बहुमत का दावा करने वाले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत आखिर समर्थक विधायकों को और कितने दिन रख सकेंगे बाड़ेबंदी में??? | New India Times

अशफ़ाक़ कायमखानी, जयपुर (राजस्थान), NIT:

बहुमत का दावा करने वाले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत आखिर समर्थक विधायकों को और कितने दिन रख सकेंगे बाड़ेबंदी में??? | New India Times

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने नेतृत्व वाली सरकार को अभी भी बहुमत में बताने के बावजूद पिछले एक पखवाड़े से भी अधिक समय से अपने समर्थक कांग्रेस विधायक व निर्दलीय विधायकों सहित बीटीपी व अन्य दलों के विधायकों को जयपुर की आलीशान होटल में बाड़ेबंदी में कैद करके जनता के पैसों की बर्बादी करते रहने का तात्पर्य समझ से परे है। बहुमत अगर है तो चलाओ सरकार और विधायकों को करो आजाद ताकि कोराना की महामारी व प्रदेश में रोज एक हजार से अधिक आते मरीजों से छाये खौफ में अपने क्षेत्र की जनता के मध्य रहकर उनके डर को कम करने की विधायक कुछ ना कुछ कोशिश कर सकें। लेकिन गहलोत को विधायकों की विश्वसनीयता पर शक होगा कि वो आजाद होते ही उनसे अलग छिटक कर कहीं विरोधी घड़े से ना जा मिलें।
ऊधर पायलट खेमा भी मुख्यमंत्री गहलोत सरकार के अल्पमत में आने का दावा तो कर रहे हैं लेकिन संख्या बल उनके पास भी ठीक ठाक अभी तक उतना जुट नहीं पाया है जितने संख्या बल की उनको जरुरत है। फिर भी पायलट गुट ने गहलोत की कथित लगातार बनाई जाने वाली गांधीवादी छवि को जरूर सबके सामने लाकर गहलोत को केवल पद व सत्तालोलुपता के तौर पर ला खड़ा कर दिया है।
मुख्यमंत्री गहलोत के पीछे या उनके इशारे पर मतदाताओं का मतदान करना कभी प्रदेश में देखा नहीं गया लेकिन कांग्रेस की हाईकमान से हाथ मिलाये रखने के चलते वो तीसरी दफा जनता की इच्छा के विपरीत मुख्यमंत्री बनने में जरुर कामयाब रहे हैं। मुख्यमंत्री गहलोत का राजनीतिक प्रभाव का आंकलन तब भी हुआ था जब 1989 के लोकसभा चुनाव में मुस्लिम समुदाय की नाराजगी के चलते उनके सामने जोधपुर लोकसभा चुनाव में अब्दुल गनी सिंधी के निर्दलीय/इंसाफ पार्टी उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ते ही गहलोत चुनाव हार गये। 1989 के उस चुनाव के बाद एक दो दफा को छोड़कर अधिकांश लोकसभा चुनाव में कांग्रेस जोधपुर से हारती आ रही है। अबके लोकसभा चुनाव में गहलोत ने अपने पुत्र को उम्मीदवार बनाकर जनता पर थोपा तो जनता ने उसे बुरी तरह हराकर बैरंग लौटाया ही नहीं बल्कि गहलोत की स्वयं की बूथ से पुत्र वैभव को बहुत कम मत देकर उन्हें राजनीति का असल रुप दिखाया था।
मौजूदा राजनीतिक घटनाटक्रम पर नज़र दौड़ाएं तो पाते हैं कि गहलोत केवल मात्र अपने मुख्यमंत्री पद को बचाये रखने के लिये वो सब कुछ ताकत लगाकर कर रहे हैं जो वो कर सकते हैं । जबकि प्रदेश की जनता चाहती है कि मुख्यमंत्री गहलोत रहे या पायलट या फिर दोनों को छोड़कर तीसरे विकल्प को तलाशा जाये लेकिन कांग्रेस सरकार कैसे भी बची रहे पर कांग्रेस सरकार बचाये रखने में सबसे बडा रोड़ा गहलोत की मुख्यमंत्री पद पर बने रहने की जिद आड़े आ रही है।
कांग्रेस पार्टी की नीतियों के अनुसार प्रभारी महामंत्री का कार्य प्रदेश के नेताओं में ढंग से समनवय बनाये रखकर पार्टी संगठन व सरकार को मजबूती देते रहे लेकिन प्रभारी महासचिव अविनाश पाण्डे ने विधानसभा चुनाव के पहले तो पायलट की तारीफ करते रहे एवं ज्योही गहलोत मुख्यमंत्री बने तो पाण्डे ने रुख बदल कर केवल गहलोत के प्रति एक पक्षीय रवैया अपनाये रखा जिसका परिणाम आज कांग्रेस विधायकों के खण्डित होने के रुप में नजर आ रहा है।
कुल मिलाकर यह है कि मुख्यमंत्री गहलोत ईद-उल-जुहा व रक्षाबंधन जैसे पवित्र त्योहार से पहले विधानसभा सत्र बुलाकर महुमत सिद्ध करने के बहाने पायलटों समर्थक विधायकों की सदस्यता रद्द करवाने की कोशिश में लगे हुये हैं। वहीं जरूरत के होटल में बाड़ेबंदी में ठहरे गहलोत समर्थकों विधायकों ने एक अगस्त को ईद-उल-जुहा व तीन अगस्त को रक्षाबंधन जैसे पवित्र त्योहारों पर अपने अपने क्षेत्र में जाने का दवाब बना रहे बताते हैं। उसके बाद 15 अगस्त के स्वतंत्रता दिवस को भी सभी विधायक स्वतंत्रता के साथ मनाने की कह रहे हैं जबकि गहलोत केवल अपने मुख्यमंत्री पद बचाये रखने के लिये कांग्रेस पार्टी की बलि देने पर उतारु हैं। अभी भी समय है कि कांग्रेस गहलोत-पायलट को छोड़कर अन्य विकल्प पर विचार करे।

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