मुख्यमंत्री अशोक गहलोत धीरे-धीरे अपने ही तत्तकालीन उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट को राजनीतिक तौर पर कमजोर करने में होते जा रहे हैं सफ़ल | New India Times

अशफाक़ कायमखानी, जयपुर (राजस्थान), NIT:

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत धीरे-धीरे अपने ही तत्तकालीन उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट को राजनीतिक तौर पर कमजोर करने में होते जा रहे हैं सफ़ल | New India Times

करीब पौने दो साल पहले जब राजस्थान सरकार का गठन हुआ था तब से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत राजस्थान कांग्रेस में अपने मुकाबिल नेता सचिन पायलेट को कमजोर करके अपनी राह से हटाने के लिये मौके की तलाश में लगातार प्रयत्न कर रहे थे। मुख्यमंत्री गहलोत अपनी आदत के अनुसार अपनी सरकार बिना किसी दखल के अपने अनुसार चलाकर अपने लोगों को राजनीतिक व संवैधानिक पदों पर नियुक्ति देने के अलावा मंत्रीमण्डल विस्तार व बदलाव में अपने लोगों को तरजीह देना चाहते थे लेकिन तत्तकालीन समय के प्रदेश अध्यक्ष पायलट के होने से उनको काफी दिक्कतों का सामना होने के चलते उनकी लाख कोशिशों के चलते यह सबकुछ तब तक सम्भव नहीं हो पा रहा था जब तक पायलट प्रदेश अध्यक्ष व उपमुख्यमंत्री पद पर आसीन थे।
सरकार के चलने के एक अर्से बाद मुख्यमंत्री गहलोत अपना मंसूबा पूरा करने की कोशिश पहले राज्यसभा चुनाव में कुछ विधायकों के बगावती होने की सम्भावना का काल्पनिक माहौल बनाकर विधायकों व मंत्रियों की होटल में बाड़ेबंदी करके की पर राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवारों के 123 मत आने से वो सचिन पायलट को हाईकमान की नजर में सदिग्ध बना नहीं पाये पर जनता में एक चर्चा जरूर चल पड़ी थी की क्या वास्तव में कुछ कांग्रेसी विधायक भाजपा के सम्पर्क में थे या नहीं। यानि शंका का वातावरण जरुर उस समय बन गया था।
मुख्यमंत्री गहलोत सरकार गठन होने के बाद से लगातार पायलट को राजनीतिक तौर पर ठिकाने लगाने में लगातार मौके की तलाश में लगे रहे। अचानक जब मुख्यमंत्री को पता लगा कि पायलट के नेतृत्व में कुछ कांग्रेसी विधायक दिल्ली में उनके नेतृत्व के खिलाफ हाईकमान से मिलने गये हुये हैं तो उनको भाजपा के करीब व भाजपा के इशारे पर काम करता दिखाने के लिये ऐसीबी व एसओजी में दो शिकायत देकर विभिन्न धाराओं सहित 124-A में रपट दर्ज करवा कर दिल्ली गये विधायकों को जयपुर आते ही गिरफ्तार होने का उनके मनों में डर का माहौल पैदा करने में कामयाब हो गये। मुख्यमंत्री के ओएसडी के नम्बर से पत्रकारों के पास एक ओडीयो क्लिप भी सरकुलेटिंग करने के बाद आम जनता में सीधा संदेश जाने लगा कि सचिन पायलट भाजपा के साथ मिलकर सरकार गिराना चाहते हैं। बने इस तरह के वातावरण से सचिन पायलट को राजनीतिक तौर पर नुकसान होने के साथ साथ वो सदिग्ध भी बन गये तो मुख्यमंत्री गहलोत ने उस वातावरण का फायदा उठाते हुये हाईकमान के कुछ नेताओं को विश्वास में लेकर सचिन पायलट को प्रदेश अध्यक्ष व उपमुख्यमंत्री पद से हटाने में कामयाब हो गये। पायलट व उनके दो समर्थक मंत्रियों की बरखास्तगी से एक दफा तो पायलट धरातल पर आ गये यानी गहलोत उन्हें कमजोर करने में कामयाब हो गये। गहलोत ने पायलट को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर व सीनियर जाट नेताओं को दरकिनार करके कमजोर से कमजोर व जूनियर नेता गोविंद डोटासरा को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाकर एक तीर से अनेक शिकार एक साथ कर डाले।
राजनीतिक हलकों से मिल रही खबरों के मुताबिक राजस्थान कांग्रेस में आये उभाल को लेकर हाईकमान द्वारा बनाई तीन सदस्यीय कमेटी को अपने रसूखों के आधार से काफी हदतक मुख्यमंत्री ने इस बात के लिये तैयार कर लिया है कि सचिन पायलट को राष्ट्रीय संगठन में पद देकर एक तरह से उसे राजस्थान की राजनीति से दूर कर पावरलेस कर दिया जाये ताकि पायलट की लाॅबी प्रदेश में फिर से खड़ी हो ना पाये। एक एक महीने तक बाड़ेबंदी में साथ रहे विधायकों व नेताओं से मिलने नव मनोनीत राष्ट्रीय महामंत्री अजय माकन का तीस अगस्त से पांच दिन प्रदेश में आकर मिलने का प्रोग्राम बना है। पांच दिन कांग्रेस विधायकों व नेताओं से माकन मिलकर एक रिपोर्ट तैयार करके फिर उसको ठण्डे बस्ते में रख दिया जायेगा।
कुल मिलाकर यह है कि पिछले दो-तीन महीने से राजस्थान कांग्रेस में मुख्यमंत्री गहलोत व तत्तकालीन उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट धड़े के मध्य चले शह व मात के खेल में मुख्यमंत्री ने सचिन पायलट की प्रदेशाध्यक्ष व उपमुख्यमंत्री पद से छुट्टी करवा कर उन पर एक तरह से तरजीह हासिल कर ली है। इसके बाद अजय माकन को प्रभारी महासचिव बनवाने व तीन सदस्यीय कमेटी के गठन में भी गहलोत का पलड़ा भारी होना माना जा रहा है। हां यह सच है कि पायलट की वापसी, प्रभारी महांमत्री में बदलाव व तीन सदस्यीय कमेटी के गठन सहित बहुत कुछ होने के बावजूद गहलोत व पायलट में आपसी टकराव आगे भी जारी रहेगा एवं गहलोत सरकार पर तलवार बराबर लटकती रहेगी और मौका मिलते ही गहलोत सरकार गिरा दी जायेगी। वहीं अब सरकार में गहलोत समर्थक विधायकों की बल्ले बल्ले होकर वो अपने विधानसभा क्षेत्र के सर्वसर्वा रहेंगे, वहीं पायलट समर्थक विधायकों की सरकार के हिसाब से चवनी घिसी नजर आयेगी।


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