सूफ़ी परंपरा में एक रोशन नाम कुतुब- ए-दकन मौलाना अब्दुल गफूर कुरैशी | New India Times

अब्दुल वाहिद काकर, ब्यूरो चीफ, धुले (महाराष्ट्र), NIT:

सूफ़ी परंपरा में एक रोशन नाम कुतुब- ए-दकन मौलाना अब्दुल गफूर कुरैशी | New India Times

देवबंदी सूफी परंपरा में मौलाना हुसैन अहमद मदनी के सिलसिले में एक चमकता हुआ नाम मौलाना अब्दुल गफूर कुरेशी का है। उन्होंने सुफी आंदोलन पर गहन शोध और अध्ययन किया है। कुरान व हदीस की रोशनी में ध्यान साधना तसव्वुफ़ पर कई ग्रंथ लिखे हैं। मराठवाड़ा में सूफी दर्शन के विचारों पर प्रसार प्रसारित करने में उनका महत्वपूर्ण योगदान है।

दक्षिण भारत मे ‘सुफी दर्शन’ के प्रसार-प्रचार के लिए मौलाना अब्दुल गफूर कुरैशी का बडा योगदान रहा हैं। उदगीर जैसे छोटे शहर के इस व्यक्ति का सुफी दर्शन का ज्ञान अदभूत था। सुफी दर्शन पर उर्दू भाषा में उन्होंने अनेक महत्वपूर्ण ग्रंथों कि रचनाएं की हैं जो सुफी दर्शन के अध्ययन के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं।

मौलाना गफ़ूर कुरैशी का जन्म 1920 ईसवी में उदगीर शहर में हुआ। उनका पुरा नाम मौलाना शाह मुहम्मद अब्दुल गफ़ूर कुरैशी था। वे दक्षिण भारत में सुफी आंदोलन के उन अग्रदूतों में से एक हैं जिन्होंने दक्षिण की इस्लामी समाजक्रांति की विरासत को खोज निकालने में अपना बड़ा योगदान दिया।

सुफी आंदोलन की विरासत को सहेजते हुए इस्लामी दर्शनशास्त्र के तालीम के लिए विद्यालय भी स्थापित किए। महाराष्ट्र के लातूर शहर में ‘कासिम उल उलुम’ नामक इस्लामी दर्शनशास्त्र के विद्यालय की शुरुआत की। आज भी यह मदरसा सैकडों छात्रों को इस्लामी दर्शन की शिक्षा प्रदान करता है। उनके इस महान कार्य के लिए उन्हें लोगों द्वारा ‘कुतुब ए दकन’ की उपाधी दी गई।

शुरुआत में औरंगाबाद के एक निजी कॉलेज में शिक्षक के रूप में काम किया। 12 साल सरकारी सेवा में रहने के बाद उन्होंने नौकरी से हमेशा के लिए इस्तीफा दे दिया। जिसके बाद उन्होंने जमीयत उलेमा के सामाजिक, राजनीतिक आंदोलन में भाग लिया। मौलाना अब्दुल गफूर ने इस आंदोलन के माध्यम से मुस्लिम समुदाय में सामाजिक और राजनीतिक जागरूकता बढ़ाने की कोशिश की।

सन 1965 में उन्हें केंद्रीय रक्षा विभाग द्वारा कैद किया गया। ढाई महीने तक हिरासत में रहने के बाद वह जेल से रिहा हुए। जिसके बाद, उन्होंने लातूर में एक इस्लामिक स्कूल, ‘मिस्बाहुल उलूम’ में प्रिंसिपल के रूप में कार्य शुरू किया।

कुछ समय के लिए लातूर में रहने के बाद वह अपनी जन्मभूमि उदगीर लौट आए। वहां उन्होंने स्कूल ‘कासिम उल उलूम’ विद्यालय कि जिम्मेदारी अपने हाथ में ली। इस मदरसे की स्थापना 1897 में उनके दादा मौलाना मुहम्मद कासिम ने की थी। मौलाना अब्दुल गफूर के नेतृत्व में स्कूल ने उल्लेखनीय प्रगति की। 1948 में निजाम प्रशासित हैदराबाद का भारत में विलय हुआ। इस दौरान, यह स्कूल पुलिसिया कारवाई में पूरी तरह से नष्ट हो गया।

  • सुफी आंदोलन पर गहन शोध और अध्ययन किया
    कुतुब-ए-दकन मौलाना अब्दुल गफूर ने सुफी आंदोलन पर गहन शोध और अध्ययन किया हैं। उन्होंने सुफी दर्शन के तसव्वुफ़ (ध्यान) सिद्धान्त, इस्लामी आध्यात्मिकता और कुछ अन्य विषयों पर महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखे हैं। उनमें से ‘फुयुजात ए मदीनिया’, ‘रहबर ए सुलूक’, ‘बंदनवाजी तसव्वुफ़’ शामिल हैं।

तसव्वुफ़ (ध्यान) सिद्धान्त, इस्लामी आध्यात्मिकता विषयों पर ग्रंथ लिखे

इसके अलावा, मौलाना अब्दुल गफ़ूर ने ‘अनवारुल कुलूब’, ‘वजाहत ए तसव्वुफ़’, ‘हदीस ए तसव्वुफ़’, ‘सोहबते बा औलिया’, ‘नूर ए हिदायत’, ‘ज़िक्र इजतमाई और ‘ज़ाहरी शरीयत की माँ’ और ‘ज़िक्र और एहतेकाफ कि अहमियात’ जैसे महत्पूर्ण ग्रंथ लिखे हैं।

दक्षिण भारत के सामाजिक और सांस्कृतिक इतिहास पर किया गया उनका शोध मौलिक हैं। मौलाना अब्दुल गफूर कुरैशी के इन ग्रंथो पर दक्षिण भारत के सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक कार्यों का प्रभाव नजर आता हैं। इस महान विभूती का 8 अगस्त, 1996 मे उदगीर मे निधन हुआ।

मौलाना अब्दुल गफूर के बने जानशीन नुरूलहक कुरेशी

मौलाना अब्दुल गफूर कुरेशी की सूफियाना विरासत को उनके पुत्र मौलाना नुरूलहक कुरेशी बा खूबी निभा रहे हैं. दक्षिण भारत के साथ ही मध्य भारत में भी उन्होंने सूफियाना परंपरा को परवान चढ़ाने में तीन दिवसीय जिक्र वह सुलुक के विषयों पर प्रवचन व्याख्यान के कार्यक्रमों की कड़ी को निरंतर प्रेम मार्ग से खुदा की प्राप्ति पर धार्मिक सम्मेलनों का सिलसिला लगातार बढ़ाया है। ध्यान व तसव्वुफ़ की रूह को बरकरार रखा है।


Discover more from New India Times

Subscribe to get the latest posts to your email.

By nit

This website uses cookies. By continuing to use this site, you accept our use of cookies. 

Discover more from New India Times

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading