निजीकरण कानूनी तौर पर गलत है: श्रीप्रकाश सिंह निमराजे | New India Times

Edited by Sandeep Shukla, NIT:

निजीकरण कानूनी तौर पर गलत है: श्रीप्रकाश सिंह निमराजे | New India Times

संविधान में आर्टिकल 21, 37, 38, 39 और 300 के रहते केन्द्र सरकार निजीकरण नहीं कर सकती और न ही निजीकरण पर कोई कानून बना सकती। यदि सरकार संविधान का उलंघन कर निजीकरण के लिए मनमाना कानून बनाती है तो सरकार अदालतों में टिक नहीं सकती बशर्ते न्यायालय सही न्याय करे। संविधान का उल्लंघन देशद्रोह का अपराध है और उम्र कैद की सजा का प्रावधान है और सही निर्णय होने पर सरकार भंग हो सकती है। आज अच्छी शिक्षा पा रहे सभी भारतीयों के बच्चे निजीकरण के कारण पूँजीपतियों के यहाँ 5000 के नौकर होंगे। सम्मानित साथियों संविधान सभा में इस बात पर विस्तार से चर्चा हुई थी कि देश में प्राइवेट सेक्टर तैयार किया जाए या पब्लिक सेक्टर/ सरकारी सेक्टर संविधान सभा की पूरी बहस के बाद संविधान निर्माताओं ने यह तय किया कि देश में व्यापक स्तर पर असमानता है और असमानता को दूर करने के लिए पब्लिक सेक्टर यानि सरकारी सेक्टर तैयार किया जाए। यह संविधान निर्मात्री सभा की सहमति हुई थी तथा संविधान के आर्टिकल 37, 38, 39 में भी सरकारी सेक्टर को केवल बढावा देना ही नहीं बल्कि ऐसी किसी भी प्रकार की नीति बनाने का प्रतिषेध किया है कि जिससे निजीकरण को बढ़ावा नहीं मिलना चाहिए। संविधान में यह व्यवस्था की गयी है कि सरकार ऐसी कोई नीति नहीं बनाएगी जिससे कि देश का अधिकांश पैसा ,संपत्ति कुछ गिने चुने लोगों के हाथों में इकट्ठा हो जाए। इसके बाद संविधान में 42वाँ संशोधन आया, जिसे माननीय सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई इसमे भी इस केस को गोरखनाथ केस के नाम से जाना जाता है इसमें भी यही कहा गया कि असमानता को दूर करने के लिए निजीकरण के बजाय सरकारी सेक्टर को बढ़ावा दिया जाए। यही नहीं बल्कि इंदिरा साहनी के निर्णय में भी माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के इन आर्टिकल्स को व्यापक जनहित में मानते हुए विल्कुल सही माना। संविधान में इन आर्टिकल्स के रहते हुए केन्द्र सरकार कोई भी ऐसा कानून नहीं बना सकती है जो कि देश के 135 करोड लोगों के खिलाफ़ हो और गिने चुने उद्योगपतियों को इसका फायदा मिले। संविधान में निजीकरण की इस बात के लिए मना किया गया है जबकि आज सरकार सरकारी सेक्टर को निजी हाथों में बेच रही है और ऐसी स्थिति में भारत की कम्पनियों के साथ मिलकर विदेशी कम्पनियाँ भी खरीद सकतीं हैं इससे देश गुलाम भी हो सकता है अतः इससे आर्टिकल 300 का भी उलंघन हो रहा है और विश्व बैंक की अनेकों रिपोर्टों में यह भी स्पष्ट हो गया है कि निजीकरण से देश में असमानता फैलती है। निजी उद्योगों में लोगों को पूर्ण वेतन नहीं मिलता है और कर्मचारियों से अधिक काम लिया जाता है तथा पेंशन और स्वास्थ्य जैसी अनेकों बुनियादी सुविधाओं से कर्मचारियों को वंचित रखा जाता है जबकि सरकारी सेक्टरों में पेंशन, भविष्य निधि, तथा चिकित्सा सुविधा और वीमा आदि अनेकों सुविधा प्रदत्त होती हैं और काम के निर्धारित घंटे होते हैं जबकि निजी क्षेत्र में किसी भी प्रकार की कोई गारंटी नहीं होती है ।

लोगों को पूँजीपतियों की बेगार करनी पड़ती है, जबकि संविधान में बेगारी प्रथा को प्रतिबंधित किया गया है और निजीकरण से बेगारी प्रथा पुनः लागू हो जायेगी, जो कि सन् 1947 से पहले देश में चल रही थी। जब संसाधनों की कमी थी उस समय सरकारी सेक्टर विकसित करने का निर्णय लिया गया और आज देश में सब कुछ होते हुए भी सरकारी सेक्टरों को कौड़ियों में बेंचकर निजी हाथों में दिया जा रहा है जो कि देश के संविधान का खुलेआम उलंघन हो रहा है और जनजीवन के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है।

श्रीप्रकाश सिंह निमराजे, संस्थापक एवं अध्यक्ष गोपाल किरन समाज सेवी संस्था।

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