मुख्यमंत्री अशोक गहलोत धीरे-धीरे सचिन पायलट खेमे को कमजोर करने में होते नजर आ रहे हैं कामयाब | New India Times

अशफाक़ कायमखानी, जयपुर(राजस्थान), NIT:

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत धीरे-धीरे सचिन पायलट खेमे को कमजोर करने में होते नजर आ रहे हैं कामयाब | New India Times

राजस्थान कांग्रेस में पिछले दो महीनों की उठा-पटक के बाद कांग्रेस हाईकमान द्वारा गहलोत-पायलट खेमे को एकजुट करने का संकेत देने के बावजूद दोनों नेताओं में चली आ रही अदावत का रुप बदलने के बावजूद उसी तरह अदावत आज भी जारी है। पहले उक्त दोनों नेताओं में मुकाबला उन्नीस-बीस का था लेकिन जब से पायलट से उपमुख्यमंत्री व प्रदेश अध्यक्ष पद छीना गया है तब से मुख्यमंत्री गहलोत का पलड़ा काफी भारी होता नजर आ रहा है।
पार्टी कार्यकर्ताओं व जनता की भावनाओं के विपरीत केवल मात्र विधायकों को खुश रखकर उनके बल पर अपनी सरकार चलाकर जैसे तैसे करके पूरे पांच साल मुख्यमंत्री पद पर चिपके रहने के माहिर अशोक गहलोत पिछले अपने दो मुख्यमंत्री कार्यकाल के बाद आम चुनाव में कांग्रेस के बूरी तरह हारने से कोई सबक लिये बीना इस दफा भी उन सब पुरानी गलतियों से बढकर अब भी गलती कर रहे है जो पहले करते आये है। गहलोत सरकार के गठन को करीब दो साल होने को आने के बाद भी आम जनता मे इस बात पर एक राय है कि अगले आम विधानसभा चुनाव मे कांग्रेस का बूरी तरह हारना तय है केवल बहस इस बात पर हो रही है कि कांग्रेस दस सीट तक जीत पायेगी या नही।
गहलोत जब जब मुख्यमंत्री बनकर सत्ता मे आये है तब तब उन्होंने अपनी विपक्षी पार्टी भाजपा को कमजोर करने की बजाय अपने ही दल में उनके स्वयं के मुकाबले उभरने वाले नेताओं को कमजोर करने मे सत्ता के पावर की ताकत का भरपूर उपयोग करते आये है। गहलोत अपने इस वर्तमान कार्यकाल मे भी पुराने इतिहास को दोहराते हुये शूरुआत से ही सचिन पायलट को राजनीतिक तौर पर कमजोर करने मे अपनी पुरी ताकत लगाते आ रहे। सचिन पायलट को कमजोर करने मे अशोक गहलोत को अब तक काफी कामयाबी भी मिलती नजर आ रही है।
1998 में अशोक गहलोत के पहली दफा मुख्यमंत्री बनने के बाद उनको अब तक प्रदेश अध्यक्ष के रुप मे केवल सीपी जोशी व सचिन पायलट से ही चेलेंज मिल पाया था। वर्तमान अध्यक्ष डोटासरा सहित बाकी सभी बने अध्यक्ष गहलोत की दया के पात्र के तौर पर ही साबित हुये व हो रहे है। यानि जोशी व पायलट को छोड़कर बाकी सभी की स्वयं विवेक अनुसार राय ना होकर वही राय रही जो मुख्यमंत्री गहलोत की राय रही है।
मुख्यमंत्री गहलोत अपने मुकाबिल कांग्रेस मे खड़े होने वाले सचिन पायलट को कमजोर करने मे तब से लगे हुये थे जब वो प्रदेश अध्यक्ष बने थे। अभी दो महीने पहले सम्पन्न राज्यसभा चुनाव के समय सचिन पायलट को कमजोर करने का मुख्यमंत्री गहलोत का पहला प्रयास विफल होने के बावजूद लगातार मोके की तलाश मे गहलोत रहे। दुसरा प्रयास पायलट व कुछ विधायको के दिल्ली जाने की खबर के साथ अपने खास महेश जोशी द्वारा ऐसीबी व एसओजी में 124-A सहित अन्य गम्भीर आरोपों में प्राथमिकी दर्ज करने के बाद अपने समर्थक विधायकों की बाड़ेबंदी करके अपने पक्ष व पायलट के विरोध में माहौल बना कर अचानक पायलट को उपमुख्यमंत्री व प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर अपने पिछलग्गू गोविंद डोटासरा को अध्यक्ष बनाकर बड़ी कामयाबी हासिल करके पायलट खेमे की कमर तोड़ दी। इसके बाद पायलट, रमेश मीणा व विश्वेंद्र सिंह के मंत्री पद से हटने के बाद 13-सितम्बर को जिले के प्रभारी मंत्रियों का जिला बदलकर इस तरह कामयाबी पाई कि पायलट व उनके समर्थक विधायकों के प्रभुत्व वाले जिलो का प्रभारी मंत्री उनको बना दिया जो मुख्यमंत्री के खासम खास है।जो अब मुख्यमंत्री की मंशा अनुसार रिपोर्ट तैयार करते रहने के साथ साथ पायलट खेमे पर नजदीक से नजर रख पायेंगे।इससे उन जिलो मे धीरे धीरे पायलट समर्थक विधायकों का प्रभाव भी कम किया जा सकेगा।
मुख्यमंत्री गहलोत द्वारा अब तमाम राजनीतिक नियुक्तियों का कार्य भी जल्द पुरा कर लेने की सम्भावना है। पहले प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट राजनीतिक नियुक्तियों के मनोनयन मे गहलोत से अलग मत रखकर हिस्सेदारी की बात करते थे। अब डोटासरा के अध्यक्ष बनने के बाद गहलोत की बल्ले बल्ले है। अब मुख्यमंत्री स्तर पर होने वाले तमाम फैसलो मे डोटासरा की केवल मात्र हां होगी किसी तरह की ना नुकर किसी हालत में डोटासरा की नहीं होना माना जा रहा है।
कांग्रेस के केन्द्रीय स्तर पर संगठन में पिछले दिनों हुए बदलाव मे सचिन पायलट को दूर रखकर अशोक गहलोत को बडी सफलता मिलना माना जा रहा है। अब मुख्यमंत्री राजस्थान मे होने वाली राजनीतिक नियुक्तियों मे पायलट समर्थकों को पूरी तरह किनारे लगाते हुये अपने खास लोगो का मनोनयन करके करने जा रहे है। मुख्यमंत्री स्तर पर चयनित नामो पर हां कहना ही वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष के पास केवल मात्र विकल्प माना जा रहा है। प्रदेश कांग्रेस कार्यकारिणी के गठन में पायलट समर्थकों का सफाया करके गहलोत बढती हासिल कर लेंगे।
कुल मिलाकर यह है कि मुख्यमंत्री गहलोत अपना बचा कार्यकाल भी जनता की भावनाओं की परवाह किये बिना केवल मात्र विधायकों को खुश रखने के वो सब काम करेंगे जो जरुरी है साथ ही वो अब पार्टी की मजबूती के बजाये सचिन पायलट को निचले पायदान पर धकेलने के प्रयास को तेजी देंगे। फिर भी देखते हैं कि गहलोत-पायलट में तू ढाल ढाल मैं पात पात की जंग में कौन कितना एक दुसरे को कमजोर कर पाता है।


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