नरेंद्र इंगले, ब्यूरो चीफ, जलगांव (महाराष्ट्र), NIT:
2002 में नगर परिषद बनने के बाद से करीब 50 हजार की आबादी वाले जामनेर शहर में अब तक एक खेल का मैदान तक नहीं बन सका है। पुरे महाराष्ट्र मे गुणवत्ता पुर्ण शिक्षा के लिए पहचाने जाते इस शहर को काफी पुरानी धरोहरे विरासत के रुप मे मिली है। स्पष्ट राजनितीक विजन के अभाव के कारण मानसून पर निर्भर खेती के अलावा रोजगार के कोई टोस अवसर पैदा ही नहीं हो सके, किसी जमाने में उस दिशा में किए गए प्रयास अलग किस्म की राजनिती की भेंट चढ गए। शहर तथा तहसिल के समग्र विकास में अहम भुमिका निभाने की क्षमता रखने वाली सड़क, रेल यातायात जैसी ढांचागत सुविधाओं की समस्याओं पर अब भी विधानसभा के चुनाव लड़े जा रहे हैं और लोग खुद के मतदाता होने की अपनी गरीमा को खोते जा रहे हैं। शायद लोकतंत्र के इस नई शैली वाले माॅडल को अन्य किसी निर्वाचन क्षेत्र में वहाँ की जनता ने कभी तरजीह नहीं दी होगी इसी कारण उन तहसीलों में बुनियादी विकास का ग्रोथ अधिक और भावनात्मकता कम नपी जाती रही होगी। नालेज हब, मेडीकल हब, सिंचाई हब और ना जाने ऐसे कई हबों से नवाजे जाते रहे जलगांव जिले की पहचान विकास हब के तौर पर कब होगी यह हब निर्माताओं को भी पता नहीं है। बीते पांच सालों से शरद पवार के गृह नगर बारामती की तर्ज पर जामनेर की छवि बनाने की नीज थ्योरी की सच्चाई बयां करने के लिए किसी ज्योतिषी की इस लिए जरुरत नहीं है क्योंकि शहरों की सड़कें इतनी मजबूत बनी है कि शायद कहीं कोई भक्त कल विपक्ष को इन सडकों पर रफ़ाल जैसे जंगी जहाज के लैंडीग की ही चुनौती न दे दे। पर एक सच्चाई यह भी है कि जामनेर में पक्का हेलीपैड तक नहीं बन पाया है तो खेल के मैदान की वर्षों से की जा रही मांग भला कैसे पुरी हो सकेगी। शहर के सभी शिक्षा संस्थानों में ग्रामीण इलाकों से करीब 10 हजार तक से अधिक छात्र पढने के लिए आते हैं। शिक्षा इकाइयों में विस्तार इमारते बन रहि है और उनके मैदान सिकुड रहे है बच्चो युवाओ के शारीरीक विकास के लिए आवश्यक खेलो के आयोजनो के लिए अब तक कोई इनडोअर या आऊटडोअर स्टेडीयम नहि बन सका है ! फ़ौज पुलिस मे भर्ती होने कि चाहत रखने वाले युवको को फीसिकल प्रैक्टिस के लिए भारी यातायात के बीच जान का खतरा उठाकर सडको पर दौडना पड रहा है ! समीर ( नाम बदला हुआ ) जो कि कराटे क्लास चलाते है उन्होने उपज मंडी के प्रान्गन को क्लास के लिए सहारा बनाया है ! हाल हि मे आंतराष्ट्रीय न्यूज एजन्सी ने दिल्ली जैसे तंग शहर मे बास्केटबाल पर बनी एक रिपोर्ट पब्लीश कि जिसमे बतौर बास्केटबाल प्लेयर लडकियो कि रुची को रेखांकित किया गया ! इस रिपोर्ट से प्रेरीत होकर बारामती बनने कि चाह रखने वाले अन्य शहर शायद उस दिशा मे कदम उठा भी ले लेकिन यह आशा जामनेर को लेकर करना उम्मीद कि उस कसौटी के साथ खिलवाड करने जैसा हो सकता है जिस पर उम्मीद कि धारणा टीकि है क्यो कि बुनीयादी जरुरतो को लेकर खुलकर आंदोलन करना यहा के लोगो को रास हि नहीं है खेल मैदान कि मांग या आवश्यकता को लेकर लोकल मिडीया मे कभी कोई रिपोर्ट न्यूज शायद छपी हो तो उसे पाठकों द्वारा दुर्लभ दस्तावेज के रुप मे संरक्षीत कर लेना चाहिए।
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