अशफाक़ कायमखानी, सीकर/जयपुर (राजस्थान), NIT:
राजस्थान स्तर पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पिछले दिनों राजस्थान कांग्रेस राजनीति में आये भूंचाल के मध्य जयपुर की एक होटल में विधायकों की बाड़ेबंदी के मध्य चालाकी से अचानक तत्तकालीन प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट को पद से हटवाकर उनकी जगह सीकर की लक्ष्मणगढ़ विधानसभा क्षेत्र से निर्वाचित विधायक गोविंद सिंह डोटासरा को प्रदेश अध्यक्ष जरुर बनवाने में सफल हो गये लेकिन जिले मे दांतारामगढ़ विधानसभा के युवा विधायक वीरेन्द्र सिंह व उनके पिता चौधरी नारायण सिंह के राजनीतिक प्रभाव को किसी भी रुप में कमजोर करने में गहलोत व डोटासरा मिलकर अभी भी सफल नहीं हो पा रहे हैं।
हालांकि वीरेन्द्र सिहं की तरह ही डोटासरा भी विधायक बनने से पहले अपनी पंचायत समिति के पहले प्रधान रहे एवं फिर विधायक बने हैं। डोटासरा को प्रधान व फिर विधायक बनाने में पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष विधायक वीरेंद्र सिहं के पिता चौधरी नारायण सिंह का अहम रोल रहने के बावजूद डोटासरा अब मुख्यमंत्री गहलोत की झोली में बैठकर सीकर जिले की राजनीति को अपने हिसाब से चलाने की कोशिश करने में जिले में सीनियर नेताओं की मौजूदगी व दांतारामगढ़ से काफी राजनीतिक अनुभव रखने वाले युवा वीरेन्द्र सिंह का विधायक होना उनकी राह का बडा रोड़ा साबित होना माना जा रहा है।
राजनीतिक सूत्रों के अनुसार बताया जाता है कि जयपुर की होटल में विधायकों की बाड़ेबंदी में अचानक गोविंद सिंह डोटासरा का अध्यक्ष पद के लिये नाम सामने आने पर बाड़ेबंदी में मौजूद विधायक वीरेंद्र सिंह ने इस पर कड़ा ऐतराज जताया लेकिन मुख्यमंत्री गहलोत आखिरकार वीरेन्द्र सिंह को उस समय शांत करने में सफल हो गये थे। मुख्यमंत्री मजबूत जाट नेताओं की राजनीति को लचर करने के लिये उक्त तरह के प्रयोग समय समय पर करते रहे हैं। इससे पहले सरदार मनमोहन सिंह के मंत्रीमण्डल में तत्तकालीन कांग्रेस नेता शीशराम ओला के शामिल होने से रोकने के लिये महादेव सिंह खण्डेला का नाम आगे करके मुख्यमंत्री गहलोत ने उनको केंद्रीय मंत्री बनवाया था पर महादेव सिंह खण्डेला को कुछ समय बाद ही मंत्रीमंडल से हटाने का फैसला तत्तकालीन प्रधानमंत्री डाॅ. मनमोहन सिंह को लेना पड़ा था।
लक्ष्मणगढ़ विधायक डोटासरा पहले लक्ष्मणगढ़ पंचायत समिति के प्रधान व फिर तीन दफा कांग्रेस के निशान पर चुनाव लड़कर विधायक बनने पर इस दफा गहलोत मंत्रिमण्डल में शिक्षा राज्यमंत्री पद पाने के बाद अब अचानक प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बने हैं। वहीं वीरेंद्र सिंह पहले प्रधान व अब पहली दफा दांतारामगढ़ से विधायक बने हैं। वीरेन्द्र सिंह की पत्नी सीकर जिला प्रमुख भी रह चुकी हैं। पिता चौधरी नारायण सिंह के अनेकों दफा विधायक बनने के लिये लड़े गये चुनाव प्रबंधन का अनुभव भी विधायक वीरेन्द्र सिंह की काफी होना माना जाता है। जिले की राजनीति में वीरेंद्र सिंह विधायक के रुप में चाहे पहली दफा उभर कर आये हो लेकिन अपने पिता की राजनीतिक विरासत से अलग हटकर वीरेंदर सिंह के स्वयं की एक राजनीति विरासत भी कायम कर रखी है। उनका आमजन से गहरा जुड़ाव व राजनीति को बहुत ही करीब से समझकर फैसला लेने की कला के चलते उनका अपने विधानसभा क्षेत्र के साथ साथ पूरे जिले में अच्छा खासा राजनीतिक जनाधार व समर्थकों की मौजूदगी होना है।
कुल मिलाकर यह है कि डोटासरा से प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद पहली दफा गृह क्षेत्र सीकर आने पर हुये कार्यक्रम का काफी फीका रहने व उस कार्यक्रम से कांग्रेस के सीनियर विधायकों व नेताओं द्वारा पूरी तरह दूरी बनाने से अनेक तरह की राजनीतिक चर्चाओं को जन्म दे डाला है। देखते हैं कि आगे आगे सीकर की राजनीति में क्या क्या प्रयोग होते हैं एवं उन प्रयोगों में किन किन नेताओं का उपयोग होता है। देखना होगा कि जिले में उक्त दो युवा विधायकों के मध्य डाल डाल पत्ते पत्ते चल रही राजनीतिक प्रभुत्व जमाने की कोशिशें का ऊंट किस करवट बैठता है।
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