विश्व नम भूमि दिवस (वेटलैंड डे)- 2020 पर पर्यावरण संरक्षण: पक्षी सारस की घटती संख्या व उसकी वास्तविक दशा एक चिंतनीय व गम्भीर विषय | New India Times

Edited by Sandeep Shukla, NIT:

लेखक: श्रीप्रकाश सिंह निमराजे

विश्व नम भूमि दिवस (वेटलैंड डे)- 2020 पर पर्यावरण संरक्षण: पक्षी सारस की घटती संख्या व उसकी वास्तविक दशा एक चिंतनीय व गम्भीर विषय | New India Times

हमारे राज्य में पक्षी सारस की दशा अब बेहद चिंतनीय है क्योंकि लगातार घटते प्राकृतिक आवास, जलवायु परिवर्तन, सूखा व अत्यधिक मानव जनसंख्या विस्फोट के कारण इनकी जनसंख्या व इनके प्राकृतिकवास अब लगतार सिकुड़ रहे है। हम सभी यह लगातार भूल रहे है कि धरती पर जीवित रहने का सिर्फ हमारा ही अधिकार नहीं है बल्कि यहां पाई जाने वाली सभी छोटी बड़ी प्रजातियों का भी है हमारे मानव जीवन के अस्तित्व को बचाये रखने के लिये इन सभी प्रजातियों का धरती पर जीवित रहना भी अति आवश्यक है। इसी कड़ी में पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले हमारे समाप्त होते जा रहे वेटलैंड्स आज संकट में है जिनमे न जाने कितनी प्रजातियों को संरक्षण व आश्रय लगातार ही मिलता है ये वेटलैंड्स (नमभूमि) विशिष्ट प्रकार के पारिस्थितिक तंत्र होते है जो ताल, झील, पोखर, दलदल, के नाम से भी जाने जाते है सामान्यतयः वर्षा ऋतु में ये जल से भर जाते है। जो धरती पर जल भंडारण का कार्य तो करते ही है अपितु साथ ही धरती की विभिन्न जैवविविधता को संरक्षण भी देते है व बाढ़ के पानी को समय आने पर अपने अंदर समा लेते इन्हें बायलोजिकल सुपर मार्केडट व प्रकृति की किडनी भी कहा जाता है ये प्रकृति में भोज्य जाल बनाने के साथ ही जल को शुद्ध भी करते है उत्तर प्रदेश में वर्तमान में मात्र एक बड़ा वेटलैंड है जिसका की क्षेत्रफल 26,590 हेक्टेयर है जो कि ऊपरी गंगा का ब्रजघाट से लेकर नरौरा तक फैला है जो कि रामसर साइट के रूप मे अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त भी है । जिसकी जैवविविधता में गंगा की डॉल्फिन, घड़ियाल, मगर कछुए व मछलियों की 82 प्रजातियों एवम सौ से अधिक पक्षियों की प्रजाति के वास स्थान के कारण यह क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय सूची में 2005 में भी जोड़ लिया गया है।

विश्व नम भूमि दिवस (वेटलैंड डे)- 2020 पर पर्यावरण संरक्षण: पक्षी सारस की घटती संख्या व उसकी वास्तविक दशा एक चिंतनीय व गम्भीर विषय | New India Times

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा घोषित राज्य पक्षी सारस (ग्रस एन्टीगोंन) विश्व मे उड़ने वाले पक्षियों में सबसे बड़ा पक्षी माना जाता है जिसके नर की लम्बाई 156 से 180 सेमी तक होती है पर्यावरण संतुलन में इसकी विशिष्ट भूमिका भी सर्वविदित है । जो इन्ही वेटलैंड्स में पाया जाता है ।
हमारी धरती पर पाये जाने वाले ये वेटलैंड्स (नमभूमि)एक अति महत्वपूर्ण इको सिस्टम का बड़ा हिस्सा है जो प्राचीन काल से ही समाज के विकास में सहायक रहे है पूरे विश्व में यह वेटलैंड्स मछली और चावल के रूप में भोजन प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हैं उत्तर प्रदेश में पाए जाने वाले वेटलैंड्स में मुख्य रूप से ऑक्स बो लेक्स, झील, पोखर, दलदली भूमि, मानव निर्मित जलाशय इत्यादि प्रमुख है उत्तर प्रदेश में मुख्य रूप से 13 वेट लैंड्स मौजूद है जिनमें नवाबगंज, समसपुर, लाख बहोसी ,सांडी,बखीरा, ओखला समान, पार्वती अरगा विजय सागर, पटना, सुरहा ताल, सूर सरोवर एवं डॉक्टर भीमराव अंबेडकर पक्षी विहार शामिल है वेटलैंड्स में बदलाव व क्षरण के कुछ मुख्य घटक आजकल देखने में आते हैं जैसे वहां की जल राशि में बदलाव हो जाना जिसे हाइड्रोलॉजिकल अल्टरेशन भी कहा जाता है बंधायुक्त जलाशय बनाना अत्यधिक चराई का होना वेटलैंड प्रोडक्ट्स का अति दोहन होना इनके जल क्षेत्र का संकुचित होना व घरेलू कृषि व व्यवसाय कार्यों के लिए जल की मांग व अन्य कृषि डायवर्जन कार्य होना एवं वेट लैंड एरिया में अवांछनीय वनस्पतियों व खतरनाक रसायनो  का प्रयोग होना व खरपतवार का एकत्रित हो जाना यह सब वेटलैंड के सिकुड़ने व क्षरण होने के मुख्य कारक है प्रदेश के वन क्षेत्रों में कुछ महत्वपूर्ण वेटलैंड्स को देखा जाए तो उनमे पीलीभीत वन प्रभाग का वन क्षेत्र, दुधवा राष्ट्रीय उद्यान लखीमपुर कतर्नियाघाट वन्य जीव प्रभाग, बहराइच सुभागी वर्मा वन्य जीव प्रभाग महाराजगंज राष्ट्रीय चंबल वन्य जीव विहार कछुआ वन्य जीव अभ्यारण इत्यादि वन क्षेत्र में महत्वपूर्ण वेटलैंड्स पाए जाते हैं इन वेटलैंड्स में प्रमुख रूप से पाई जाने वाली स्तनधारी प्रजातियों में गेंडा, खरगोश ,हिरण,उदविलाव, डॉल्फिन बारहसिंघा ,इत्यादि शामिल है वही पक्षियों की प्रजातियो में बंगाल फ्लोरीकन सारस ,ककेर प्रमुख है वहीं सरीसृप जातियों में घड़ियाल, मगर, फ्रेश वॉटर टर्टल की लगभग 12 प्रजातियां व तराई क्षेत्र प्रजातियां प्रमुख है इसी के साथ वनस्पतियों को देखा जाए तो सरपत, मूंज ,नरकुल सेवार, तिंन्धान, कसेरू, जामुन, कमलगट्टा, सिंघाड़ा इत्यादि वनस्पतियां पाई पाई जाती है जिनमें किसान कमल गट्टा और सिंघाड़ा की खेती वेटलैंड एरिया में करना ज्यादा पसंद करते हैं यदि रामसर वेटलैंड साइट का इतिहास देखें या वेटलैंड की अनिवार्यता या प्रकृति में उनकी महत्वता का पूर्ण आकलन करें तो 2 फरवरी 1971 को ईरान में वेटलैंड पर आयोजित हुए एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन की यादें ताजा होती है जिसमें रामसर साइट अस्तित्व में आई एवम वेटलैंड्स की महत्त्वता को देखते हुए सम्पूर्ण विश्व समुदाय ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे स्वीकारा और इसे मान्यता भी दी वर्तमान में 160 देशों के समूहों ने रामसर साइट की मान्यता को स्वीकार कर लिया जिसमें भारत में अब तक अंतर्राष्ट्रीय महत्व की मात्र 25 वेटलैंड चिन्हित और नामित किए गए हैं जिन का कुल क्षेत्रफल 6,77,131 हेक्टेयर है वर्तमान में उत्तर प्रदेश में भी एक महत्वपूर्ण वेटलैंड ऊपरी गंगा बृजघाट से लेकर नरौरा तक का भाग रामसर साइट के रूप में अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त है। अब वर्तमान में हमारे नजदीक सरसईनावर वेटलैंड को भी रामसर कन्वेंशन ने अंतरराष्ट्रीय वेटलैंड की मान्यता प्रदान कर दी है जिससे अब यूपी के प्रमुख वेटलैंड्स में सरसई नावर झील का भी नाम सम्मलित हो गया है। प्रदेश में पाए जाने वाले राज्य पक्षी सारस की जो कि उत्तर प्रदेश के समस्त मैदानी क्षेत्रों में देखा जाता है लेकिन ज्यादातर इटावा, मैनपुरी, औरैया, एटा, अलीगढ़ ,शाहजहाँपुर आदि जिला में बड़े-बड़े जलीय क्षेत्रों के कारण इनके बड़े झुंड दिखाई पड़ते हैं वर्ष 2010 में प्रदेश में राज्य पक्षी सारस की गणना की गई थी जिसमें वन विभाग द्वारा विभिन्न समय अंतराल पर इनकी जन गणना कराई जाती है यहां पर ये भी बताना जरूरी है कि किसी भी जलीय एवं दलदली क्षेत्र में सारस का पाया जाना उस क्षेत्र के स्वस्थ पर्यावरण का सूचक भी माना जाता है यह पक्षी ग्रुइडी कुल का सदस्य है एवं भारत में इनकी प्रजाति के चार अन्य सदस्य भी पाए जाते हैं जिनमें साइबेरियन क्रेन, कॉमन क्रेन, डेमोसिल क्रेन एवं ब्लैक नेक क्रेन प्रमुख है यह सब शीतकालीन प्रवास हेतु हमारे देश के गर्म भागों की झीलों और तालाबों के पास हमेशा ही आते हैं इनमें से लद्दाख में पाए जाने वाला ब्लैक नेक क्रेन उत्तरी पूर्वी भागों में अपने प्रवास के लिए आता है यह पक्षी जिसके पैर और लाल रंग के होते हैं गर्दन व शेर सुर्ख लाल व टोपी सिलेटी रंग की होती है इसके बच्चे भी भूरे रंग के दिखाई देते हैं लेकिन बड़े होने पर वह पूरे सिलेटी रंग के हो जाते हैं इन्हें हमेशा जोड़ें में देखा जाता है कभी-कभी यह बड़े समूहों में भी दिखाई देते है । ये गांव व खेतों के समीप निर्भय होकर विचरण करते रहते हैं इनका प्राकृतवास खुला कृषि क्षेत्र दलदली भूमि झील तालाब नहर नदी ही इत्यादि होते हैं भोजन में यह जलीय पौधों की जड़ व फसलों के दाने, मेढक, मछली ,छिपकली, सांप आदि खाते हैं देखा जाए तो जुलाई से दिसंबर यह पक्षी प्रजनन करता है जिस का घोसला पानी से भरे धान के खेत झील तालाब के मध्य एक घास के ढेर पर बना देखा जा सकता है मादा सारस एक बार में हल्के गुलाबी सफेद रंग के 2 अंडे ही देती है जिसमें नर और मादा सारस दोनों मिलकर अपने घोसले की रक्षा करते हैं इसके बाद अंडों से निकले इनके बच्चे लगभग 1 वर्ष तक उनके साथ ही रहते हैं वर्तमान में यह राज्य पक्षी सारस उत्तर प्रदेश दक्षिण मध्य प्रदेश आंध्र प्रदेश गुजरात राजस्थान बिहार पश्चिम बंगाल आसाम आदि प्रांत में पाया जाता है इसके अतिरिक्त नेपाल के तराई क्षेत्र में भी छोटे समूह में पाए जाते हैं पाकिस्तान बांग्लादेश में यह देखा जाता है साथ ही सौभाग्य से यह इटावा, मैनपुरी क्षेत्र में सबसे अधिक संख्या में देखा जाता है वेटलैंड्स के लगातार सिकुड़ने के कारण इनके प्राकृतवास में लगातार कमी भी आ रही है इनके घोंसलों से या तो अंडे चोरी हो जाते हैं या आवारा कुत्ते या अन्य जानवरों द्वारा नष्ट कर दिए जाते हैं जिससे इस प्रजाति के जीवन व अस्तित्व पर आज खतरा भी मंडरा रहा है इसके अलावा इन्हें शिकार और अवैध व्यापार के लिए भी पकड़ लिया जाता है अक्सर हाई टेंशन की विद्युत लाइनों से से टकराकर इनकी मृत्यु भी हो जाती है 
एक निवेदन गोपाल किरन समाज सेवी संस्था, की ओर से
सारस का पर्यावरण संरक्षण में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान है अतः इस पक्षी को नष्ट होने से बचाएं । सारस के प्राकृतिक वास के आसपास अपने खेतों या जिलों में सिंघाड़ा कमलगट्टा आदि फसलों में खतरनाक कीटनाशकों का प्रयोग बिल्कुल भी ना करें।

गांव के समीप खेतों में रखे इनके अंडे अन्य पशुओं द्वारा नष्ट कर दिए जाते हैं आप सभी उन्हें ऐसा करने से रोके यह पक्षी भारतीय वन्य जीव अधिनियम 1972 की चौथी अनुसूची में भी सूचीबद्ध है अतः इसका शिकार करना या इसे नुकसान पहुंचाना या इसका अवैध व्यापार करना गैरकानूनी व दंडनीय अपराध की श्रेणी में आता है ।

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