महाराष्ट्र के फडणवीस सरकार के दौर में आंदोलनों का सिलसिला है अब भी जारी, कामबंद आंदोलनों से चरमराई व्यवस्था, जनता परेशान | New India Times

नरेंद्र इंगले, ब्यूरो चीफ, जलगांव (महाराष्ट्र), NIT:

महाराष्ट्र के फडणवीस सरकार के दौर में आंदोलनों का सिलसिला है अब भी जारी, कामबंद आंदोलनों से चरमराई व्यवस्था, जनता परेशान | New India Times

महाराष्ट्र की फ़डणवीस सरकार के कार्यकाल मे बीते पांच सालों में रेकार्ड ब्रेक आंदोलनों का दौर चुनावों के मुहाने तक आज भी बरकरार है। संभवत नवंबर में महाराष्ट्र राज्य विधानसभा के आम चुनाव होने हैं। सामाजिक आरक्षण, किसानों, आदिवासियों तथा पिछड़े तबकों के मंत्रालय पर आ धमकने वाले आंदोलनों को सरकार के संकटमोचक कहे जाने वाले जलसंसाधन मंत्री गिरीश महाजन ने लोकतंत्र की मजबुती और सरकार की संवेदनशीलता से जोड़कर सही ठहराते हुए कहा था कि लोगों का यह विश्वास बन गया है कि आंदोलन करने पर सरकार से तत्काल न्याय मिलता है। अब इन सैकड़ों आंदोलनों में कितनों को न्याय मिला यह शोध प्रबंध (पीएचडी) के छात्रों के लिए अनूसंधान का नया विषय हो सकता है। इन व्यापक सामाजिक आंदोलनों के अलावा सरकार के अधीन विभिन्न प्रशासनिक विभागों के कर्मी यूनियनों के जरीये कई बार हड़तालों पर गए। इन पाच सालों में राज्य मे अस्थापना की हालत बेहद बुरे दौर से गुजर रही है, ऐसे में अपनी मांगों को लेकर सरकारी कर्मियों की कामबंद हड़तालें अब भी जारी हैं। हड़ताल विरोध प्रदर्शन जैसे पहलू प्रत्येक नागरिकों के संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकार है। अपने एक फैसले में सुप्रिम कोर्ट ने भी कहा है कि “असहमती लोकतंत्र का (sefty wolve) सेफ्टी वाल्व है जिसे दबाया नहीं जा सकता, बावजुद इसके अकोला में हड़ताली ग्रामसेवकों को सरकार ने जनता को हो रही असुविधा का हवाला देकर तत्काल प्रभाव से कार्यमुक्त करते हुए अपनी संवेदनशीलता का परीचय दिया है। 7 सितंबर को राजस्व कर्मियों ने हड़ताल की तो सोमवार 9 सितंबर को पल्बीक सेक्टर से संबंधित लगभग सभी विभागों के कर्मी यूनियन की गाईडलाईन के तहत पूरा दिन हड़ताल पर रहे। अंदर वर्तमान कर्मी हड़तालों पर हैं और बाहर पेंशनभोगी पुरानी पेंशन व्यवस्था की बहाली के लिए सड़कों पर लोकतंत्र का उत्सव मना रहे हैं। सरकारी कर्मियों की हड़तालों से आम लोगो को कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। सरकार की नाकामी से उपजे तमाम हड़तालों का खामियाजा अब तक जनता को ही भुगतना पडा है। अपने रिश्तेदार की संपत्ति विषयक मामले से जुडे कागजातों की नकल हासिल करने के लिए जामनेर जिला जलगांव से मलकापूर जिला बुलडाना के भुमी अभिलेख कार्यालय के चक्कर कांट रहे 60 साल के जगदेव बोरसे का अनुभव भी प्रशासन के हड़ताली कामकाज से काफी अच्छा नहीं रहा। 9 सितंबर को बोरसे जब दूसरी बार अपने काम से मलकापूर भुमि अभिलेख कार्यालय पहुंचे तब संबंधित अधिकारी रेश्मा तांबारे ने बताया कि आज राज्यव्यापी हडताल होने के चलते कामकाज ठप रहेगा जब कि दफ्तर मे सभी कर्मीगण मौजुद थे शायद सरकार द्वारा किसी कार्रवायी से बचने के लिए हडताल कि यह नयी शैली विकसित कि गयी होगी जहा आफ़ीस प्रमुख के साथ सभी कर्मी दफ्तर मे हाजिर तो है लेकिन कामकाज बंद है ! बोरसे ने बताया कि जमीनी जायदात से जुडे दस्तावेजो कि प्रमानीत नकल प्राप्ति के लिए वह अब तक दो चक्कर काट चुके है दौरान सफ़र के लिए पैसा तो खर्च हुआ सो उम्र के चलते शारीरीक और मानसिक पिडा को इन सरकारी हडतालो के चलते ना जाने कब तक झेलना पडेगा यह पता नहि ! सरकार कि किरकिरी और आलोचना के बाद भी उसे न्याय से जोडकर देखा गया हो तो फ़िर सरकारी कर्मीयो कि हडतालो के लिए दोहरा मापदंड क्यो अपनाया जा रहा है ? या फ़िर सरकार और प्रशासन के बीच किसी समन्वय का अभाव है ? जिसे कोल्हापुर सांगली बाढ के दौरान लाखो लोगो ने भुगतान। अगर है तो अकोला मे जनहित के आड मे ग्रामसेवको पर कि गयी कार्रवायी यह सरकार कि नाकामी छिपाने कि कोशीश तो नहीं है? इन जैसे तमाम अन्य सवालों के जवाब शीर्ष अदालत के असहमती पर दिए सेफ्टी वाल्व वाले फैसले की गहनता को समझने पर मिल सकते हैं।

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