फराज़ अंसारी, ब्यूरो चीफ, बहराइच (यूपी), NIT:
प्रदेश की योगी सरकार ने फरमान जारी किया है कि प्रदेश की जनता को बेहतर से बेहतर मुफ्त इलाज सरकारी अस्पतालों में उपलब्ध कराया जाये। फरमान सूबे के मुखिया का था तो प्रदेश के हुक्मरां भी जुट गये बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के निर्देशों को कागजों पर पूरा करने में। प्रदेश में शायद ही कोई ऐसा जिला तहसील कस्बा या गांव होगा जिसने ये रिपोर्ट किया हो कि सरकारी चिकित्सालयों में मुफ्त इलाज तो दूर बेहतर इलाज उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। फाइलों में दौड़ने लगे बेहतर इलाज के दावे लेकिन कहते हैं न कि कोई भी झूठ आखिर कब तक कोई छिपा कर रख सकता है। कुछ ऐसा ही हाल जिला अस्पताल का हुआ, बेहतर स्वाथ्य सेवाएं उपलब्ध कराने का दावा करने वाले जिला अस्पताल में लगातार हो रहे एक के बाद एक कारनामों ने सरकारी जिला चिकित्सालय के बेहतर इलाज के दावों की न सिर्फ हवा निकाल दी है बल्कि जिला अस्पताल की अव्यवस्थाओं और अमानवीय कृत्यों की परतें भी खोल कर रख दी हैं। एक ओर जहां मातृत्व योजना को हवा दे शिशु मृत्यु दर में कमी लाने और प्रसूताओं को बेहतर से बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के लिये नई-नई योजनाएँ चला कर सराकरें लाखों करोड़ों खर्च कर रही हैं वहीं दूसरी ओर बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए सराकरी अस्पताल में तैनात सरकारी चिकित्सकों की उदासीनता के चलते प्रसूताएं और नवजातों के काल के गाल में समाने के मामले कम होने का नाम ही नहीं ले रहे हैं। जिला अस्पताल का एक ऐसा घिनौना कारनामा उजागर हुआ है जिसने पूरी इंसानियत को ही शर्मसार कर दिया है। मामला एक प्रसूता को महिला अस्पताल से पुरुष वार्ड के इमरजेंसी वार्ड में रेफर करने और फिर प्रसूता के पुरुष वार्ड में नवजात को जन्म देने का है जिसमे अस्पताल की लापरवाही की भेंट नवजात चढ़ गया।
जनपद को मेडिकल कॉलेज की सौगात मिली तो जनपद वासियों को लगा था कि अब उन्हें बेहतर उपचार व्यवस्था मिल सकेगी वहीं जिला अस्पताल का नाम ऑटोनोमस स्टेट मेडिकल कॉलेज में बदल गया और जिला महिला अस्पताल को सात तलीय नई बिल्डिंग मिलने के बाद से आमजन की इस बेहतर इलाज की उम्मीदों को और भी पंख से लग गये। लेकिन आमजन की उम्मीदें लगातार खस्ताहाल अस्पताल व्यवस्था बदहाल चिकित्सीय सेवाओं के कारण अब टूटने सी लगी है। वहीं नाम बदलने और नई बिल्डिंग के मिलने के बाद भी जिला अस्पताल में तैनात धरती के भगवान कहे जाने वाले सरकारी चिकित्सक अब भी अपने उसी पुराने ढर्रे पर कायम हैं। ऐसा लगता है कि उनके लिये इंसानी जान और उनकी मान मर्यादाओं का कोई मोल ही नहीं है।
ताज़ा मामला जनपद बहराइच का है जहां प्रसव पीड़ा होने पर परिजनों ने पयागपुर निवासिनी प्रसूता महिला जिला अस्पताल में भर्ती कराया। लेकिन महिला विंग से मान-मर्यादाओं को तार-तार करते हुए प्रसूता को पुरुष अस्पताल की इमरजेंसी में किया रेफेर कर दिया गया। इसी दौरान प्रसव पीड़ा अधिक होने पर परिजनों ने इमरजेंसी वार्ड में तैनात डॉक्टर को बुलाया। इमरजेंसी वार्ड में तैनात डॉक्टर ने महिला डॉक्टरों को बुलवाया लेकिन महिला चिकित्सक मौके पर नहीं पहुंची जिसके बाद प्रसूता ने पुरुष अस्पताल की इमरजेंसी में बच्चे को जन्म दिया। लेकिन समय से सही उपचार न मिल पाने के कारण जन्म के तुरंत बाद नवजात की मौत हो गयी। नवजात की मौत से परिवार में कोहराम सा मच गया। मामले ने टूल पकड़ा तो अस्पताल के आलाधिकारी भी मौके पर पहुंच गये और अब पूरे मामले में लीपापोती में जुट गये हैं। सवाल यह उठता है कि क्या यही है योगी सरकार की मुफ्त और बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं जिसमें जन्म लेते ही अस्पताल के भीतर ही नवजात दम तोड़ देते हैं। अब देखना यह ही कि प्रकरण प्रकाश में आने के बाद अस्पताल प्रशासन क्या कोई ठोंस कदम उठाने की जहमत उठाएगा या फिर अब भी वह अपनी निद्रावस्था में लीन रहेगा।
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