अशफाक कायमखानी, जयपुर (राजस्थान), NIT:राजस्थान विधानसभा चुनाव परिणाम के पहले तक राजस्थान का आम मतदाता किसी भी रुप मे अशोक गहलोत को सम्भावित मुख्यमंत्री का चेहरा मानकर नहीं चल रहा था लेकिन दिल्ली हाईकमान तक ऊंची पहुंच और अपनी राजनीतिक तिकड़म के बल पर अशोक गहलोत के फिर से पहले की तरह पर्दे के पीछे से निकलकर मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके अब बड़बोले बोलों में अहम साफ झलकता नजर आ रहा है। 1998 व 2008 में अशोक गहलोत के राजस्थान के मुख्यमंत्री बनने पर 2003 के चुनाव में कांग्रेस 156 से 56 पर व 2013 में मात्र 21 सीट पर कांग्रेस आकर अटकी थी। अगर मुख्यमंत्री गहलोत का सरकार चलाने का रवेया ऐसा रहा तो कुछ महिनों में सरकार गिर भी सकती है। अगर मध्यवर्ती चुनाव होने की नोबत आई तो निर्दलीयों से भी कम विधायक कांग्रेस के जीतकर आने का अनुमान लगाया जा रहा है।
पच्छिमी बंगाल के करीब छत्तीस साल मुख्यमंत्री रहने वाले ज्योति बसू के कार्यकाल को याद किये बिना अशोक गहलोत अपनी जबान से तीसरी दफा मुख्यमंत्री बनने का राग अनेक दफा अलापते हुये परोक्ष रुप से घमंड दर्शा चुके हैं। इसके बाद हाल ही में बजट पेश करने के बाद मीडिया से बात करते हुये गहलोत ने यहां तक कह डाला कि विधानसभा चुनाव में गावं-गावं, ढाणी-ढाणी से उनके मुख्यमंत्री बनने की आवाजें आ रही थी जबकि उनके विरोधी कहते हैं कि 2003 व 2013 में अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री रहते हुये राजस्थान विधानसभा चुनाव हुये तब भी शायद यही आवाजें आई होंगी तभी कांग्रेस की हालत 1977 की हालत से भी बूरी हालत हुई थी। अनेक कांग्रेस विधायकों ने तो विधानसभा व विधानसभा के बाहर भी सरकार को घेरा है। दूसरी तरफ राजनीति के जानकार बताते हैं कि मुख्यमंत्री गहलोत अबकी दफा जनता दरबार के अलावा निजी तौर पर आम जनता व राजनेताओं से मिलने में काफी कंजूसी बरत रहे हैं।
मुख्यमंत्री गहलोत की राजनीति से वाकिफ लोग बताते हैं कि न्यायालय के आदेशों के चलते कुछ बोर्ड व निगमों का गठन वह मजबूरी में कर सकते हैं वरना वह पहले की तरह अगर पांच साल मुख्यमंत्री रहे तो अंतिम दो सालों में गठन की प्रक्रिया शूरु करेंगे जो पूरी होते होते सरकार के पांच साल पुरे हो जायेंगे जिनमें से अनेक नियुक्तियों के पद तो खाली ही रह जायेंगे। लोकसभा चुनाव में करारी हार को लेकर दिल्ली में सीडब्ल्यूसी की मीटिंग में राहुल गांधी द्वारा गहलोत का नाम लेकर उनके पूत्र के लोकसभा चुनाव लड़ने को लेकर की गई सख्त टिप्पणी से गहलोत की छवि को बड़ा झटका लगा है। सरकार बनने के बाद से सरकारी ऐडवोकेट की नियुक्तियों के अलावा अन्य नियुक्तियों व बजट से मुस्लिम समुदाय में गहलोत को लेकर सख्त नाराजगी भी पंचायत व स्थानीय निकाय चुनाव में कांग्रेस को भारी पड़ती दिखाई दे रही है।
कुल मिलाकर यह है कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने पहले के दो कार्यकाल के मुकाबले अबकी बार पूरे बदले बदले नजर आ रहे हैं और उनके बोलों में अहम होने का अहसास होने लगा है। कांग्रेस का परम्परागत मतदाता अल्पसंख्यक, किसान व दलित मात्र सरकार के आठ महीने में ही उनसे रुठा रुठा नजर आने लगा है। लोकसभा चुनाव में उनके पूत्र वैभव के चुनाव लड़ने पर उनके सरदारपुरा विधानसभा क्षेत्र की उनकी खूद की बूथ से कांग्रेस के पिछड़ने से उनकी राजनीतिक ताकत को क्षति होना माना जा रहा है।
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