गौमांस के शक के आधार पर युवक की पिटाई करने वाले एक पुलिस कर्मी का एसपी ने किया तबादला दूसरे को लाइन हाजिर, थानाध्यक्ष पर कोई कार्रवाई नहीं | New India Times

फराज़ अंसारी, ब्यूरो चीफ बहराइच (यूपी), NIT:

गौमांस के शक के आधार पर युवक की पिटाई करने वाले एक पुलिस कर्मी का एसपी ने किया तबादला दूसरे को लाइन हाजिर, थानाध्यक्ष पर कोई कार्रवाई नहीं | New India Times

31 दिसंबर की रात को थाना कोतवाली नानपारा अंतर्गत पुलिस चौकी राजा बाजार की पुलिस ने एक युवक को अवैध गौमांस के शक में थाना लाकर पहले उससे पैसों की मांग की और मांग पूरी न होने पर उसकी बड़ी बेरहमी से पिटाई की गई। मामला बिगड़ता देख परिजनों से जो भी पैसा मिला उसे लेकर छोड़ दिया। पीड़ित की हालत बिगड़ता देख परिजन उसे लेकर एसडीएम के पास पहुंच गये और पुलिस पिटाई का जमकर विरोध करते हुए दोषी पुलिस कर्मियों पर कार्यवाही की मांग की। सूचना पर पुलिस अधीक्षक ने अपर पुलिस अधीक्षक ग्रामीण को जांच के लिये भेजा। इसके बाद चौकी इंचार्ज को स्थानांतरित कर दिया तथा दूसरे को लाइन हाजिर कर कार्यवाही पूरी कर दी। वहीं थानाध्यक्ष महोदय की कमान बरकरार रखी गयी। यद्यपि सुप्रीम कोर्ट ने 1996 में ही अपने फैसले के जरिये पुलिस द्वारा थर्ड डिग्री के प्रयोग पर पाबंदी लगा दी थी और बाद में भी इस संदर्भ में अनेकों आदेश आये, लेकिन लगता है कि पुलिस आज भी वैसा ही व्यवहार कर रही है जैसा कि अंग्रेजों के शासन के दौरान किया करती थी। यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने ताजातरीन फैसले में पुलिस की ‘गुलाम मानसिकता’ की निंदा करते हुए कहा है कि एक लोकतांत्रिक देश जो कानून से शासित होता है, उसमें थर्ड डिग्री जैसे गैर-कानूनी तरीकों के इस्तेमाल की कोई जगह नहीं है। दूसरे शब्दों में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि पुलिस को यह अधिकार नहीं है कि वह आरोपी को थर्ड डिग्री यातनाएं दे। उच्चतम न्यायालय के स्पष्ट आदेशों के बावजूद देखने में आता है कि पुलिस अपनी हरकतों से बाज नहीं आती और आरोपी को कभी-कभी तो इतना ‘टॉर्चर’ करती है कि उसकी लॉकअप में ही मौत हो जाती है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार थाना कोतवाली नानपारा के अंतर्गत चौकी राजा बाजार प्रभारी दुर्ग विजय सिंह व दरोगा दीपक कुमार ने मोहल्ला कसाई टोला निवासी सिराज पुत्र कल्लू को गौवंश के शक में चौकी ले आये तथा परिजनों के आरोप के मुताबिक उनसे सिराज को छोड़ने के एवज में एक लाख रुपये की मांग की गई परिजन पुलिस की मांग पूरी नही कर पाए जिससे चौकी प्रभारी व दरोगा दीपक ने सिराज की पिटाई शुुुरू कर दी और तब तक पीटते रहे जब तक वह अधमरा नही हो गया। पुलिस की पिटाई को देख परिजनों ने किसी प्रकार पच्चीस हजार रूपये का इन्तेजाम कर पुलिस को दे कर सिराज को छुड़ाने में कामयाब हो गए और उसे घर ले आये घर पहोचते ही वह दर्द दे कराहते-कराहते बेहोश हो गया। तब आस पास के लोग भी इकट्ठा हो गए और उसे बेहोशी की हालत में ही लेकर सैकड़ो की तादाद में लोग एस0डी0एम0 नानपारा प्रभास कुमार के पास पहुंच गये। जहाँ सिराज की हालत को देख श्री प्रभास ने परिजनों को कार्यवाही का आश्वासन दिया ।घटना की सूचना मिलते ही पुलिस अधीक्षक गौरव ग्रोवर ने मामले की जांच के लिये अपर पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण) रवींद्र प्रताप सिंह को जिम्मेदारी सौंपी गयी। युवक की पिटाई का मामला सही पाये जाने के बावजूद कार्यवाही के नाम पर चौकी प्रभारी को थाना मोतीपुर भेज दिया जबकि एस0आई0दीपक कुमार को लाइन हाजिर कर दिया ।यहां सवाल ये उठता है कि केवल गौमांस के शक में युवक को लाकर इतनी बेरहमी से पीटने वाले दरोगाओं को किस कानून ने हक दिया है कि उसे जानवर के मांस के शक में जानवरों से भी बदतर तरह से पीटे तथा छोड़ने के लिएपैसे भी ले और अधिकारियों के सामने परिजनों के द्वारा लगाए गए आरोप भी सिद्ध हो जाय। फिर भी उनकी सजा केवल स्थानांतरण व लाइन हाजिर पुलिस अधीक्षक द्वारा की गई इस लीपापोती युक्त कार्यवाही से परिजनों सहित आम जनमानस में चर्चा का विषय बना हुआ है।लोगो का कहना था कि अभी तक तो गौवंश के शक में हिंदुवादी संगठनों के लोग ही एक विशेष समुदाय को निशाना बना रहे थे लेकिन अब पुलिस भी इस काम को अंजाम देने में जुटी है लेकिन अधिकारियों द्वारा उन्हें बचाने का कार्य किया जा रहा है।जिससे जनता में मित्र पुलिस से भय लगना लाजमी है।
वैसे आपको बताते चलें कि पुलिस का काम आरोपी को पकड़ना, जांच करना, अदालत के समक्ष पेश करके सबूत जुटाना और फिर पूछताछ में तय करना है कि आरोपी निर्दोष है या दोषी। अदालतें पुलिस हिरासत में ले जाकर पूछताछ करने की आज्ञा भी देती हैं। एक बार पुलिस हिरासत में भेजने के बाद कोई यह नहीं जानकारी लेता कि उस बेचारे के साथ पुलिस हिरासत में कितना जुल्म हुआ। किस कानून में लिखा है कि पूछताछ के नाम पर हिरासत में लिए व्यक्ति को लटकाओ, बिजली के करंट लगाओ, पानी की यातनाएं दो और शरीर के साथ वह सब करो जो लिखने में भी शर्म आती है। देश में वैसे तो मानव अधिकार आयोग बहुत हैं, सरकारी भी और गैर सरकारी भी। कोई भी इन बेचारों को संरक्षण देने के लिए आगे नहीं आ रहा। सरकारी मानव अधिकार आयोगों की हालत तो यह है कि प्रदेश की राजधानी के आरामदायक कमरों में ही उनका कार्यकाल बीत जाता है। देश में आज तक हजारों लोग पुलिस हिरासत में और जेलों में मर चुके हैं। जिले में पुलिस अधीक्षक साहब की कार्यप्रणाली की काफी सराहनाएं हो रही थीं लेकिन युवक की बेरहमी से पिटाई के मामले में थानाध्यक्ष को अभयदान दिये रहना हो या चौकी इंचार्ज साहब का महेज़ दूसरी जगह स्थानांतरण करना किसी को रास नहीं आ रहा है।


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