फराज़ अंसारी, ब्यूरो चीफ बहराइच (यूपी), NIT:
खाद्य पदार्थों में मिलावट और कालाबाजारी के खिलाफ भले ही खाद्य विभाग चेकिंग मुहिम और अभियान चलाने का ढोल पीटता है लेकिन हकीकत यह है कि खाद्य एवं औषधि सुरक्षा प्रशासन में बैठे आला-अधिकारी ही बड़े मिलावटखोरों को शह देकर उन्हें बचाते हैं। इसका लाभ उठा मिलावट खोर गुझिया की मिठास को कसैला बनाने में जुटे हैं।
शहर मुख्य बाजार से लेकर जिले में दूर-दराज इलाकों में मिलावटी मावा की आपूर्ति बढ़ गई है। इस पर अंकुश लगाने के लिए खाद्य सुरक्षा विभाग कभी-कभार छापेमारी की कार्यवाही कर कागजी कोरम पूरा करने में जुटा है। चिन्हित दुकानों पर नमूना एकत्र कर उसे जांच के लिए भेजकर अफसर शांत बैठ जाते हैं। पूरे साल मिलावटी खाद्य सामग्री की जांच का अभियान नहीं चलाया जाता है। आपको बताते चलें कि होली, दीपावली व अन्य त्यौहारों के समय विभाग अधिक सक्रिय होता है। इसके बाद भी शहर से लेकर गांवों तक मे बिकने वाली मिलावटी मिठाई, मावा, बूंदी समेत अन्य सामग्री की बरामदगी नहीं की जाती है। वहीं चेकिंग के नाम पर दुकानों से नमूने लेने के बाद सीलिंग का काम अगले दिन कार्यालय में बैठकर किया जाता है। इसके बाद ही उन नमूने लैब में जांच के लिए भेजे जाते हैं। विभागीय सूत्रों की मानें तो नमूना सीलिंग और जांच के लिए भेजने के बींच ही यह सारा खेल हो जाता है।
दरअसल किसी भी बड़े या चहेते दुकानदार, व्यापारी के नमूने में कमी दिखती है। तो उन्हें मिस ब्रांडेड बताकर मामला रफादफा कर दिया जाता है।
सूत्र बताते हैं कि खाद्य सुरक्षा अधिकारियों की मेहरबानी से केवल शहर ही नहीं, बल्कि पूरे जिले में मिलावटी सामग्री अब भी घड़ल्ले से बाजार में बिक रही है। इसमें मिठाइयों और अन्य खाद्य सामग्रियों से लेकर, सरसों का तेल, पाम ऑयल, मसाले, हल्दी आदि शामिल हैं। गौरतलब है कि मिलावटखोरी का यह गोरखधंधा तो पूरे साल चलता है, लेकिन तीज-त्यौहारों के नजदीक आते ही मिलावटखोरी की गति में तेजी आ जाती है। विडंबना यह है कि मिलावटी पदार्थों की धरपकड़ की कार्यवाही सिर्फ कागजों तक ही सिमटकर रह जाती है। मिलावटखोरी के खिलाफ पिछले एक साल में चलाए गए अभियान पर ही नजर डालें तो अब तक किसी भी मामले में सख्त कानूनी कार्रवाई नहीं हुई है, जबकि परीक्षण के लिए जो नमूने प्रयोगशाला भेजे जाते हैं, उनकी जांच रिपोर्ट 15 दिन के भीतर भेजने का नियम है। मिलावटखोरी के बढ़ते कदम और जांच की औपचारिकताओं के बीच सख्ती के बीच व्यापारियों को मिला राजनीतिक संरक्षण भी अक्सर आड़े आता है। हालात ये हैं कि मिलावटखोरी में लिप्त बड़े कारोबारियों के खिलाफ एक तो खाद्य सुरक्षा अधिकारी हिम्मत ही नहीं जुटा पाते। अगर किसी तरह हिम्मत कर नमूना ले भी लेते हैं। तो खाद्य एवं औषधि सुरक्षा प्रशासन के ही बड़े अधिकारी मामले को रफादफा कर देते हैं या फिर इन बड़े व्यापारियों को बचाने के लिए संबंधित जांच रिपोर्ट ही दबा दी जाती है। गौरतलब है कि गत वर्ष होली, रक्षाबंधन, दशहरा और दीपावली त्यौहारों के दौरान खाद्य सुरक्षा अधिकारियों द्वारा कई बड़े कारोबारियों के प्रतिष्ठानों पर छापा मारकर खाद्य सामग्रियों के नमूने लिये, इसमें अपशिष्ट पदार्थ का मिश्रण भी पाया गया, लेकिन विभाग के लैब में ही सेवारत अधिकारियों द्वारा आनन-फानन में जांच से पहले ही कई मामले रफादफा कर दिए गए।
सिर्फ जांच तक सिमट कर रह जाती है जिम्मेदारों की जिम्मेदारी
मिलावट की आशंका के साथ खाद्य सुरक्षा अधिकारी सामग्री का सैंपल भरकर लैब में जांच भी कराते हैं, लेकिन बड़े मिलावटखोरों को कभी कोई कानून सख्त सजा नहीं दिला सका। सूत्र बताते हैं कि खाद्य एवं औषधि प्रशासन के ही कुछ अधिकारी और कर्मचारी मिलावटखोरों को बचाने का पूरा प्रयास करते हैं। नमूने भरने के बाद वे स्वयं ही व्यापारी को बचाने के लिए तमाम प्रकार के हथकंडे अपनाते हैं। कई बार मिलावटखोर ऑन स्पॉट पकड़े भी जाते हैं। बावजूद इसके फाइलें एक टेबिल से दूसरी टेबिल तक घूमती हैं और जांच चलती रहती है। कुछ दिन बाद सारा मामला स्वत: समाप्त हो जाता है और मिलावटखोरों के खिलाफ फिर नया अभियान शुरू कर दिया जाता है।