फ़राज़ अंसारी, ब्यूरो चीफ, बहराइच (यूपी), NIT:
उत्तर प्रदेश के बहराइच मेडिकल काॅलेज/जिला अस्पताल में प्रशासनिक व्यवस्था और हकीकत के दावों के बीच आम आदमी व मरीज गेंहू के घुन की तरह पिस रहा है।मेडिकल कालेज बनने के बाद भी स्वास्थ व्यवस्थाएं खुद वेन्टीलेटर पर हैं, न तो किसी नए जाँच उपकरण की कोई व्यवस्था हुई है और न ही चिकित्सा सेवा में कोई सुधार होता नजर आ रहा है।
चलती चक्की देखकर दिया कबीरा रोय।
दो पाटन के बीच में साबुत बचा न कोय।।
कबीरदास जी की ये पंक्तियां जिला अस्पताल से मेडिकल काॅलेज तक के परिवर्तन का सफर कर चुके राजकीय स्वशासी चिकित्सा महाविद्यालय बहराइच के ऊपर सटीक बैठती है। लगभग एक वर्ष से अधिक समय पूरा कर चूके मेडिकल काॅलेज की व्यवस्थाएं आज भी जिला चिकित्सालय से भी बदतर हैं। गम्भीर रुप से चोट खाये हुए दुर्घटनाग्रस्त मरीजों के लिए सिटी स्केन की सुविधा नहीं है और न ही वेल्टीनेटर अभी तक मेडिकल काॅलेज में जगह पा सका है। यही नहीं चिकित्सा महाविद्यालय के स्तर की कोई भी सुविधाएं यहाँ मौजूद नहीं हैं। मरीजों को पैथोलॉजीकल टेस्ट व एमआरआई, इको, कार्डियोग्राम, इंडोस्कोपी, डायलेसिस, अल्ट्रासोनोग्राफी जैसी महत्वपूर्ण जांचों के लिए लखनऊ जाना पड़ता है। ऐसे में कैसे इसे एक स्तरीय चिकित्सा महाविद्यालय कहा जाए जब व्यवस्थाओं का स्तर जिला अस्पताल से भी गया गुजरा नजर आ रहा है। मूलभूत सुविधाओं को तरसते
मेडिकल कालेज में आम मरीज गेंहू में घुन की तरह पिस रहा है। यही नहीं मेडिकल काॅलेज में आधुनिक सुविधाएं व विशेषज्ञ चिकित्सकों की तैनाती भी नहीं हुई है और न तो कोई नेफ्रोलॉजिस्ट है और न ही ह्रदयघात से तड़पते मरीजों को राहत देने के लिए कोई कार्डियोलॉजिस्ट तैनात किया गया है। मात्र जनरल फिजिशियन के सहारे पूरे मेडिकल काॅलेज की चिकित्सा व्यवस्था निर्भर है। जरा सी हालत गम्भीर होने पर बहराइच मेडिकल काॅलेज से लखनऊ मेडिकल काॅलेज रिफर किया जाता है। जो दोनों संस्थानों की बराबरी का दर्जा देखते हुए हास्यास्पद लगता है।
बहराइच जनपद वासियों को लगभग एक साल पूर्व जिला अस्पताल से मेडिकल काॅलेज का दर्जा मिलने से बहराइच वासी खुशी से फुले नहीं समा रहे थे। वहीं आज बेहतर इलाज की आशा लिए मरीज निराशा के भंवर में गोता खा रहे हैं। बहराइच जिला अस्पताल पूरे देवी पाटन मण्डल में उत्तम चिकित्सा के लिए प्रसिद्ध रहा है। यहाँ पर बेहतरीन इलाज के लिए जिले के अलावा श्रावस्ती, गोण्डा, लखीमपुर, सीतापुर और पड़ोसी देश नेपाल से भरपूर संख्या में मरीजों का आना होता है। मेडिकल काॅलेज बनने के बाद स्वास्थ्य सेवाएं चरमरा गई है।
जिला अस्पताल और मेडिकल काॅलेज के प्रशासनिक अधिकारियों के बीच ताल-मेल न होने से स्थितियां और बदतर हो रही हैं। जिला अस्पताल / मेडिकल काॅलेज में आये मरीजों को चिकित्सक जांच उपकरणों की कमी का हवाला देकर अपने हाथ खड़े कर लेते हैं या फिर निजी पैथालॉजी व जाँच सेंटरों पर भेज देते है जहाँ मरीजों का जमकर आर्थिक शोषण किया जा रहा है। योगी सरकार के स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के दावे आखिर कब तक जमीन पर हकीकत का रूप लेंगे? स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार होगा या नहीं यह तो आने वाला समय ही बताएगा फिलहाल तो मरीज सुविधाओं के अभाव में बेहाल दिख रहे हैं।
Discover more from New India Times
Subscribe to get the latest posts to your email.