Edited by Arshad Aabdi, NIT;
लेखक: सैय्यद शहंशाह हैदर आब्दी
गौरक्षा आस्था नहीं आतंक का प्रतीक कैसे और कब बन गई, हम समझ ही न सके?गौ-रक्षक दल कभी बड़े आधुनिक बूचड़ख़ानों पर हमला क्यों नहीं बोलते? उन्हें बंद कराने की मुहिम क्यों नहीं छेड़ते।
केन्द्र और राज्य की गौरक्षक सरकारें इन बड़े स्लोटर हाउसेस के लाइसेंस रद्द क्यों नहीं करती जिनके 80% से ज़्यादा मालिक तथाकथित राष्ट्रवादी हिन्दू हैं और तथाकथित राष्ट्रवादी पार्टी को ही चन्दे की मोटी रक़म देते हैं?
देश “बीफ एक्सपोर्ट” में शीर्ष पर क्या मोदी जी के शासनकाल में नहीं पहुंचा?
अभी हाल में ही बजरंग दल का एक नेता बड़े स्लोटर हाउस के लिये गौवंश ले जाता हूआ पकड़ा गया। फिर यह कैसी गौरक्षा है?
वास्तव में गौमाता से प्यार है तो करिये जन जागरण, हर गौ भक्त, अपने घर में एक बीमार, बांझ, बूढी और बेकार गाय को रख कर उसकी सेवा करेगा। गौ शालाओं से भी ऐसी गायें निकाली और बेची नहीं जायेंगी। मृत गायों का अंतिम संस्कार गौ रक्षक या परिवार वाले करेंगे आदि आदि। खड़ा कीजिये आंदोलन, आपके सक्रिय समर्थन, सहयोग और आशीर्वाद से बनी केंद्र सरकार के विरुध्द और उठाईये मांग कि वह सारी गौ वधशालायें, गौमांस, चमड़े और उससे बनी सामग्री की देश में बिक्री और निर्यात का कारोबार बंद करे।
फिर चलाईये गौ रक्षा अभियान और देखिये सर्वसमाज का सहयोग आपको मिलता है कि नहीं?
वरना यह ढकोसलेबाज़ी और पाखण्ड बंद कीजिये। खुद भी चैन से रहिये, देश और समाज में भी चैन और सुकून रहने दीजिये। इसी में देश की, समाज की, सबकी और छद्म गौरक्षकों की भलाई है।
सैय्यद शहनशाह हैदर आब्दी, समाजवादी – चिंतक झांसी।
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