मेहलक़ा अंसारी, बुरहानपुर (मप्र), NIT:
वर्तमान युग में मुस्लिम समाज जनों में जहां शादियों में गैर इस्लामी रस्मो रिवाज के प्रचलन में आने से शादियों में हजारों लाखों रुपए खर्च होते हैं वहीं खण्डवा में 6 अगस्त 2020, गुरुवार को संपन्न हुई 0% ख़र्च की एक शादी ने खंडवा बुरहानपुर सहित पूरे प्रदेश और मुस्लिम समाज के लिए नवाचार के साथ एक ऐसी मिसाल कायम की है जिसका अनुसरण कर के महंगी होती जा रही शादियाँ और उनमें की जा रही फिज़ूल खर्ची को रोकने के लिये हमारा एक छोटा सा प्रयास भी हमारे समाज को नई दिशा दे सकता है। शाही जामा मस्जिद, बुरहानपुर के पेश इमाम सैय्यद इकराम उल्लाह बुखारी के चिरंजीव हजरत सैय्यद अनवार उल्ला बुखारी का निकाह खंडवा में इमरान काज़ी साहब की सुपुत्री के साथ मदरसा काज़ीयान, परदेशीपुरा में विशुद्ध रूप से इस्लामी रीति रिवाज एवं परंपरा अनुसार संपन्न हुआ।
इस निकाह की विशेषता यह थी कि दूल्हे वालों ने अपनी ओर से दिए गए सिर्फ एक जोड़े में दुल्हन को कुबूल किया, न तो लड़की वालों को ना बारातियों के लिये चाय, ठंडे का कोई इंतजाम करने दिया न निकाह के बाद खाने का कोई एहतेमाम था। हजरत सैय्यद इकराम उल्लाह बुखारी ने कहा कि मेरी दिली तमन्ना थी कि मैं अपने चिरंजीव (फ़रज़न्द) की शादी में सैय्यदना हज़रत अली करम अल्लाहु की सुन्नत के अनुसार अदा करूँ, जिसमें मैं आज कामयाब हो गया। निकाह संपन्न होते ही आधे घण्टे के अंदर दुल्हन भी विदा हो गई और सभी बाराती फ़ौरन बुरहानपुर के लिये रवाना हो गए।
बुरहानपुर के शाही इमाम हजरत सैय्यद इकराम उल्लाह बुखारी की कोशिशों से ऐसा माहौल तैयार हुआ है जो नवाचार के साथ साथ मुस्लिम समाज जनों के लिए अपने आपमें में एक मिसाल है। बारात में बैंड बाजा और नाच गाने की बिल्कुल मनाही है, अगर ज़रा भी कोताही बरती गई तो कोई भी काज़ी उस दूल्हा/दुल्हन का निकाह नही पढ़ा सकते। इस कायदे को बुरहानपुर के हर फर्द ने कुबूल किया जिस वजह से आज एक बेहतर माहौल तैयार हुआ, काज़ी ने आज फिर खण्डवा बुरहानपुर में एक मिसाल कायम की है। ज़रुरत है कि लोग इस पहल को आगे तक ले जाएं। उम्मीद की जा रही है कि शाही जामा मस्जिद बुरहानपुर के पेश इमाम हजरत सैयद इकराम उल्लाह बुखारी और उन के भाई सैय्यद तलत तमजीद के इन प्रयासों से मुस्लिम समाज जनों को नई दिशा प्राप्त होगी। और समाज इसका अनुसरण करेगा।
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