी को किफायती स्वास्थ्य सेवा सुलभ कराना अब भी एक चुनौती है। ये इसलिये और महत्वपूर्ण है कि बीमारी केवल एक व्यक्ति की खुशहाली पर ही असर नहीं डालती बल्कि वह पूरे परिवार और जन संसाधनों पर भी भारी बोझ बनती है, समाज को कमज़ोर औऱ उसकी क्षमता का ह्रास करती है। हर उम्र के लोगों का उत्तम स्वास्थ्य और खुशहाली सतत् विकास का केंद्र बिंदु है। बीमारी से बचाव न सिर्फ जीने के लिए ज़रूरी है अपितु ये सभी को अवसर देता है, आर्थिक वृद्धि और सम्पन्नता को बल देता है।
इसका समाधान क्या है?
अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने सतत् विकास के तीसरे लक्ष्य के माध्यम से बीमारी को खत्म करने, उपचार व्यवस्था और स्वास्थ्य सेवा को मज़बूत करने तथा स्वास्थ्य संबंधी नए और उभरते मुद्दों के समाधान के लिए वैश्विक प्रयासों का संकल्प लिया है। इसके लिए इन क्षेत्रों में नई सोच और अनुसंधान की आवश्यकता बताई गई है ताकि जन- नीतिगत प्रयासों को आगे बढ़ाया जा सके। जरूरी है कि हम बेहतर स्वास्थ्य के प्रति समग्र दृष्टिकोण सुनिश्चित करें कि सभी को स्वास्थ्य सेवाएं सुलभ हों और दवाएं तथा टीके उनके साधनों के भीतर उपलब्ध हों। इसमें मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों पर नए तरीके से विचार किए जाने की ज़रूरत है। 19 से 25 साल की उम्र के लोगों में आत्महत्या दुनिया में मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण है। स्वास्थ्य और खुशहाली हमारे पर्यावरण की गुणवत्ता से करीब से जुड़े हैं और लक्ष्य 3 का उद्देश्य वायु, जल, और मृदा प्रदूषण तथा दूषण से होनी वाली बीमारियों और मौतों की संख्या में भारी गिरावट लाना भी है। भारत ने पांच साल से कम उम्र में बच्चों की मृत्यु दर घटाने में कुछ प्रगति की है। यह दर 1990 में प्रति एक हज़ार जीवित जन्म पर 125 थी जो 2013 में घटकर प्रति एक हज़ार जीवित जन्म पर 49 रह गई है । यह सराहनीय है। साथ ही मातृ मृत्यु दर 1990-91 में प्रति एक लाख जीवित शिशु प्रसव पर 437 थी जो 2009 में घटकर 167 रह गई। दुनिया में टीबी (तपेदिक) के एक-चौथाई मामले भारत में होते हैं। यहां हर साल करीब 22 लाख लोगों में टीबी की पहचान होती है और इसके कारण लगभग 2 लाख 20 हज़ार लोगों की मौत हो जाती है। भारत सरकार का राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, एचआईवी/एड्स और यौन संचारी रोगों से निपटने के लिए लक्षित राष्ट्रीय कार्यक्रमों के अतिरिक्त राष्ट्रीय खुशहाली को प्राथमिकता दे रहा है और इस क्षेत्र में बदलाव का नेतृत्व कर रहा है। लेकिन वह उतना प्रभावी नहीं रहा है जितनी अपेक्षा थी। उद्देश्य है 2030 तक दुनिया में मातृ मृत्यु अनुपात घटाकर प्रति एक लाख जीवित शिशु प्रसव पर 70 से भी कम करना। 2030 तक नवजात शिशुओं और पांच साल कम उम्र में बच्चों में निरोध्य मौतें कम करना। सभी देशों का उद्देश्य नवजात शिशु मृत्यु दर प्रति एक हज़ार जीवित जन्म पर घटाकर कम से कम 12 करना और पांच साल से कम उम्र में बच्चों में मृत्यु दर प्रति एक हज़ार जीवित जन्म पर घटाकर कम से कम 25 करना है। 2030 तक एड्स, टीबी, मलेरिया और उपेक्षित कटिबंधीय बीमारियों को समाप्त करना तथा हेपेटाइटिस, जल जन्य रोगों तथा अन्य संचारी रोगों का सामना करना .2030 तक असंचारी रोगों से होनी वाली असामयिक मौतों में बचाव और उपचार के ज़रिए एक-तिहाई कमी करना तथा मानसिक स्वास्थ्य और खुशहाली को बढ़ावा देना।मादक पदार्थों सहित नशीले पदार्थों के सेवन और शराब के हानिकारक सेवन से बचाव और उपचार मज़बूत करना। 2030 तक सभी को परिवार नियोजन सूचना और शिक्षा सहित यौन और प्रजनन संबंधी स्वास्थ्य सेवाएं सुलभ कराना तथा प्रजनन संबंधी स्वास्थ्य को राष्ट्रीय नीतियों और कार्यक्रमों में शामिल करना।वित्तीय जोखिम संरक्षण सहित सभी के लिए स्वास्थ्य सेवा प्रदान करना, उत्तम आवश्यक स्वास्थ्य सेवाएं सुलभ कराना तथा सभी के लिए निरापद, असरदार, उत्तम और किफायती ज़रूरी दवाएं और टीके सुलभ कराना। हानिकारक रसायनों, वायु, जल, और मृदा प्रदूषण तथा दूषण से होने वाली मौतों और बीमारियों में भारी कमी करना।मूल रूप से विकासशील देशों में फैलने वाले संचारी और असंचारी रोगों के लिए टीकों और दवाओं के अनुसंधान और विकास को मज़बूत करना, ट्रिप्स समझौते और जन स्वास्थ्य पर दोहा घोषणा के अनुरूप किफायती आवश्यक दवाओं और टीकों को सुलभ कराना। इसके अंतर्गत सभी विकासशील देशों को अधिकार दिया गया है कि वे बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार संबंधी पहलुओं से सम्बद्ध समझौते के प्रावधानों का पूरी तरह इस्तेमाल करें। ये अधिकार जन स्वास्थ्य की सुरक्षा में लचीलेपन और विशेष रूप से सभी को दवाएं सुलभ करने से जुड़े हैं।स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए धन की व्यवस्था में उल्लेखनीय वृद्धि करना. स्वास्थ्यकर्मियों की भर्ती, विकास, प्रशिक्षण और उन्हें इस काम से जोड़े रखने के उपाय करना। राष्ट्रीय और वैश्विक स्वास्थ्य खतरों के बारे में त्वरित चेतावनी, जोखिम में कमी और प्रबंधन के लिए क्षमता मज़बूत करना समय की मांग है।
मध्यप्रदेश में बच्चों के संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाने के बाद भी सार्थक पहल की जरूरत है। समेकित बाल संरक्षण योजना में इसके महत्वपूर्ण आयामों एवं चुनौतियों का सामना आसान नहीं है। इस परिचर्चा में स्रोत व्यक्ति श्रीमती रूबी शुक्ला ने संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार समझौते से लेकर वर्तमान तक की बाल अधिकार संरक्षण की यात्रा पर व्यापक जानकारी दी। विषय विशेषज्ञ व विश्लेषक जहांआरा ने बच्चों के लिए संचालित योजनाओं व उन पर बजट की स्थिति पर तथ्यात्मक जानकारी देते
हुए साथियों से व्यापक स्तर पर सहयोग करने का आव्हान किया। डॉ. मोतीलाल यादव ने जिला स्तर, ब्लॉक स्तर व ग्राम स्तरीय बाल संरक्षण समितियों की संरचना व दायित्व को स्पष्ट करते हुए वास्तविक स्थिति पर प्रकाश डाला । बाल कल्याण समिति व किशोर न्याय बोर्ड की रिक्तियों को यथाशीघ्र भरने के साथ ही बाल अधिकार कार्यक्रम व योजनाओं हेतु बजट में अपेक्षित बढ़ोतरी की जाने की मांग की गयी।
इस अभियान में जिला बाल अधिकार मंच(चाइल्ड राइट ऑब्जर्वेटरी और दलित फोरम सहयोगी बनी है. जिसका सभी ने स्वागत किया है। इसमें ग्लोबल कालटूएक्शनअगेंस्ट Povertey का Tecnical सहयोग प्रशंसनीय है।
यह अभियान श्रीप्रकाश सिंह निमराजे,संस्थापक एवं अध्यक्ष गोपाल किरन समाज सेवी संस्था के नेतृत्व में संचालित किया जा रहा हैं जिसमे जहाँआरा,वीडियो वॉलिंटियर,गोआ द्वारा किये जा रहे योगदान की जितनी प्रशंसा की जाये वह कम है। इस अवसर पर जहाँआरा जी ने कहा कि गोपाल किरन समाजसेवी संस्था ने अपनी स्थापना के बाद से अबतक बिना अवरोध के एक लंबा सफर तय किया है जो एक मिसाल है।
कार्यकम में भाग लेने वाले प्रमुख लोगों में डॉ मोतीलाल यादव, शबनम खान, सैफुद्दीन, रूबी शुक्ला, लक्ष्मी डांडोतिया, आकांशा, मुन्ना देवी भदौरिया, आशा गौतम, अजय कुमार, विमल, श्रद्धेय महेंद्र गौतम, पुरुषोत्तम अर्गल, रणवीर, विमलेश अर्गल, नवजीत सहित अन्य प्रतिभागियों ने परसपर संवाद में भाग लिया।
इसमें जिला के बाल अधिकारों स्वास्त पर कार्यरत स्वैच्छिक संगठनों, आशा, डाक्टर्स, विषय विशेषज्ञों व मीडिया के साथियों की सहभागिता उल्लेखनीय रही। इस दौरान गोपाल किरन समाजसेवी संस्था की टीम के सदस्यों की उपस्थिति प्रशंसनीय रही।
आयोजित कार्यक्रम में उपस्थित अतिथियों व प्रतिभागियों के स्वागत का दायित्व जहांआरा, डीसीआर एफ व संस्था के प्राधिकारियों ने बखूबी निर्वहन किया। परिचर्चा के उद्देश्य के बारे में जानकारी देने का भार व सफल व प्रभावी संचालन श्री लक्ष्मी डडोतिया ने निबाह। कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन रजनी द्वारा किया गया।
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