ईद विशेष: ईद-उल-फितर भाई चारे को बढ़ावा देने का त्योहारी | New India Times

Edited by Arshad Aabdi, NIT:

लेखक: सैय्यद शहंशाह हैदर आब्दी

ईद विशेष: ईद-उल-फितर भाई चारे को बढ़ावा देने का त्योहारी | New India Times

‘ईद उल फितर’ पर बात करने से पहले ‘रमज़ान’ के पाक महीने और ‘रोज़े’ (उपवास) का तज़किरा ज़रुरी है। तब ही ‘ईद उल फितर’ पर बात मुकम्मल होगी। सौम एक अरबी शब्द है। इसका बहुवचन ‘सियाम’है। रमज़ान के पवित्र मास में रखे जाने वाले उपवास ही “सौम” हैं। अरबी देशों में इसको सौम के नाम से ही जाना जाता है लेकिन फ़ारसी भाषा के प्रभाव रखने वाले देश जैसे, तुर्की,  ईरान, पाकिस्तान, भारत, बंग्लादेश, में इसे ‘रोज़ा’ के नाम से जानते हैं। मलेशिया, सिंगपूर, ब्रूनेई जैसे देशों में इसे ‘पुआसा’ कहते हैं, इस शब्द का मूल संस्कृत शब्द उपवास है।

रौज़े का तरीक़ा: सहरी : सुबह फज्र की नमाज़ से पहले लिये जाने वाले हल्के खाद्य पदार्थ।

इफ़्तार : हमारी जानकारी के अनुसार सूरज डूबने के बाद अहले सून्नत हज़रात, मगरिब की नमाज़ से पहले पिन खजूर और शर्बत से रोज़ा इफ्तार कर लेते हैं । जबकि शिया मुस्लिम, मग़रिब की नमाज़ अदा करके रोज़ा इफ्तार करते हैं।

रोज़े का मक़सद सिर्फ भूखे-प्यासे रहना ही नही है, बल्कि अल्लाह की इबादत करके उसे राज़ी करना है। रोज़ा पूरे शरीर का होता है। रोज़े की हालत में न कुछ गलत बात मुँह से निकाली जाए और न ही किसी के बारे में कोई चुगली की जाए। ज़ुबान से सिर्फ अल्लाह का ज़िक्र ही किया जाए, जिससे रोज़ा अपने सही मकसद तक पहुँच सके।

रोज़े का असल मकसद है कि बंदा अपनी जिन्दगी में तक़्वा ले आए। वह अल्लाह की इबादत करे और अपने नेक आमाल और हुस्ने सुलूक से पूरी इंसानियत को फायदा पहुँचाए। अल्लाह हमें कहने-सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे। (आमीन) माहे रमज़ान को नेकियों का मौसमे बहार कहा गया है। जिस तरह मौसमे बहार में हर तरफ हरियाली ही हरियाली और रंग-बिरंगे फूल नज़र आते हैं। इसी तरह रमज़ान में भी नेकियों पर बहार आई होती है।

यह महीना मुस्तहिक़ लोगों की मदद करने का महीना है। इरशाद हुआ है,” किसी की मदद करते वक़्त उसकी आंखों में ना देख़ना। हो सकता है कि उसकी आंखों में मौजूद शर्मिन्दगी तुम्हारे दिल में ग़ुरूर पैदा करदे और तुम गुनाहगार हो जाओ। क्योंकि ग़ुरूर और तकब्बुर अल्लाह-तआला को हरगिज़-2 पसन्द नहीं।”

ईद विशेष: ईद-उल-फितर भाई चारे को बढ़ावा देने का त्योहारी | New India Times

ईद उल-फ़ित्र या ईद उल-फितर: पहली “ईद उल फितर” पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद अलैहिस्सलाम ने सन 624 ईस्वी में जंग-ए-बदर में जीत के बाद मनाई थी।

मुसलमान रमज़ान उल-मुबारक के महीने के बाद एक मज़हबी ख़ुशी का त्योहार मनाते हैं जिसे ईद उल-फ़ित्र कहा जाता है। ये यकुम (एक) शव्वाल-अल-मुकर्रम को मनाया जाता है। शव्वाल-अल-मुकर्रम — इसलामी कैलंडर के दसवें महीना है। इसलामी कैलंडर के सभी महीनों की तरह यह भी नए चाँद के दिखने पर शुरू होता है। मुसलमानों का त्योहार ईद मूल रूप से भाईचारे को बढ़ावा देने वाला त्योहार है। इस त्योहार को सभी आपस में मिल के मनाते है और खुदा से सुख-शांति और बरकत के लिए दुआएं मांगते हैं। पूरे विश्व में ईद की खुशी पूरे हर्षोल्लास से मनाई जाती है। ईद के दिन मस्जिद में सुबह की प्रार्थना से पहले, हर मुसलमान का फ़र्ज़ है कि वो दान या भिक्षा दे। इस दान को ज़कात उल-फ़ित्र कहते हैं। यह दान तीन किलोग्राम कोई भी प्रतिदिन खाने की चीज़ का हो सकता है, मिसाल के तौर पर आटा, या फिर उन तीन  किलोग्राम आटे का मूल्य भी। नमाज़ से पहले यह ज़कात ग़रीबों में बाँटा जाता है।

उपवास की समाप्ति की खुशी के अलावा इस ईद में मुसलमान अल्लाह का शुक्रिया अदा इसलिए भी करते हैं कि उन्होंने महीने भर के उपवास रखने की शक्ति दी। ईद के दौरान बढ़िया खाने के अतिरिक्त नए कपड़े भी पहने जाते हैं और परिवार और दोस्तों के बीच तोहफ़ों का आदान-प्रदान होता है। सिवैया इस त्योहार की सबसे जरूरी खाद्य पदार्थ है जिसे सभी बड़े चाव से खाते हैं। लेकिन इस वर्ष इस अमल पर अंकुश लगायें।

आवश्यक अपील : अपने कलमागो भाई – बहनों से हमारी दस्तबस्ता गुज़ारिश है,”वैसे तो हम हर साल ही फितरा और ज़कात निकालते हैं । लेकिन इस साल जिस तरह के हालात मुल्क और दुनिया में हैं। “खुदा के एक अज़ाब “कोरोना वायरस” और दूसरा “एम्फन” और तीसरा पाकिस्तानी टिड्डीदल और दूहरी तमाम मुश्किलों से हम सब परेशान है। घर पर ही सारे आमाल अदा कर रहे हैं। देश में आम आदमी और ग़रीब ना सिर्फ परेशान है बल्कि भूखा भी है। इसलिये हम सब पर फ़र्ज़ हो जाता है कि अपनी ईद की ख़रीदारी बिल्कुल ना करें बल्कि इस पैसे को भी देश में आम आदमी और ग़रीब पर ही खर्च कर दें। हमारा यह अमल रमज़ान को और मुबारक बना देगा और हमारे सवाबे जारिया का एक ज़रिया और बढ जायेगा।“

इससे न सिर्फ आपका भला होगा बल्कि आपके ख़ानदान, मोहल्ले, शहर, सूबे और मुल्क के साथ दुनिया का भी भला हो सकेगा। यह ज़मीन हक़ीक़त में अमन, इंसानियत, भाई चारगी और मोहब्बत का गहवारा बन जायेगी। दरअसल ईद-उल-फितर वतन, मज़हब और अवाम के साथ दुनिया की भलाई के लिये एक मज़बूत पैग़ाम भी है।

यह सब करने के बाद, सबके साथ मिलकर,”ईद मुबारक, तहेदिल से मुबारक – मुबारक मुबारक!” कहने का मज़ा ही कुछ और होगा।

नोट: शिया मस्जिद(ईदगाह) नई बस्ती झांसी में ईद की बाजमाअत नमाज़ नहीं होगी। मोमीनीनेएकराम से मआज़रत के साथ कि वो नमाज़ घर पर ही अदा करें। वस्सलाम।


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