Edited by Pankaj Sharma, NIT :
लेखक: ममता वैरागी
हम यदि शिक्षक के पद पर कार्यरत हैं और हमें शाला की जिम्मेदारी दी गई है तो क्यों न इस तरह से कार्य हो कि शाला एक बेस्ट शाला होकर उसका विकास शूरू हो जाये।
अक्सर शिक्षक गांव में पदस्थ रहता है जहां सुविधाओं का अभाव रहता है। बहुत कठिनाई भी उसे आती है तथा बच्चे भी कम आते हैं और काम अधिक रहता है। शिक्षकों की कमी जैसी अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।और यही शिकायत भी वह करता रहता है पर इन सबके बावजूद वह अपनी शाला की प्रगति कर सकता है वह भी बहूत अच्छे से।
१) शिक्षक नियमित और समय पर शाला जाकर बच्चों को इक्ट्ठा करे। उन्हें प्रोत्साहित कर घुलमिल जाये बच्चों में और उनसे कहें कि शाला रोज आने के क्या फायदे हैं।
२)शाला को सबसे पहले सजाये। उसमें मूलभूत सभी सूविधाएं करवाये, रहना तो दिनभर शिक्षक को ही है और पैसा तो प्रयाप्त आता है उसकी कमी नहीं रहती है कि शिक्षक सहायक सामग्री ना खरीद सकें या शाला ना सजा सके।
३) फिर बच्चों की नींव (केवल) पक्की कर दे। जैसे सभी बच्चों को पहाड़े, गिनती, जोड, घटाव और हिन्दी वर्ण माला के अक्सर जिससे वह पाठ पढना सीख जाये। हम पाते हैं कि छोटी सी एक गांव की शाला बेस्ट बन जाती है।
४) शिक्षक अपना निजी ज्ञान भी बढाते रहें। माना तुम अकेले हो और बच्चों पर ध्यान दें रहे हो या तुम्हें समय नहीं है। शिक्षकों को हर समय इस तरह के क्रिया कलापों को अपनाना चाहिए जिससे बच्चे बोर ना हों और उन्हें घर की याद ना आये और वह शाला में शाम तक बने रहें।
यहां यदि कोर्स पिछड़ रहा हो तो रहे, पर नींव पक्की रहे इस बात को सदा ध्यान में रखो। रोज नियमित रहकर गतिविधियों के साथ एक शिक्षक यदि बच्चों में लगा रहता है, तो शाला का विकास निश्चित है। हां यदि शिक्षक चाहे तो? यहां शिक्षकों की अहम भूमिका माता-पिता अभिभावकों की तरह हो तब तो मजा आ जाता है और तुम्हें ऐसा इनाम मिलता है कि तुम स्वयं गर्व करते रह जाते हो। वह इनाम क्या है कि हम जहां से गूजरते हैं या जहां खड़े रहते हैं या कहीं और जाते हैं हर जगह हमारे पढाये हुए बच्चे नमस्ते करते मिलते हैं। भले वह कितने बड़े हो जायें तुम पाओगे कि वह अपने परिवार या अन्य से कहते मिलते हैं कि यह हमारे सर (मेडम) है। इन्होंने हमें पढाया है और देखते ही देखते तुम अपने आपको गौरवानवित महसूस करने लगते हो, इतना विशाल तूम्हारा परिवार बन जाता है।
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