राजस्थान के अल्पसंख्यक मतदाताओं की कांग्रेस के प्रति उदासीनता को सक्रियता में तब्दील करने के लिए उठाने होंगे कदम, विधानसभा चुनाव में 0.5% से भाजपा से आगे रही कांग्रेस की मामूली गलती लोकसभा में उसे पड़ सकती है भारी | New India Times

अशफाक कायमखानी, ब्यूरो चीफ, जयपुर (राजस्थान), NIT:

राजस्थान के अल्पसंख्यक मतदाताओं की कांग्रेस के प्रति उदासीनता को सक्रियता में तब्दील करने के लिए उठाने होंगे कदम, विधानसभा चुनाव में 0.5% से भाजपा से आगे रही कांग्रेस की मामूली गलती लोकसभा में उसे पड़ सकती है भारी | New India Times

लोकसभा चुनाव में राजस्थान में कांग्रेस द्वारा अल्पसंख्यकों के प्रति बरती जा रही बेरुखी कहीं उसे शिकस्त से दोचार न कर दे क्योंकि विधानसभा चुनाव में अल्पसंख्यक मतदाताओं के भरपूर समर्थन के बावजूद उसे कुल 39.3% व भाजपा को 38.8% मत मिले थे।

राजस्थान के अल्पसंख्यक मतदाताओं को अपनी तरफ पूख्ता आता मानकर कांग्रेस उम्मीदवारों व दिग्गज नेता अजीब चुनावी रणनीति बनाकर चल रहे हैं जिसके तहत वो चुनाव प्रचार में उन्हें किसी तरह का महत्व देने की बजाय उनसे एक दूरी बनाकर चलते नजर आ रहे हैं जिससे अल्पसंख्यक मतदाताओं में मतदान के प्रति जो विधानसभा चुनावों में जोश था वो अब किसी भी स्तर पर नजर नहीं आ रहा है।

राजस्थान के अल्पसंख्यक मतदाताओं की कांग्रेस के प्रति उदासीनता को सक्रियता में तब्दील करने के लिए उठाने होंगे कदम, विधानसभा चुनाव में 0.5% से भाजपा से आगे रही कांग्रेस की मामूली गलती लोकसभा में उसे पड़ सकती है भारी | New India Times

राजस्थान में अल्पसंख्यक मतदाताओं में करीब 14% मुस्लिम मतदाताओं के अलावा सिक्ख, बौद्ध व ईसाई मतदाता भी चुनावी मुकाबले में असरकारक नजर आते हैं। अल्पसंख्यक समुदाय के जैन मतदाताओं का रुझान भाजपा की तरफ अधिक माना जाता रहा है लेकिन बाकी अल्पसंख्यक मतदाताओं का रुझान कांग्रेस की तरफ साफ नजर आ रहा है।
हालांकि राजनीतिक जानकारों द्वारा माना जा रहा है कि राजस्थान में सभी लोकसभा सीटों पर दो दलों में सीधा मुकाबला होने के कारण अधीकांश अल्पसंख्यक मतदाता कांग्रेस उम्मीदवार के पक्ष में मतदान करेगा लेकिन देखना होगा कि वो विधानसभा चुनाव की तरह नब्बे प्रतिशत तक मतदाता घर से निकलकर बूथ तक जाता है या फिर मौजूदा समय में उदासीन नजर आने के चलते साठ प्रतिशत तक ही मतदान करेगा। विधानसभा चुनावों में उम्मीदवारों व सामाजिक कार्यकर्ताओं की कोशिशों के कारण अल्पसंख्यकों का मतदान प्रतिशत बढ़ा था लेकिन अब पार्टी स्तर पर व उम्मीदवार की सोच में एक खास बदलाव देखा जा रहा है कि वो अल्पसंख्यक मतदाताओं को गारंटेड मतदाता मानकर उन पर कोई खास तवज्जो नहीं दे रहे हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलेट करीब करीब लोकसभा की सभी सीटों के कांग्रेस उम्मीदवारों के पर्चा दाखिल सभाओं में जा चुके हैं लेकिन उनके भाषणों व कांग्रेस घोषणा पत्र में मुस्लिम शब्द से परहेज किया जा रहा है। जबकि जोधपुर लोकसभा क्षेत्र से उम्मीदवार वैभव गहलोत के लिये राजस्थान के एक मात्र मुस्लिम मंत्री शाले मोहम्मद व राजस्थान अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व चेयरमैन डाॅ. निजाम अल्पसंख्यक बस्तियों व घर घर मत पाने की कोशिश जरूर करते नजर आ रहे हैं।
लोकसभा चुनाव में अल्पसंख्यक मतदाताओं का रुझान पूरी तरह कांग्रेस की तरफ नजर आ ही नहीं रहा है बल्कि मतदान केंद्र पर जितना मतदाता जायेगा मानो उतना ही कांग्रेस को ही वोट करेगा। अगर उनका मत प्रतिशत किन्हीं कारणों से बढ नहीं पाया तो मानो कांग्रेस को सीधा सीधा नुकसान होना है। इसलिये अल्पसंख्यक समुदाय के मतदाताओं में छाई उदासीनता को दूर करके विधानसभा चुनावों की तरह उनके मत प्रतिशत को ऊंचा करने के उपायों पर कांग्रेस को सोचना चाहिए।

राजस्थान की सभी 25 लोकसभा सीटों पर नामजदगी के पर्चे भरने का कार्यक्रम आज पुरा हो चुका है। 13 लोकसभा क्षेत्रों में 29 अप्रैल को व 12 लोकसभा सीटों पर 6 मई को मतदान होकर 23 मई को परिणाम आने हैं। 13 लोकसभा क्षेत्रों में चुनाव प्रचार धीरे धीरे जोर पकड़ने लगा है। बाकी 12 पर तीन दिन बाद नाम वापसी के बाद चुनाव प्रचार जोर पकड़ने लगेगा। जबकि सीकर से घोषित कांग्रेस उम्मीदवार सुभाष महरिया सहित कुछ उम्मीदवारों ने तो नाम घोषित होने के बाद से चुनाव प्रचार शूरु करके सामने वाले उम्मीदवारों पर बढत बना रखी है।

राजस्थान के अल्पसंख्यक मतदाताओं की कांग्रेस के प्रति उदासीनता को सक्रियता में तब्दील करने के लिए उठाने होंगे कदम, विधानसभा चुनाव में 0.5% से भाजपा से आगे रही कांग्रेस की मामूली गलती लोकसभा में उसे पड़ सकती है भारी | New India Times

राजस्थान के 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस -भाजपा को मिले मतों में एक प्रतिशत से भी कम अंतर होने के बावजूद कांग्रेस ने सीटे अधिक झटकने के कारण सरकार बनाई है। कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों में कुल 39.3 प्रतिशत पाकर 99 सीट जीती थी। इसी तरह भाजपा ने 38.8 प्रतिशत मत पाकर 73 सीट जीती है। इन दोनों के मुकाबले अन्यों ने 22 प्रतिशत मत पाकर 27 सीटें जीती थी। एक प्रतिशत से कम के अंतर आने से भाजपा के मुकाबले कांग्रेस ने 26 सीटें अधिक जीती हैं तो अब लोकसभा में मत प्रतिशत का अंतर काफी बदलाव ला सकता है। दूसी तरफ अन्यों को मिले 22 प्रतिशत मतों में से भाजपा व कांग्रेस उम्मीदवार कितने अपने अपने खाते में ला सकते हैं उस मत प्रतिशत का असर भी लोकसभा चुनाव परिणाम पर निश्चित रूप से पड़ना है। 13 में से 12 निर्दलीय विधायकों के कांग्रेस को समर्थन देने के अलावा अनेक निर्दलीय उम्मीदवारों ने कांग्रेस ज्वॉइन कर ली है फिर भी बसपा, माकपा, बीटीपी व रालोपा का कांग्रेस से किसी तरह का गठबंधन नहीं है।

कुल मिलाकर यह है कि कांग्रेस को बाजी मारने के लिये अपने अन्य मतदाताओं की तरह अलपसंख्यक मतदाताओं में भी जोश व सक्रियता का भाव भरकर अधिकाधिक मतदाताओं को मतदान केंद्र तक ले जाकर मतदान कराने के उपायों पर विचार करके किसी कार्ययोजना पर अमल करना चाहिए अन्यथा 100 में 99 % के मुकाबले 100 में 60 % वाले मतदान पर सब्र करना होगा।

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