Edited by Arshad Aabdi, Jhansi, NIT:
लेखक: सैय्यद शहंशाह हैदर आब्दी
पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है। देश को चलाने में पत्रकारों का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। 30 मई यानी हिंदी पत्रकारिता दिवस। 1826 ई. का यह वही दिन था, जब पंडित युगल किशोर शुक्ल ने कलकत्ता से प्रथम हिन्दी समाचार पत्र ‘उदन्त मार्तण्ड’ का प्रकाशन आरंभ किया था। पत्रकारिता दिवस के मौके पर चंद पंक्तियों के ज़रिए पत्रकार के कार्यों का वर्णित करने का प्रयत्न किया है-
दीवानगी की हदों को पार करे जो,
कलम कैमरे से प्रहार करे जो,
सरकार बनाने बिगाड़ने की बात करे जो, सिस्टम सुधारने की बात करे जो।
कभी दंगो में कभी बलवो में ख़बर पाने की फ़िक्र में, जनता को सच दिखलाने की ज़िद में, अपनी जान की फ़िक्र न करे जो। धन से वंचित, ज्ञान से संचित, बुद्धिजीवी कहलाये जो। अभावग्रस्त जीवन कर, चौथे स्तम्भ की संज्ञा पाये जो। सर्वनाम होकर रह जाये और पत्रकार कहलाये जो।
लेकिन आज यह भी सच है कि उपरोक्त सभी गुणों से वंचित सत्ता शासन की गोद में बैठकर सारी सुविधाएं प्राप्त कर सिर्फ सत्ता शासन और सत्ताधारियों का महामंडन और सत्ताविरोधियों के ख़िलाफ सिर्फ नकारात्मक बातें लिखनें वाला,सम्प्रदाय, क्षेत्र, भाषा, देश और धर्म के नाम पर नफरत फैलाने और समाज में ज़हर फैलाकर देश को कमज़ोर करने वाला एक बड़ा वर्ग भी अपने आप को पत्रकार कह रहा है। इसका हमें सशक्त विरोध करना चाहिए।
हिंदी पत्रकारिता का हमारे साहित्य में बहुत ही बड़ा योगदान है, कैसे?
जेम्स अगस्तस हिक्की साहब भारत में व्यापार करने तो आये थे लेकिन ख़रीद फरोख़्त के इस धंधे में उन्हें निराशा ही हाथ लगी, उनकी पूंजी ख़र्च हो गई और व्यापार में उन्हें काफी घाटा हो गया क्यूंकि कर्ज़ वो चुका नहीं पाये थे इसलिए मुकदमों के जंजाल में फंसते चले गए अन्तः उन्हें जेल हो गई। जेल का जीवन उनके जिंदगी में एक बदलाव लेकर आया और तत्कालीन जेलर से उनकी दोस्ती वह किताबों का ढेर और उनको पढ़ना उनको एक नई बौद्धिक दिशा में ले गया। यही से उन्हें पत्रकारिता करने का शौक सवार हुआ। उन्होंने ठान लिया अब वो अख़बार निकाल कर ही दम लेंगे। जेल से छूटने के बाद हिक्की साहब ने कलकत्ता में ही प्रेस लगाया और अपनी पत्रकारिता की शुरुआत की, वे भ्रष्ट अंग्रेज़ अधिकारियों के ख़िलाफ सच बोलने और लिखने लगे। हिक्की का विरोध भी होने लगा और उन्हें मुक़दमों की धमकियां भी मिलने लगीं। हिक्की ने अंग्रेज़ अधिकारी कियर मांडो पर ख़ूब हमले किये इतना ही नहीं तत्कालीन गवर्नर जनरल वॉरेन हेस्टिंग्स को भी नहीं बख़्शा। उनकी पत्नी के विरोध में उन्होंने लेखनी चलाई विरोध का स्वर बढ़ता गया और उन पर दबाव बनता गया और इतना दबाव बना की उनको ज़िद में यह कहना पड़ा की मैं जुर्म के ख़िलाफ आवाज़ बुलन्द करना कभी नहीं छोड़ूंगा भले ही मेरा अख़बार बंद कर दिया जाय। कोलकाता हाईकोर्ट के जज हिक्की के लेखनी के शिकार हुए और एक ऐसा वक़्त आ गया जब हिक्की मुकदमों के बोझ तले दब गए उनका अख़बार बंद हो गया और उनको जेल भेज दिया गया। स्वभाव से हिक्की ज़िद्दी तो थे ही साथ ही उन्होंने ठान लिया अब कुछ भी हो जाये मैं ब्रिटेन वापस नहीं जाऊंगा। अंग्रेज़ी हुकूमत से लोहा लेते हिक्की का निधन 1820 ईस्वी में हो गया।
हिन्दी पत्रकारिता का विकास वह दौर था जब देश में अंग्रेजी अख़बारों के अलावा बंगला, उर्दू और फ़ारसी में भी अख़बार छपने लगे थे लेकिन हिंदी का कोई पूर्वोधा सर नहीं उठा पा रहा था। हिक्की साहेब के तेवरों से पत्रकारिता को एक नई और सुदृढ़ दिशा तो मिल ही चुकी थी। केवल एक समर्थ नेतृत्व की आवश्यकता थी। साल 1826 और तारीख थी 30 मई, जब हिंदी में एक साप्ताहिक अख़बार ने अपनी आँखे कलकत्ता के कलु टोला मोहल्ले में खोली। जी हां, उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर के निवासी पंडित युगल किशोर शुक्ल ने इसको जीवन दिया नौकरी के लिए शुक्ल जी कलकत्ता गए थे और पत्रकारिता का वह उन्हें ऐसा नशा चढ़ा कि उन्होंने “उदंत मार्तण्ड” के नाम से एक अखबार निकालकर ही दम लिया। इसलिए इस दिन को हम “हिंदी पत्रकारिता दिवस” के रूप में मनाते है। पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने इसे कलकत्ता से एक साप्ताहिक समाचार पत्र के तौर पर शुरू किया था। इसके प्रकाशक और संपादक भी वे ख़ुद ही थे। पंडित जुगल किशोर शुक्ल वकील भी थे और कानपूर में रहते थे लेकिन उस समय औपनिवेशिक ब्रिटिश भारत में उन्होंने कलकत्ता को अपनी कर्मस्थली बनाया। ग़ुलाम हिन्दुस्तान में हिंदुस्तानियों के हक़ की बात करना बहुत बड़ी चुनौती बन चुका था। उस समय अगर हमें कोई बात कहना होता था तो बहुत बड़ा मुश्किल काम होता था। उन दिनों में कोई सोशल मीडिया नहीं था उस वक़्त पर इसी के लिए उन्होंने कलकत्ता के बड़ा बाज़ार इलाके में अमर तल्ला लें, कोलूटोला में साप्ताहिक “उदंत मार्तण्ड” का प्रकाशन शुरू किया। यह साप्ताहिक अख़बार हर हफ्ते मंगलवार को पाठकों तक पहुँचता था। परतंत्र भारत की राजधानी कलकत्ता में अंग्रेजी शासकों की भाषा अंग्रेज़ी के बाद बांग्ला और उर्दू का प्रभाव था। इस लिए उस समय अंग्रेज़ी, बांग्ला और फारसी में कई समाचार पत्र निकलते थे। हिंदी भाषा का एक भी समाचार पत्र मौजूद नहीं था। यह जरूर है की 1818 और 1819 में कलकत्ता स्कुल बुक के बांग्ला समाचार पत्र “समाचार दर्पण” में कुछ हिस्से हिंदी में भी होते थे।
हालाँकि “उदंत मार्तण्ड” एक साहसिक प्रयोग था। इस साप्ताहिक समाचार पत्र के पहले अंक की 500 प्रतियां छपीं। हिंदी भाषी पाठकों की कमी की वजह से उसे ज़्यादा पाठक नहीं मिल सके। दूसरी बात कि हिंदी भाषा राज्यों से दूर होने के कारण उन्हें समाचार पत्र डाक द्वारा भेजना पड़ता था। डाक दरें बहुत ज़्यादा होने की वजह से इसे हिंदी राज्यों में भेजना भी आर्थिक रूप से महंगा सौदा हो गया था। पंडित जुगल किशोर ने सरकार से बहुत अनुरोध किया कि वे डाक दरों में कुछ रियायत दे, जिससे हिंदी भाषी प्रदेशों में पाठकों तक समाचार पत्र भेजा जा सके। लेकिन ब्रिटिश सरकार इसके लिए राज़ी नहीं हुई। साथ ही किसी भी सरकारी विभाग ने “उदंत मार्तण्ड” की एक भी प्रति ख़रीदने पर भी रज़ामंदी नहीं दी। पैसों की तंगी के वजह से “उदंत मार्तण्ड”
का प्रकाशन बहुत दिनों तक नहीं हो सका और आखिरकार ये समाचार पत्र का प्रकाशन 4 दिसम्बर 1826 को बंद हो गया।
इसके दो साल बाद राजा राममोहन राय ने हिंदी बंगदूत का प्रकाशन आरंभ किया जो लगभग 100 साल तक प्रकाशित होता रहा और सन् 1827 से लेकर सन् 1930 तक के सफर में प्रांतीय भाषाओं में पत्र-पत्रिकाओं का खूब प्रचार-प्रसार हुआ इनमे से कई तो अंग्रेजी हुकूमत से टक्कर लेते थे तो बहुत सारे अख़बार गोरो का गुणगान भी करते थे। सन 1930 से लेकर आज तक की हिंदी पत्रकारिता ने काफी तरक़्क़ी कर ली है।
आज का दौर बिलकुल बदल चुका है पत्रकारिता की दुनिया आज बहुत आगे बढ़ गई है। छोटे, मझोले और बड़े हिंदी अखबारों की संख्या में काफी इज़ाफा हो रहा है। ये संख्या लगभग एक लाख के आस-पास पहुँच रही है। हिंदी चैनलों की संख्या में हर दिन बढ़ोत्तरी हो रही है। करीब पांच सौ से ज्यादा स्थानीय और राष्ट्रीय हिंदी चैनल अपनी सेवाएं दे रहे है। साइबर मीडिया में हिंदी के ब्लॉग और वेबसाइट की भरमार है। पत्रकारिता में बहुत ज़्यादा आर्थिक निवेश हुआ है और इसे उद्योग का दर्जा हासिल हो चुका है। हिंदी के पाठकों की संख्या और बहुत बढ़ गई है और इसमें लगातार इज़ाफा हो रहा है।
लेकिन चाटुकार, बिकाऊ और झूठ के पैरोकार पत्रकारों में भी बहुत इज़ाफा हुआ है। यह सच और झूठ के फ़र्क़ को नज़र अंदाज़ कर सत्ता और पूंजीवादियों की ग़ुलामी करते हैं। देश और समाज को गुमराह करते हैं। आम जनता और निर्भीक और निष्पक्ष पत्रकारों को ऐसे बे-ईमान पत्रकारों का बहिष्कार करना चाहिए। तभी पत्रकारिता पवित्र रह सकती है।
सम्पूर्ण राष्ट्र एवं लोकतंत्र की मज़बूती के लिए उत्कृष्ट भूमिका निभाने वाले तथा हमारे दैनिक जीवन में अभूतपूर्व योगदान देने वाले मीडिया एवं इलेक्ट्रानिक मीडिया के समस्त सम्मानित प्रतिनिधियों, पत्रकार बंधुओं, आदर्श पत्रकारिता के मूल्यों की रक्षा की ख़ातिर अपने प्राणों की आहुति देने वाले कलमकारों को नमन करते हुए निष्पक्ष पत्रकारिता की लौ सदा जलती रहे इसी कामना के साथ हिन्दी पत्रकारिता दिवस(30 मई) पर सभी सम्मानित पत्रकार भाइयों -बहनों को हार्दिक शुभकामनाएँ, बधाई और मुबारकबाद।
सैयद शहनशाह हैदर आब्दी, समाजवादी चिंतक, झांसी।
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