भोपाल में महिलाओं ने फासीवादी ताकतों से लड़ने का लिया संकल्प | New India Times

अबरार अहमद खान/मुकीज खान, भोपाल (मप्र), NIT:

भोपाल में महिलाओं ने फासीवादी ताकतों से लड़ने का लिया संकल्प | New India Times

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के नीलम पार्क में WSS संगठन के तत्वाधान में एनआरसी, सीएए, एनपीआर को लेकर ज़बर्दस्त विरोध प्रदर्शन किया गया जिसमें देशभर से आई हुई महिलाओं ने भोपाल की दलित, आदिवासी, मुसलमान, हिन्दू, नास्तिक और अन्य जेंडर के लोगों के साथ नीलम पार्क में बैठकर एकजुटता से फासीवादी ताकतों से लड़ने का संकल्प लिया। इस के इलावा इंसानी बिरादरी द्वारा “हम संविधान को बचाएंगे कुछ नहीं दिखाएंगे” असहयोग आंदोलन स्टीकर का विमोचन भी किया गया।

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वहीं असम से भोपाल पहुंची तान्या ने लोगों को संबोधित करते हुऐ कहा कि हम औरतें चूड़ी भी पहनेंगी, बुर्खे भी पहनेंगी, हम खाना भी बनाएंगे, हम बच्चों को भी सम्भालेंगी और हम सड़क पर भी आएंगी। वहीं प्रकाश अम्बेडकर ने अपने व्याख्यान में कहा इस सरकार ने वंचित तबकों के साथ काम कर रहे लोगों को भीमा कोरेगाँव-एल्गार परिषद के झूठे केस में ‘शहरी नक्सली’ की मनगढ़ंत कहानी से फंसाया है। यह लड़ाई कोर्ट में जाकर लड़िए, ऐसा सरकारी जांच अधिकारियों का होता है लेकिन अदालतें भी हमें न्याय नहीं दे पाई हैं। इन बातों से, वो नागरिकता हो, या नक्सली मसला, लोगों के बीच आशा लटकाते रहते हैं। यह लड़ाई लोगों को ही सब जगह लड़नी होगी। उन्होंने कहा कि एनआरसी 40% हिंदुओं के ख़िलाफ़ जाएगी। अपराधिक जनजाति कानून से विभिन्न समुदायों को, जो ‘पिंडारी’ होते थे और आज देश के 16% आबादी हैं, उनके पास कहाँ से दस्तावेज आयेंगे? आज 70 साल की आज़ादी के बाद 60% आबादी के पास गांव नहीं है। सरकार को देखना होगा कि अब हम बुद्धू नहीं बनेंगे, हिन्दू समाज के लोग जागृत हो चुके हैं और यह आर-पार की लड़ाई है। यह तरह तरह के स्टेटमेंट देंगे कि हम एनआरसी नहीं करेंगे। लेकिन हम बुद्धू नहीं हैं।

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पश्चिम बंगाल से आयी निशा ने भी इसी बात में जोड़ा कि एनआरसी नहीं करोगे, तो एनपीआर क्यों कर रहे हो? हम सेन्सस में साथ देना चाहते लेकिन जब न सेन्सस से हमारी जिंदगियां बदली हैं और एनपीआर से और मुश्किल आयेगी तो हम कोई जवाब नहीं देंगे। ‘वी द पीपल’ को ही संविधान बचाना है। इंसानी बिरादरी ने सभी संगठनों के साथ ‘असहयोग आन्दोलन’ की घोषणा करी| बड़वानी से जागृत आदिवासी दलित संगठन से माधुरी बहन ने बोला कि अब आज़ादी की लड़ाई तब तक लड़ी जाएगी जब तक जीत नहीं हासिल हो जाती। उन्होंने कहा अभी वोटर सरकार चुनती थी और अब सरकार तय कर रही कौन रहेगा वोटर।

उर्दू, हिंदी और अंग्रेज़ी में कही गई कविताओं से देश के वंचित और दूर के इलाकों की परिस्थितियां व्यक्त की गई। कश्मीर की चुप की गई आवाज़ के बीच में यह आवाज़ें हमें इन क्षेत्रों की खबर मिली। WSS द्वारा की गई सॉलिडेरिटी भ्रमण की टीम सदस्यों ने साझा किया कि 1913 में पहली बार कश्मीरी ज़मीन और नौकरियां राज्य के लोगों के लिए की गई थी क्योंकि यह कश्मीरी पंडितों की माँग थी कि नौकरियां अंग्रेजों और कश्मीर के अंदर के रहवासियों के लिए ही रखी जाए। आज कश्मीर का हर इंसान लगातार ज़ुल्म से जख्मी है।
महिला मंच की राम कुवर ने भी सरकार को चेताते हुए कहा कि इस आन्दोलन में हमें एक दूसरे के विरुद्ध फकने की कोशिश मत करो। अगर सरकार अभी भी बात नहीं समझे, तो हम सब सड़क पर आयेंगे। बस्तर से आयीं सोनी सोरी और झारखंड से आयीं अलोका कुजूर के व्याख्यान में लौह अयस्कों और खनन के लिए आदिवासीयों को उनकी ज़मीन से बेघर करने के संघर्ष में लोगों के मानव अधिकारों के हनन, झूठे मसलों में फ़साने और ‘नक्सली’ कहकर जेल में भरने की बात कही। हम पीछे नहीं हटेंगे, यह फ़ासीवादी सांप्रदायिक और पूंजीवाद पर टिके सरकारों को देश के लोगों की बात सुननी होगी। नौकरीयाँ, शिक्षा, जल जंगल ज़मीन के अधिकारों की पूर्ती पर ध्यान देने की पुकार और नफरत की राजनीति के विरुद्ध एक साझी आवाज़ में औरतों के संघर्ष पर ध्यान आकर्षित हुआ।
चाहे वो घर के अन्दर लड़ाई हो, या बाहर की लड़ाई हो, इसमें औरतें ही सबसे ज़्यादा दमन का सामना करती आयी हैं, फिर चाहे वो राजकीय ताकतों द्वारा किया जाए, या समाज और परिवार द्वारा। शाहीन बाग़ से भोपाल की इकबाल मैदान की औरतों से प्रेरणा मिलती है। हमारे विरोध सिर्फ भाषण से ही नहीं, बल्कि संगीत, कविताओं, नज्मों, कथाओं से बाँध कर उतने ही बुलंद तरीकों से, लोकतंत्र की सुरक्षा के लिए हम अपने अनेक सुरों को एक राग में पिरो कर व्यक्त करते हैं।


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